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સજનીરી ગાવો મંગલ ચાર

બ્યાહ અને શેહરાનું પદ 

સજનીરી ગાવો મંગલ ચાર |
ચિરજીયો    વૃષભાન    નંદિની    દુલ્હે    નંદકુમાર || ૧ ||
મોહનકે શિર   મુકુટ   બિરાજત   રાધાકે    ઉર  હાર |
નીલામ્બર પીતામ્બરકી છબી શોભા અમિત  અપાર || ૨ ||
મંડપ   છાયો   દેખ   બરસાને   બેઠે   નંદ      ઉદાર |
ભામર લેત પ્રિયા ઔર પ્રીતમ તનમન   દીજે  વાર || ૩ ||
યહ જોરી અવિચલ શ્રી વૃંદાવન ક્રીડત કરત વિહાર |
પરમાનંદ   મનોરથ  પૂરન  ભક્તન  પ્રાણ  આધાર || ૪ ||

श्री विठ्ठलनाथ उपासी हमतो...

श्री विठ्ठलनाथजी की वधाई 

श्री  विठ्ठलनाथ उपासी हम तो, श्री विठ्ठलनाथ उपासी  |
सदा  सेवुं  श्री   वल्लभनंदन,   कहा   करूँ   जाय   काशी  || १  || हमतो...
इनें    छोड़   जो   और   ध्यावे,   सो    कहिये    असुरासी  |
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विठ्ठल, बानी निगम प्रकाशी  || २  || हमतो...

बाजन लागे हेली बहुरि ढफ...

बाजन  लागे   हेली   बहुरि  ढफ  बाजन   लागे  हेली  ।

खेलत  मोहन  सांवरो  हो,  किहीं  मिस  देखन जाय ।
सास   ननद   बैरिन  भई  अब,   कीजे  कौन  उपाय ।। १ ।। बहुरि ढफ...

ओजत   गागर    ढारिये,    जमुना    जल के   काज ।
यह मिस बाहर निकस कै हम, जाई मिलैं तज लाज ।। २ ।। बहुरि ढफ...

आवो    बछरा    मेलिये,     बन कौ    दैहीं    बिडारी ।।
वे दै हैं हम  ही   पठेई   हम,  रहेंगी  धरि   द्वै  चारि ।। ३ ।। बहुरि ढफ...

हा हा री  हौं  जाति हौं  मोपै,   नाहिन  परत   रह्यौ ।
तू  तो  सोचत  ही  रही  तैं,  मान्यो  न  मेरो  कह्यो ।। ४ ।। बहुरि ढफ...

राग   रँग   गहगडी   मच्यौ,    नंदराई    दरबार ।
गाय   खेल   हँसी   लिजीये,   फागु   बड़ो    त्यौहार ।। ५ ।। बहुरि ढफ...

तिन  में    मोहन,   अति  बने,   नांचत  सबै ग्वाल ।
बाजे बहु विध   बाजि  ही,   रूंज   मुरज   ढफ   ताल ।। ६ ।। बहुरि ढफ...

मुरली   मुकुट   बिराज   हीं,   कटि   पट   बाँधे  पीत ।
निरतत आवत   ताज के  प्रभु,   गावत   होरी   गीत ।। ७ ।। बहुरि ढफ..

कौन गौर तेँ पुजी श्रीराधे कौन गौर तेँ पुजी

कौन गौर तेँ पुजी श्रीराधे कौन गौर तेँ पुजी ।
वृंदावन गौकुल गलियन मेँ, सब कौऊ कहत बहूजी ।।1।।
मदनमोहन पियको बस कीनो, और त्रिया नहीँ दुजी ।
सुरदास प्रभु तिहारे मिलनको, कौन बात तौहे सुजी ।।2।।

दान मांगत ही में आनि कछु कीयो

दान मांगत ही में आनि कछु  कीयो।
धाय लई मटुकिया आय कर सीसतें रसिकवर नंदसुत रंच दधि पीयो॥१॥
छूटि गयो झगरो हँसे मंद मुसिक्यानि में तबही कर कमलसों परसि मेरो हियो।
चतुर्भुजदास नयननसो नयना मिले तबही गिरिराजधर चोरि चित्त लियो॥२॥