श्री विठ्ठलनाथजी की वधाई
केसर की धोती कटि, केसरी उपरना ओढें, तिलक मुद्रा धर ठाडे, मंदिर गिरिधर के |
दोउजनकी प्रीति कछू, काहुपें न कही जात, उत नन्दनंदन इत, वल्लभ वरकें || १ ||
करकें शृंगार आज, लाडिले गोपालजूके, लेत हैं बलाय वारवार दोउ करकें |
बेऊ मुस्कात जात, फुले न समात गात, कहें हरिदास में, निहारे द्रग भरकें || २ ||
दोउजनकी प्रीति कछू, काहुपें न कही जात, उत नन्दनंदन इत, वल्लभ वरकें || १ ||
करकें शृंगार आज, लाडिले गोपालजूके, लेत हैं बलाय वारवार दोउ करकें |
बेऊ मुस्कात जात, फुले न समात गात, कहें हरिदास में, निहारे द्रग भरकें || २ ||
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