वृन्दावन सघन कुंज

वृन्दावन  सघनकुंज,   माधुरी  लतानतर,   यमुना   पुलिन में,   मधुर    बाजी    बांसुरी ।
जबतें ध्वनी सुनी कान, मानों लागे मदनबाण, प्राणन हू की  कहा कहुं, पीर होत पासुंरी ।। १ ।।
व्याप्यो जो अनंग ताते,   अंग सुधि भूल गई,   कोऊ निंदो कोऊ वंदो,   करो   उपहासरी ।
ऐसे   व्रजाधिशजीसूं,   प्रीत   नई   रीत  बाढी,   जाके ह्रदय गड रही,   प्रेमपुंज   गांसरी ।। २ ।।

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