प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये

प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये।
हरि लीला रस सिंधु कला निधि बचन किरन सब ताप गये॥१॥
मायावाद तिमिर जीवन को प्रगटत नास भयो उर अंतर ।
फूले भक्त कुमोदिनी चहुँ दिस सोभित भये भक्ति मन सारस॥२॥
मुदित भये कमल मुख तिनके वृथा वाद आये गनत बल।
गिरिधर अन्य भजन तारागन मंद भये भजि गावत चंचल॥३॥

No comments:

Post a Comment