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हे गोविन्द राखो शरन

हे गोविन्द राखो शरन
अब तो जीवन हारे

नीर पिवन हेत गयो सिन्धु के किनारे
सिन्धु बीच बसत ग्राह चरण धरि पछारे

चार प्रहर युद्ध भयो ले गयो मझधारे
नाक कान डूबन लागे कृष्ण को पुकारे

द्वारका मे सबद दयो शोर भयो द्वारे
शन्ख चक्र गदा पद्म गरूड तजि सिधारे

सूर कहे श्याम सुनो शरण हम तिहारे
अबकी बेर पार करो नन्द के दुलारे

राखी बांधत जसोदा मैया

राखी बांधत जसोदा मैया ।
विविध सिंगार किये पटभूषण, पुनि पुनि लेत बलैया ॥१॥
हाथन लीये थार मुदित मन, कुमकुम अक्षत मांझ धरैया।
तिलक करत आरती उतारत अति हरख हरख मन भैया ॥२॥

बदन चूमि चुचकारत अतिहि भरि भरि धरे पकवान मिठैया ।
नाना भांत भोग आगे धर, कहत लेहु दोउ मैया॥३॥

नरनारी सब आय मिली तहां निरखत नंद ललैया ।
सूरदास गिरिधर चिर जीयो गोकुल बजत बधैया ॥४॥

बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं

बोलवेकी नाहीं, तुमसो बोलवेकी नाहीं।
घर घर गमन करत सुंदरपिय,
चित्त नाही एक ठाहीं॥१॥

कहा कहो शामल घन तुमसो,
समज देख मन माहीं।
सूरदास प्रभु प्यारीके वचन सुन,
ह्रदय मांझ मुस्कानी॥२॥

ये बड़भागी मोर

ये बड़भागी मोर,
देखो माई, ये बड़भागी मोर।
जीनकी पंखको मुकुट बनत है,
सीर धरे नंदकिशोर ॥१॥

ये बड़भागी नन्द जशोदा,
पुण्य किये भरी जोर ।
वृन्दावन हम क्यों ना भये,
लागत पग की कोर ॥२॥

ब्रह्मादिक सनकादिक नारद,
ठाडे है कर जोर ।
सूरदास संतनको सरवस,
देखियत माखनचोर ॥३॥

गोवर्धन पर मुरवा

गोवर्धन पर मुरवा,
बोले माई, गोवर्धन पर मुरवा,
तेसिये श्यामघन मुरिली बजाई,
तेसेही उठे झुक धुरवा ।१।

बड़ी बड़ी बूंदन बर्खन लाग्यो,
पवन चलत अति जुरवा,
सूरदासप्रभु तिहारे मिलन को,
निस जागत भयो भुरवा ॥२॥

मैयारी तू मोहि बडो कर लैरी

मैयारी तू मोहि बडो कर लैरी।
दूध दही धृत माखन मेवा,
जो मांगो सो दैरी॥१॥

कछु दुराव राखै जिन मोसो,
जोई मोई रुचेरी।
रंगभूमि में कंस पछारौ,
कहे कथा सुखसौरी॥२॥

सूरदास स्वामीकी लीला,
मथुरा वास करोरी।
सुंदरश्याम हसत जननीसो,
नन्दलालकी सौरी॥३॥

નંદ કહ્યો સુધિ ભલી દીવાઈ

ગોવર્ધન લીલાનું પદ

 નંદ   કહ્યો  સુધિ  ભલી  દીવાઈ,  મેં  તોં રાજકાજ મનલાઈ || ૧ ||
દિનપ્રતિ  કરત  યહે  અધમાઈ, કુલદેવતા સુરત વિસરાઈ || ૨ ||
કંસ દઈ  યહ   લોક  બડાઈ,   ગામદસક   સિરદાર   કહાઈ || ૩ ||
જલધિ બૂંદ જ્યોં જલધિ સમાઈ, માયા જહાંકી તહાં બિલાઈ || ૪ ||
સૂરદાસ   યહ   કહે  નંદરાઈ,  ચરણ  તુમ્હારે   સદા  સહાઈ || ૫ ||

जाको मन लाग्यो गोपालसों...

राजभोग हिलग के पद

जाको  मन   लाग्यौ  गोपालसों  ताहि   और  कैसे भावैरी |
लै कर  मीन  दूधमें  राखौ,  जल  बिनु  सचु  नहीं  पावैरी || १ ||
ज्यों   सूरा   रन  घूमि  चलत  हैं,  पीर  न काहू  जनावैरी |
ज्यों   गूंगौ गुर  खाय  रहेत  है,  मुख  न  स्वाद  बतावैरी || २ ||
जैसें  सरिता मिली  सिन्धुमें,  उलटि  प्रवाह   न   आवैरी |
तैसेइ  सूर कमल मुख निरखत चित ईत उत न डुलावैरी || ३ || 

अम्बर देहो मुरारी

हमारो अम्बर देहो मुरारी |
लेकर चीर  कदम्ब  चढ़ बैठे हम जलमांझ   उधारी  || १ ||
सुन्दर श्याम कमलदल लोचन हम हैं दासी तिहारी |
जो कछु कहौ सोई हम करी है चरणकमल पर वारि || २ ||
अंग अंग   कांपत  मनमोहन  बिनती  सुनौ  हमारी |
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमणि तुम जीते  हम  हारी || ३ ||

ग्वालिनी आपने चीर लेहो

व्रतचर्या के पद

ग्वालिनी आपने चीर लेहो |
जलते निकस निहार नेक व्है दोउ कर जोर आसीस लेहो || १ ||
कितहूँ सीत सहत ब्रज सुंदरी  होत  असित कृशगात सबे |
मेरे    कहें   पहेरो   पट   अंगन   व्रत   विधि   हिन   अबे || २ ||
हौं   अंतरयामी  जानत  चितकी   कितदुरावत    लाजकें |
कर हों पूरणकाम कृपा   कर  शरद   समें   शशि   रातकें || ३ ||
संतत   सूर  स्वभाव   हमारो   कित  डरपत हो काममये |
कैसी   भांति   भजे  कोऊ  मोकूं  तेहूँ  सब   संसार   जये || ४ ||

अति तप देख कृपा हरि कीनो

व्रतचर्या के पद

अति तप देख कृपा हरि कीनो |
तनकी जरन  दूर  भई  सबकी  मिल तरुणी  सुख दीनो || १ ||
नवलकिशोर ध्यान  युवती  मन  मीडत  पीठ   जनायो |
विवश भई कछु सुधि न संभारत भयो सबन मन भायो || २ ||
मनमन  कहत  भयो  तप  पूरण  आनंद  उर  न समाई |
सूरदास प्रभु लाज  न  आवत  युवतीन   मांझ  कन्हाई  || ३ ||

आप कदम्ब चढ़ देखत श्याम

व्रतचर्या के पद
आप कदम्ब चढ़ देखत श्याम |
वसन  आभूषण  सब हरलीने  विना वसन जल भीतर वाम || १ ||
मुदित नयन  ध्यान  धर  हरिकों  अंतरयामी   लीनी  जान |
बारबार  सब  तासों  मांगत  हम  पावें  पति  श्याम सुजान || २ ||
जलतें निकस  आय  तट देख्यो भूषण चीर तहां कछु नाहीं |
इतउत हेर चकित भई सुंदरी सकुच गई फिर जल ही माहीं || ३ ||
नाभिपर्यंत   नीरमें   ठाढ़ी  थरथर  अंग  कम्पत  सुकुमारी |
को ले गयो बसन  आभूषण  सूरश्याम  उर  प्रीति  बिचारी  || ४ ||

प्रात समें नवकुंज महल में

प्रात समें नवकुंज  महल  में  श्री  राधा  और  नन्द  किशोर |
दक्षिण कर मुक्ता श्यामा के  त्यजत हंस और चुगत चकोर || १ ||
तापर एक अधिक छबि उपजत ऊपर  भ्रमर करत घनघोर |
सूरदास प्रभु अति सकुचाने रवि शशि प्रकटत  एक ही ठोर || २ ||

किहीं मिस यशोमतिहिकें जाऊं

किहीं मिस यशोमतिहिकें  जाऊं |
सकल सुखनिधि मुख अवलोकूं नयनन तृषा  बुझाऊं || १  ||
द्वार    आरज    सभा   जुरीहे    निकसवे   नहीं   पाऊं |
बिना    गए    पतिव्रत    छूटे     हसे    गोकुल   गाऊं || २  ||
स्याम   गात   सरोजआनन    मुदित    ले   ले   नाऊं |     
सूर हिलगन   कठिन   मनकी   कही    काही   सुनाऊं || ३  ||

कब देखो मेरी ओर

कब देखो मेरी ओर
नागर   नंदकिशोर  बिनती   करत   भयो    भोर |
हम चितवत तुम चितवत नाहीं मेरे करम कठोर || १  ||
जन्म जन्म की दासी तिहारी  तापर  इतनो  जोर |
सूरदास प्रभु तुम्हारे  रोम पर  वारों   कंचन  खोर || २  ||

सखीरी मोहि हरि दर्शन की चाय

सखीरी  मोहि हरि दर्शन की चाय |
सांवरे सों   प्रीति  बाढ़ी लाख लोग रिसाय || १  ||
श्यामसुंदर लोल लोचन देख मन ललचाय |
सूर हरि के रंग  राची  सीस   रहा   केंजाय || २  ||

नख कहाँ लागे वन, वानरा लगाये नख

शृंगार औट-सन्मुख के पद


नख कहाँ लागे वन, वानरा  लगाये  नख,   चखक्यों  राते  प्रात,  देख्यो  ताते  भान को |
चन्दन लग्यो है कहाँ, विघ्न हरण पूजा कीनी, वंदन लग्यो है कहाँ, परस भयो थान को || १  ||
रैन  रहे  कहाँ,  नट  नृत्यत   जहाँ,   अरवरे   क्यों   बोलो  मोसों,   डर   भयो   आन को |
गुजरी  सो  गुजरी  अब,  आगें   आय  ठाडे सूर, थेगरी कहाँ लों देत, फाटे आसमान को || २  ||

ग्वालिनी आपतन देख मेरे

राजभोग उराहने के पद


ग्वालिनी आपतन देख मेरे, लाल तन देखरी, भीत ज्यों होय तो चित्र अब रेखरी || ध्रु  || 
मेरो    ललन   है    पांच    ही    बरसको,     रोय कें     अजहूँ     पयपान     माँगे |
तू  तो     अति    ढीठ,   जोवनमत्त   ग्वालिनी,  फिरत  इतरात,  गोपाल  आगें || १  ||
मेरे   ललन की,     तनक  सी   अंगुरी,     ये   बड़े   नखन  के,       चिन्ह      तेरें |
मष्ट   कर   हसेंगे,   लोग   अगवार को,   यह   भुजा  कहाँ   पाई,   स्याम    मेरे || २  ||
झुक वगईल ग्वालिनी, यनन हँसी नागरी, उराहने के  मिस,  अधिक  प्रीत  बाढी |
एक   सुन    सूर,   सर्वस्व     हरयो   सांवरे,   अनउत्तर   महरिके   द्वार   ठाढ़ी || ३  ||

कहाँजू बसे सारी रात नंदसुत

कहाँजू बसे सारी रात नंदसुत  |
चार पहर मोहि चार  युग  बीते   तुम जो आये परभात  || १  ||
लटपटी पाग नींदभरी  अखियाँ काजर लाग्यो तेरे गात |
चोली के बंद चुभ रहे तनमें   कसन   भयो   सब   गात || २  ||
रहो   रहो    वृषभान   नंदिनी    सुन है   यशोदा    मात |
सूरदास प्रभु तिहारे  मिलन कों रजनी कल्प सम जात || ३  ||

जागि हो लाल, गुपाल, गिरिवरधरन


जागि हो लाल, गुपाल, गिरिवरधरन, सरस ऋतुराज बसंत आयौ ।
फूले द्रुमवेली, फल, फूल, बौरे, अंब, मधुप, कोकिला कीर सैन लायौ ।। १  ।। 
जावौ खेलन,  सबै ग्वाल टेरत द्वार, खाऊ भोजन मधु, घृत मिलायौ ।
सखी - जूथन लियें आई है राधिका मच्यौ गहगड़राग रंग छायौ ।। २  ।।
सुनति   मृदु-बचन,  उठे   चौंक  नंदलाल,   कर  लीयें  पिचकाई   सुबल   बुलायौ ।
निरखि मुख, हरखि हियैं, वारि तन मन प्रान, सूर येही मिसहि  गिरिधर जगायौ ।। ३  ।।