कानन दै अँगुरी रहिबो, जब हीं मुरली-धुनि मन्द बजै है ;
मोहिनी-तानन सों रसखानि, अटा चढ़ी गोधन गैहै तौ गैहै ।
टेरी कहौं सिगरे ब्रज-लोगनि, काल्हि कोऊ कितनो समुझै है ;
माई री, वा मुख की मुसुकानि, सँभारी न जैहै न जैहै न जैहै ।।
मोहिनी-तानन सों रसखानि, अटा चढ़ी गोधन गैहै तौ गैहै ।
टेरी कहौं सिगरे ब्रज-लोगनि, काल्हि कोऊ कितनो समुझै है ;
माई री, वा मुख की मुसुकानि, सँभारी न जैहै न जैहै न जैहै ।।
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