कानन दै अँगुरी रहिबो..

कानन दै अँगुरी  रहिबो,   जब हीं  मुरली-धुनि  मन्द  बजै  है ;
मोहिनी-तानन सों रसखानि, अटा  चढ़ी गोधन गैहै  तौ  गैहै ।
टेरी कहौं सिगरे ब्रज-लोगनि, काल्हि कोऊ कितनो  समुझै है ;
माई री, वा मुख की मुसुकानि, सँभारी न जैहै न जैहै  न  जैहै ।।

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