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हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई

हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई ।
एतते आयी सुधर राधिका उतते कुंवर कन्हाई॥

हिलमिल फाग परस्पर खेले, शोभा वरनी न जायी,
नन्द घर बजत बधाई ।

बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी बीना डफ सहनाई ।
उड़त अबीर गुलाल कुमकुम । रह्यो सकल व्रज छायी ।
मानो मधवा जर लायी ॥

ले ले हाथ कनक पिचकारी सन्मुख चले चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे जुक जुक चाचर गाई,
परस्पर लोग लुगाई ॥

राधा सेन दई सखीयन को झुंड झुंड गहीर आई।
लपट जपट गई श्यामसुंदरसो, परवश पकर ले आई
लालाजी को नाच नचाई ॥

छीन लई मुरली पीताम्बर सीर ते चूनरी उढाई ।
वेनी भाल नयन विच काजर, नक्वेसर पहेराई
मानो नई नार बनाई ॥

हसत है मुख मोड़ मोड़ के कहा गई चतूराई ।
कहा गए तेरे तात नंदजी कहा जसोदा माई
तुम्हे अब ले छुड़ाई ॥

फगुवा दिए बीन जान न पाओ कोटी करो ऊपाय ।
लेहू काढ कसर सब दीन की तुम चीत्चोर चवाई
बहुत दधी माखन खाई ॥

रंग हो हो होरियां

रंग   हो   हो   होरियां ।
इत बने नवल किशोर ललन पिय उत बनी नवल किशोरियां ।। १ ।।
ये  नव  नील  जलद  तन सुन्दर   वे   कंचन   तन   गोरियां । 
उनके  अरुण  वसन   तन   राजत    इनके   पीत   पटोरियां ।। २ ।।
फेंटन  सुरंग गुलाल विविध रंग   अरगजा  भरी हें कमोरियां ।
छलबल   करी  दुरि  मुख   लपटावत   चंदन  वंदन   रोरियां ।। ३ ।।
राखी हें  करन   दुराय  सबन मिल  केसर  कनक  कमोरियां ।
सन्मुख दृष्टि बचाय  धाय   जाय    स्याम   सीस तें ढोरियाँ ।। ४ ।।
बाजत ताल मृदंग मुरज डफ    मधुर  मुरली  ध्वनि थोरियां ।
नाचत गावत  करत   कुलाहल    परम चतुर  ओर   भोरियां ।। ५ ।।
एकन कर   गेंदुक   नवलासी  ओर   फूलन   भरि   झोरियां ।
भाजत   राजत   भरत   परस्पर     परिरंभन    झकझोरियाँ ।। ६ ।।
ये ही  रस   निवहो   निसवासर   बंधी  हें   प्रेम की   डोरियाँ ।
माधुरी  के   हित  सुख के  कारण   प्रगटी  हे भूतल जोरियाँ ।। ७ ।।

अरी वह नंद महर कौ छोहरा

अरी वह,नंद महर कौ छोहरा, बरज्यौं नहीं मानैं ।
प्रेम लपेटौ अटपटौ औरु मोहि  सुनावै दोहरा ।। १ ।।
                                                   बरज्यौं नहीं मानैं नंद महर कौ छोहरा,
कैसे कै जाऊं दुहावन गैया, आये अगोरे गोंहरा ।
नख-सिख रंग बोरै औ तोरै, मोरे गरे को डोहरा ।। २ ।। बरज्यौ...

गारी दै दै भाव जनावै, और उपजावै मोहरा ।
गोविन्द प्रभु बलवीर बिहारी प्यारी, राधा कौ मीत मनोहरा ।। ३ ।। बरज्यौ...

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले।
नंदमहर को लाडिलो मोसो ऐंठ्यो ही डोले॥१॥
राधा जू पनिया निकसी वाको घूंघट खोले।
’सूरदास’ प्रभु सांवरो हियरा बिच डोले॥२॥

व्रज में हरि होरी मचाई

व्रज में हरि होरी मचाई ।
इततें आई सुघर राधिका उततें कुंवर कन्हाई ।
खेलत फाग परसपर हिलमिल शोभा बरनी न जाई ॥१॥ नंद घर बजत बधाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
बाजत ताल मृदंग बांसुरी वीणा ढफ शहनाई ।
उडत अबीर गुलाल कुंकुमा रह्यो सकल ब्रज छाई ॥२॥ मानो मघवा झर लाई…..ब्रज में हरि होरी मचाई ।
लेले रंग कनक पिचकाई सनमुख सबे चलाई ।
छिरकत रंग अंग सब भीजे झुक झुक चाचर गाई ॥३॥ परस्पर लोग लुगाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।
राधा ने सेन दई सखियन को झुंड झुंड घिर आई ।
लपट झपट गई श्यामसुंदर सों बरबस पकर ले आई ॥४॥ लालजु को नाच नचाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।
छीन लई हैं मुरली पीतांबर सिरतें चुनर उढाई ।
बेंदी भाल नयन बिच काजर नकबेसर पहराई ॥५॥ मानो नई नार बनाई …..ब्रज में हरि होरी मचाई ।
मुस्कत है मुख मोड मोड कर कहां गई चतुराई ।
कहां गये तेरे तात नंद जी कहां जसोदा माई ॥६॥ तुम्ह अब ले ना छुडाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
फगुवा दिये बिन जान न पावो कोटिक करो उपाई ।
लेहूं कढ कसर सब दिन की तुम चित चोर सबाई ॥७॥ बहुत दधि माखन खाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
रास विलास करत वृंदावन जहां तहां यदुराई ।
राधा श्याम की जुगल जोरि पर सूरदास बलि जाई ॥८॥ प्रीत उर रहि न समाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।