खंजन-नैन फँसे पिंजरा-छबि, नाहिं रहें थिर कैसेहूँ माई !
छूटि गयी कुल कानी सखी, रसखानि, लखी मुसुकानि सुहाई ।। १ ।।
चित्र-कढ़े-से रहैं मेरे नैन, न बैन कढ़े मुख दीनी दुहाई ।
कैसी करों, जिन जाव अली, सब बोली उठें, यह बावरी आई ।। २ ।।
छूटि गयी कुल कानी सखी, रसखानि, लखी मुसुकानि सुहाई ।। १ ।।
चित्र-कढ़े-से रहैं मेरे नैन, न बैन कढ़े मुख दीनी दुहाई ।
कैसी करों, जिन जाव अली, सब बोली उठें, यह बावरी आई ।। २ ।।
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