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मेरे रामलला को सोहिलो सुन...

मेरे रामलला को   सोहिलो  सुन,   नाच्यो  सुर  नर  नारी हो ।
उमग उमग आनंद में  डोलें,   तन  मन  धन   सब  वारि  हो ।। १ ।।
गृह   गृह   तें सब   सजी   चले   हो,    अपनें  अपनें  टोल हो ।
देत   बधाई   रहसि   परस्पर,      गावत    मीठे    बोल    हो ।। २ ।।
मंगल     साज     संवार  कें हों,     हाथन     कंचनथार    हो  ।
मानों कमलन शशि चढ़ चले हो, राजा दशरथ के दरबार हो  ।। ३ ।।
अवधपुरी   अति   सोहिये  हो,   मंगलपुर हि   निशान    हो ।
मौतिनचौक    पुराय  कें  हो,   मंगल   विविध   विधान   हो ।। ४ ।।
देव  पितर   गुरु   पूजकें  हो,    जातकर्म    सब   कीने    हो ।
द्विजवर  कुल   सनमान   देकें,    दान  बहुविध   दीने   हो ।। ५ ।।
मागध   सूत    बिरदावली   हो,     सूरजवंश     बखान    हो ।
याचकजन    पूरण    किये   हो,    दानमान    परिधान   हो ।। ६ ।।
विधि   महेश   सुर   शारदा   हो,   देख   सिहात  समोद  हो ।
ध्यान धरे नहीं पाईयें हो,  सो  देखो  कौशल्या की  गोद  हो  ।। 7 ।।
विविध कुसुम बरखा भई  हो,    आनंद    प्रेम   प्रकाश   हो ।
रामलला  के   रूपपें    जन,    बलबल     गोविन्ददास    हो ।। ८ ।।

वन्दों अवधश्री वन्दों गोकुलश्री ...

वन्दों अवधश्री गोकुल गाम ।
ईते   राजत   जानकी  वर,   उतें   श्यामा   श्याम ।। १ ।।
ईते   सरयू   वहत   निरमल,   उते   यमुना   नीर ।
हरत कलि विष  युगल   मूरत,  जान जनकी पीर ।। २ ।।
ईते   शवरी      स्वर्ग     दीनों,     चित्रकूट    बनाई ।
उते  कुब्जा  रूप  दीनों,   चंदन  चारू   घिस   लाई ।। ३ ।।
ईते      खेवत     सखा-तारे,     बेठिकें       रघुराई ।
उते    कर   नख   भूप   तारे,   कर   गहे   यदुराई ।। ४ ।।
ईते  शारंगपाणि   सोहे,   ललित   लछमन   धीर ।
उते   मुरली,   कर   बीराजे,   हल   गहें   बलवीर ।। ५ ।।
ईते गौतम घरनि की गति,  कीनी   राम   सुजान ।
उते  द्रौपदी  लाज  राखी,   द्वारका   पति   कान्ह ।। ६ ।।
धीर  सागर   राम   मूरत,    करे    गीध    निहाल ।
उते    गज    वैकुंठ   पठ्यो,     दोरिकें     नंदलाल ।। ७ ।।
कबहु बाबा   नंद  के   घर,   जात   माखन   खात ।
तनक भोजन करो विलमो, कहत कौशल्या मात ।। ८ ।।
भक्त हेत  अवतार   लीनें,   धरी   दोऊ   अवतार ।
दास   तुलसी   शरण  आये,   कोऊ    उतारे   पार ।। ९ ।।

नौमी चैत की उजियारी

नौमी चैत की उजियारी।
दसरथ के गृह जनम लियौ है मुदित अयोध्या नारी॥१॥
राम लच्छमन भरत सत्रुहन भूतल प्रगटे चारी।
ललित विलास कमल दल लोचन मोचन दुःख सुख कारी॥२॥
मन्मथ मथन अमित छबि जलरुह नील बसन तन सारी।
पीत बसन दामिनी द्युति बिलसत दसन लसत सित भारी॥३॥
कठुला कंठ रत्न मनि बघना धनु भृकुटी गति न्यारी।
घुटुरुन चलत हरत मन सबको ‘तुलसीदास’ बलिहारी॥४॥

कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे

कौसल्या रघुनाथ कों लिये गोद खिलावे।
सुंदर बदन निहारकें हँसि कंठ लगावे॥१॥
पीत झगुलिया तन लसे पग नूपुर बाजे।
चलन सिखावे राम कों कोटिक छबि लाजे॥२॥
सीस सुभग कुलही बनी माथे बिंदु बिराजे।
नील कंठ नख केहरी कर कंकन बाजे॥३॥
बाल लीला रघुनाथ की यह सुने और गावे।
तुलसीदास कों यह कृपा नित्य दरसन पावे॥४॥

सुभग सेज सोभित कौसल्या रुचिर राम सिसु गोद लिये

सुभग सेज सोभित कौसल्या रुचिर राम सिसु गोद लिये।
बाललीला गावत हुलरावत पुलकित प्रेम पीयुष पिये॥१॥
कबहू पौढि पय पान करावत कबहूं राखत लाय हिये।
बार बार बिधु बदन बिलोकत लोचन चारु चकोर पिये॥२॥
सिव विरंच मुनि सब सिहात हैं चितवत अंबुज ओट दिये।
तुलसीदास यह सुख रघुपति को पायो तो काहू न बिये॥३॥