मानुष हौं तो वही रसखानि....

मानुष हौं तो वही रसखानि  बसौं   ब्रज   गोकुल   गाँवके   ग्वारन ।
जो पसु हौं तो कहा  बसु मेरो,   चरौं  नित  नन्दकी  धेनु  मंझारन  ।। १ ।।
पाहन  हौं तो वही गिरिकौ,  जो  धर्यौ  कर    छत्र    पुरंदर - धारन  ।
जो खग हौं तो बसेरो  करौं  मिली,  कालिंदी-कूल-कदम्बकी डारन ।। २ ।।

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