मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँवके ग्वारन ।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नन्दकी धेनु मंझारन ।। १ ।।
पाहन हौं तो वही गिरिकौ, जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर - धारन ।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिली, कालिंदी-कूल-कदम्बकी डारन ।। २ ।।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नन्दकी धेनु मंझारन ।। १ ।।
पाहन हौं तो वही गिरिकौ, जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर - धारन ।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिली, कालिंदी-कूल-कदम्बकी डारन ।। २ ।।
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