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અબ મોય સોવન દેરી માય

ગોપાષ્ટ્મીનું પદપોઢવાનું 

અબ મોય સોવન દેરી માય |
ગાયનકે સંગ  ફિરત બનબન મેરે પાંય પિરાય || ૧ ||
આજ    સાંજ   હી તેં નીંદ મેરે નયન પેઠી આય |
ખુલત  નાહીન પલક મેરી ખાયો કછુઅન જાય || ૨ ||
 કર કલેઉ    પ્રાત  જેહોં   ફેર   ચરાવન    ગાય |
પરમાનંદ  પ્રભુકી જનની  લેત   કંઠ   લપટાય || ૩ ||

बसो मेरे नयनन में दोउं चंद...

बसो मेरे नयनन में दोउं  चंद ।
गौर वरण  वृषभाननंदिनी,  श्याम  वरण   नंदनंद  ।। १ ।।
कुंज निकुंज में विहरत दोउं, अतिसुख आनंद कंद ।
रसिक प्रीतम प्रिया रसमें  माते,  परो प्रेम के  फंद ।। २ ।।

सुगन मनाय रही व्रजबाला, मन भावन घर आवन कों

सुगन  मनाय   रही  व्रजबाला,   मन  भावन  घर  आवन कों ।
चंदन भवन लिपाय सोंज  सज,   अरगजा  अंग लगावन कों ।। १ ।।
भोग राग रंग संपूरन आनंद,    अपनी   रूचि   उपजावन कों ।
कृष्णदास गिरिधरन संग मिली, बिरह व्यथा बिसरावन कों ।। २ ।।

आज प्रभात जात मारग में...

आज प्रभात जात मारग में,  सुगन  भयो फल फलित जसोदा के ।
मंगल निध जाके भवन बिराजत,  इत आनद अंग अंग प्रमदा के ।। १ ।।
सीतल सुवास अवासन महियां,  मंगल गीत गावत मिल सखियां ।
परमानंद निरखि मोहन  मुख,  हरख  हीये  सीतल  भई  अखियां ।। २ ।।

लेहु ललन कछु करहु कलेऊ, अपुने हाथ जीमाउंगी

लेहु ललन   कछु   करहु   कलेऊ,    अपुने   हाथ   जीमाउंगी ।
सीतल   माखन    मेलश्री    कर,     कर     कोर      खवाउंगी ।। १ ।।
ओट्यो  दुध  सद्य    धोरीको,   सीयरो   कर   कर   प्याउंगी ।
तातो    जान    जो  न  सुत  पीवत,   पंखा   पवन    ढुराउंगी ।। २ ।।
अमित  सुगंध सुवास सकल अंग,  करि उबटनो गुन गाउंगी ।
उष्ण   सीतल हु  न्हवाय  खोर  जल,   चंदन  अंग  लगाउंगी ।। ३ ।।
त्रिविध ताप नस जात देखि छबि,   निरखत  हीयो सीराउंगी ।
परमानंद सीतल करि  अखियाँ,   बानिक  पर  बल  जाउंगी ।। ४ ।।

जप तप तीरथ नेम धरम व्रत मेरे श्री वल्लभ प्रभु जी

जप तप तीरथ नेम धरम व्रत मेरे श्री वल्लभ प्रभु जी कौ नाम।
सुमिरों मन सदा सुखकारी दुरित कटै सुधरे सब काम॥१॥
हृदै बसैं जसोदा सुत के पद लीला सहित सकल सुख धाम।
रसिकन यह निर्धार कियो है साधन त्यज भज आठौ जाम॥२॥

प्रगट व्है मारग रीत बताई

प्रगट व्है मारग रीत बताई।
परमानंद स्वरूप कृपानिधि श्री वल्लभ सुखदाई॥१॥
करि सिंगार गिरिधरनलाल कों जब कर बेनु गहाई।
लै दर्पन सन्मुख ठाडे है निरखि निरखि मुसिकाई॥२॥
विविध भांति सामग्री हरि कों करि मनुहार लिवाई।
जल अचवाय सुगंध सहित मुख बीरी पान खवाई॥३॥
करि आरती अनौसर पट दै बैठे निज गृह आई।
भोजन कर विश्राम छिनक ले निज मंडली बुलाई॥४॥
करत कृपा निज दैवी जीव पर श्री मुख बचन सुनाई।
बेनु गीत पुनि युगल गीत की रस बरखा बरखाई॥५॥
सेवा रीति प्रीति व्रजजन की जनहित जग प्रगटाई।
‘दास’ सरन ‘हरि’ वागधीस की चरन रेनु निधि पाई॥६॥

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे।
सदा बसो मन यह जीवन धन सबहिन सों जु कहत हों टेरे॥१॥
मधुर बचन अरु नयन मधुर जुग मधुर भ्रोंह अलकन की पांत।
मधुर माल अरु तिलक मधुर अति मधुर नासिका कहीय न जात॥२॥
अधर मधुर रस रूप मधुर छबि मधुर मधुर दोऊ ललित कपोल।
श्रवन मधुर कुंडल की झलकन मधुर मकर दोऊ करत कलोल॥३॥
मधुर कटक्ष कृपा रस पूरन मधुर मनोहर बचन विलास।
मधुर उगार देत दासन कों मधुर बिराजत मुख मृदु हास॥४॥
मधुर कंठ आभूषन भूषित मधुर उरस्थल रूप समाज।
अति विलास जानु अवलंबित मधुर बाहु परिरंभन काज॥५॥
मधुर उदर कटि मधुर जानु जुग मधुर चरन गति सब सुख रास।
मधुर चरन की रेनु निरंतर जनम जनम मांगत ‘हरिदास’ ॥६॥

रावल के कहे गोप

रावल के कहे गोप आज व्रजधुनि ओप कान देदे सुनों बाजे गोकुल मंदिलरा।
जसोदा के पुत्र भयो वृषभानजूसो कह्यो गोपी ग्वाल ले ले धाये दूध दधि गगरा॥१॥
आगे गोपवृंद वर पाछे त्रिया मनोहर चलि न सकत कोऊ पावत न डगरा।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर को जनम सुनि फूल्यो फूल्यो फिरत हे नादे जेसें भंवरा॥२॥

वृंदावन एक पलक जो रहिये

वृंदावन एक पलक जो रहिये।
जन्म जन्म के पाप कटत हे कृष्ण कृष्ण मुख कहिये ॥१॥
महाप्रसाद और जल यमुना को तनक तनक भर लइये।
सूरदास वैकुंठ मधुपुरी भाग्य बिना कहां पइये ॥२॥

हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी

हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी ।
भव सागर ते काढे कृपानिधी राखे शरन अपनी ॥१॥
रसना रटत रहत निशिवासर शेष सहस्त्र फनी ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल त्रिभुवन मुकुट मनी ॥२॥

परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन

परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन करत कृपा निज हाथ दे माथे ।
जे जन शरण आय अनुसरही गहे सोंपत श्री गोवर्धननाथ ॥१॥
परम उदार चतुर चिंतामणि राखत भवधारा बह्यो जाते ।
भजि कृष्णदास काज सब सरही जो जाने श्री विट्ठलनाथे ॥२॥

तिहारे चरन कमल को माहत्म्य

तिहारे चरन कमल को माहत्म्य शिव जाने के गौतम नारी ।
जटाजुट मध्य पावनी गंगा अजहु लिये फिरत त्रिपुरारी ॥१॥
के जाने शुकदेव महामुनि के जाने सनकादिक चार ।
के जाने विरोचन को सुत सर्वस्व दे मेटी कुलगार ॥२॥
के जाने नारद मुनि ज्ञानी गुप्त फिरत त्रैलोक मंझार ।
के जाने हरिजन परमानंद जिनके हृदय बसत भुजचार ॥३॥

४१ - शरण प्रतिपाल गोपाल रति वर्धिनी

शरण प्रतिपाल गोपाल रति वर्धिनी ।
देत पिय पंथ कंथ सन्मुख करत , अतुल करुणामयी नाथ अंग अर्द्धिनी ॥१॥
दीन जन जान रसपुंज कुंजेश्वरी रमत रसरास पिय संग निश शर्दनी ।
भक्ति दायक सकल भव सिंधु तारिनी करत विध्वंसजन अखिल अघमर्दनी ॥२॥
रहत नन्दसूनु तट निकट निसि दिन सदा गोप गोपी रमत मध्य रस कन्दनी ।
कृष्ण तन वर्ण गुण धर्म श्री कृष्ण की कृष्ण लीलामयी कृष्ण सुख कंदनी ॥३॥
पद्मजा पाय तू संगही मुररिपु सकल सामर्थ्य मयी पाप की खंडनी ।
कृपा रस पूर्ण वैकुण्ठ पद की सीढी जगत विख्यात शिव शेष सिर मंडनी ॥४॥
पर्योपद कमल तर और सब छांडि के देख दृग कर दया हास्य मुख मन्दनी ।
उभय कर जोर कृष्णदास विनती करें करो अब कॄपा कलिन्द गिरि नन्दिनी ॥५॥

Sharan pratipaal Gopal rati vardhini.
Dhet pati panth Priya kanth sanmukh karath, atul karunamayi Nath ang ardhini.
Dhin jan jaan raspunj kunjeshwari ramath rasraas Piye sang nis sardani,
bhakti dhayak sakal bhavsindhu taarini karath vidvans jan akhil  adh mardini.
Rahat nandsunu tat nikat nis dhin sada, Gop Gopi  ramath ramath madhya ras kandni,
Krishna taan varn, guun dharam ShriKrishnake Krishnalilamayi Krishna sukh kandini.
Padamaja paye tu, sanghi murripo, sakal saamtharya baee paap ki khandni,
kripa ras pur Vaikunth pad ki seedi, jagat vikhiyat  shiv shesh shir mandni. |
Paryopad kamal tar aur sab chhaad ke, dekh dug kar daya haasyamukh mandini,
Ubay kar jor Krishnadas vinti kare, karo aab kripa Kalind giri Nandni.
Ubay kar jor Krishnadas vinti kare, karo aab kripa Kalind giri Nandini.
Ubay karo jor Krishnadas vinti kare, karo aab kripa Kalind giri  Nandini.

दृढ इन चरण कैरो भरोसो

दृढ इन चरण कैरो भरोसो, दृढ इन चरणन कैरो
श्री वल्लभ नख चंद्र छ्टा बिन, सब जग माही अंधेरो । भरोसो…
साधन और नही या कलि में, जासों होत निवेरो । भरोसो….
सूर कहा कहे, विविध आंधरो, बिना मोल को चेरो । भरोसो……