सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुन चलत रेणु तनु मंडित, मुख पर दधि को लेप किए॥१॥
चारु कपोल लोल लोचन छवि, गोरोचन को तिलक दिए।
लट लटकनि मनो मत्त मधुपगन, मादक मद हि पिए॥२॥
कठुला कंठ वज्र के हरि नख, राजत हैं अरु रुचिर हिए।
धन्य सूर एको पल यह सुख, कहा भयो सत कल्प जिए॥३॥
घुटुरुन चलत रेणु तनु मंडित, मुख पर दधि को लेप किए॥१॥
चारु कपोल लोल लोचन छवि, गोरोचन को तिलक दिए।
लट लटकनि मनो मत्त मधुपगन, मादक मद हि पिए॥२॥
कठुला कंठ वज्र के हरि नख, राजत हैं अरु रुचिर हिए।
धन्य सूर एको पल यह सुख, कहा भयो सत कल्प जिए॥३॥
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