उष्णकाल - दुपहरी के पद
ऐसी धूपन में पिय जाने न दऊंगी ।
बिनती करि कर जोरी पिया के, हां हां खात तेरे पैयाँ परुंगी ।। 1 ।।
तुम तो कहावत फूल गुलाब से, संग के सखा ग्वालन गारी दऊंगी ।
परमानंददास को ठाकुर, करतें मुरलियाँ अचकि हरूँगी ।। 2 ।।
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