राजभोग सन्मुख को पद
बैठे हरि राधे संग, कुंज भवन अपने रंग, कर मुरली अधर धरे, सारंग मुख गाई ।
मोहन अति ही सुजान, परम चतुर गुन निधान, जान बूज एक तान, चुक के बजाई ।। १ ।।
प्यारी जब गह्यो बीन, सकल कला गुण प्रवीण, अति नवीन रूप सहित, वही तान सुनाई ।
वल्लभ गिरिधरनलाल, रीझ दई अंकमाल, कहेत भलें भलें लाल, सुंदर सुख दाई ।। २ ।।
No comments:
Post a Comment