अरुझ रहे मुक्ताहल निरवारत सोहत घूघरवारे वार

अरुझ रहे मुक्ताहल निरवारत  सोहत   घूघरवारे  वार ।
रति मानी संग नंदनंदन के   छूटे बंद कंचुकी  टूटे हार ।। १ ।।
निशि के जागे दोउ नयना ढरकर हे चलत जोबन भार ।
सूरस्याम   संग     सुख     देखत     रीझे      वारंवार ।। २ ।।

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