खंजन-नैन फँसे पिंजरा-छबि...

खंजन-नैन  फँसे  पिंजरा-छबि,   नाहिं  रहें   थिर  कैसेहूँ माई !
छूटि गयी कुल कानी सखी, रसखानि, लखी मुसुकानि सुहाई ।। १ ।।
चित्र-कढ़े-से रहैं मेरे  नैन,   न  बैन   कढ़े   मुख  दीनी   दुहाई ।
कैसी करों, जिन जाव अली,  सब बोली उठें,  यह बावरी आई ।। २ ।।

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