ज्येष्ठ मास तपत धाम, कहांकुं सिधारो लाल , ऐसी कौन चतुर नार, वाको बीरा लीनों ।
नेंक तो कृपा कीजे, हमहुं को दरश दीजे, जाईये फिर वाके धाम, जासुं नेह नवीनों ।। 1 ।।
बांह पकर भवन लाई, शय्या पर दिये बेठाई, अरगजा लगाय अंग, हियो शीतल कीनो ।
रसिक प्रितम कंठ लाय लीनों, रससों मिलाय, अरस परस केलि करत, प्रीतम बस कीनों ।। 2 ।।
No comments:
Post a Comment