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श्री गोवर्धनराय लाला

श्री गोवर्धनराय लाला।
अहो प्यारे लाल तिहारे चंचल नयन विशाला॥

तिहारे उर सोहे वनमाला।
याते मोही सकल ब्रजबाला॥ ध्रु.॥

खेलत खेलत तहां गये जहां पनिहारिन की बाट।
गागर ढोरे सीस ते कोऊ भरन न पावत घाट ॥१॥

नंदराय के लाडिले बलि एसो खेल निवार।
मन में आनन्द भरि रह्यो मुख जोवत सकल ब्रजनार॥२॥

अरगजा कुमकुम घोरि के प्यारी लीनो कर लपटाय।
अचका अचका आय के भाजी गिरिधर गाल लगाय॥३॥

यह विधि होरी खेल ही ब्रजबासिन संग लाय।
गोवर्धनधर रूप पै ’जन गोविन्द’ बलि-बलि जाय॥४॥

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई।
पकरी पानि गही नचाई पौरीया जसुमति पकरी नचाई ।१।

हरी भागे, हलधरजू भागे, नंदमहरहू घेरे
तबही मोहन निकसी द्वारव्हे, सखा नाम ले टेरे ।२।
द्वार पुकार सुनत नही कोऊ, तब हरी चढ़े अटारी
आओ रे आओ सखा संग घेरे , घर घेर्यो व्रजनारी ।३।
सुनत टेरे संगी सब दौरे जब अपने धाम ।
अर्जुन तोक कृष्ण मधुमंगल सुबल सुबाहु श्रीदामा ।४।
ग्वालिनी घेर परी जब रोकी आनन पाए नेरे।
चंद्रावली ललितादी आदि श्याम मनोहर घेरे । ५ ।
कित जेहो वस् परे हमारे भजी न सको नन्दलाल ।
फगुवा में हम लेहे पीताम्बर वनमाल । ६।
केसरी डारी सिसते मुख पर शेरी मांड्त राधे ।
विष्णुदास प्रभु भुज गहि गाढे मनवांछित फल साधे ॥७॥

हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई

हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई ।
एतते आयी सुधर राधिका उतते कुंवर कन्हाई॥

हिलमिल फाग परस्पर खेले, शोभा वरनी न जायी,
नन्द घर बजत बधाई ।

बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी बीना डफ सहनाई ।
उड़त अबीर गुलाल कुमकुम । रह्यो सकल व्रज छायी ।
मानो मधवा जर लायी ॥

ले ले हाथ कनक पिचकारी सन्मुख चले चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे जुक जुक चाचर गाई,
परस्पर लोग लुगाई ॥

राधा सेन दई सखीयन को झुंड झुंड गहीर आई।
लपट जपट गई श्यामसुंदरसो, परवश पकर ले आई
लालाजी को नाच नचाई ॥

छीन लई मुरली पीताम्बर सीर ते चूनरी उढाई ।
वेनी भाल नयन विच काजर, नक्वेसर पहेराई
मानो नई नार बनाई ॥

हसत है मुख मोड़ मोड़ के कहा गई चतूराई ।
कहा गए तेरे तात नंदजी कहा जसोदा माई
तुम्हे अब ले छुड़ाई ॥

फगुवा दिए बीन जान न पाओ कोटी करो ऊपाय ।
लेहू काढ कसर सब दीन की तुम चीत्चोर चवाई
बहुत दधी माखन खाई ॥

वदत नाहिन ग्वालिनी जोबन के गारैं

वदत   नाहिन    ग्वालिनी     जोबन   के   गारैं ।
या  ब्रज   में   ऐंडी     फिरै    मन्मथ    उपचारें ।। १ ।।
पहिरै   रातो   पौंमचा    लहिंगा   हरि   किनारैं ।
अति रस तैं निकरी फिरैं   आचार   ढिंग   डारैं ।। २ ।।
नकवेसर    गजरा      बने     चौकी    खगवारे।
अंगियां खमकी   खयें  बनी  कुछ सुं   भरबारैं ।। ३ ।।
फुंफुंदी   डोरी के   झवा  सोहैं   फौंद    फुंदा  रैं ।
सोने  की    बाँकी   बिंदुली  ललित   लीला  रैं ।। ४ ।।
दीरघ  लोचन  छबि  छटा   कजरा   अनियारे ।
जगन्नाथ कविराई के प्रभु मोहि कान्हर कारे ।। ५ ।।

बाजन लागे हेली बहुरि ढफ...

बाजन  लागे   हेली   बहुरि  ढफ  बाजन   लागे  हेली  ।

खेलत  मोहन  सांवरो  हो,  किहीं  मिस  देखन जाय ।
सास   ननद   बैरिन  भई  अब,   कीजे  कौन  उपाय ।। १ ।। बहुरि ढफ...

ओजत   गागर    ढारिये,    जमुना    जल के   काज ।
यह मिस बाहर निकस कै हम, जाई मिलैं तज लाज ।। २ ।। बहुरि ढफ...

आवो    बछरा    मेलिये,     बन कौ    दैहीं    बिडारी ।।
वे दै हैं हम  ही   पठेई   हम,  रहेंगी  धरि   द्वै  चारि ।। ३ ।। बहुरि ढफ...

हा हा री  हौं  जाति हौं  मोपै,   नाहिन  परत   रह्यौ ।
तू  तो  सोचत  ही  रही  तैं,  मान्यो  न  मेरो  कह्यो ।। ४ ।। बहुरि ढफ...

राग   रँग   गहगडी   मच्यौ,    नंदराई    दरबार ।
गाय   खेल   हँसी   लिजीये,   फागु   बड़ो    त्यौहार ।। ५ ।। बहुरि ढफ...

तिन  में    मोहन,   अति  बने,   नांचत  सबै ग्वाल ।
बाजे बहु विध   बाजि  ही,   रूंज   मुरज   ढफ   ताल ।। ६ ।। बहुरि ढफ...

मुरली   मुकुट   बिराज   हीं,   कटि   पट   बाँधे  पीत ।
निरतत आवत   ताज के  प्रभु,   गावत   होरी   गीत ।। ७ ।। बहुरि ढफ..

खेलन खेलन आये हरि नंदगाम ते रंगभीने बरसानें

खेलन खेलन आये हरि   नंदगाम  ते   रंगभीने   बरसानें ।
मृगमद   भेद   अरगजा   चोवा,   सब   नारी   नर   साने ।। १ ।।

दृग ढिंग छांड  मांड  केसरमुख   रिम्कत   सुख  सरसाने ।
बिन   कारज   कारज   कर  राखे   शोभित चख अरसाने ।। २ ।।

सोई  अंजन  विष  ईषद   लोचन    चढ़े   मदन   खरसाने ।
कृष्ण जीवन लछीराम के प्रभु कौं रिम्की भरति अंक्बारी ।। ३ ।।

होरी खेलन आयो मौसौं

होरी खेलन  आयो  मौसौं...होरी खेलन  आयो  मौसौं
लटपटी पाग  अटपटे   पेचन   नैनन   बीच   सुहायो   मौसौं ।। १ ।।

डगर डगर में बगर बगर र्में  सब   हिनके   मन भायो मोहन  ।
आनंदघन प्रभु कर दृग मिडत, हंस हंस कंठ लगायो  मौसौं  ।। २ ।।

रंग हो हो होरियां

रंग   हो   हो   होरियां ।
इत बने नवल किशोर ललन पिय उत बनी नवल किशोरियां ।। १ ।।
ये  नव  नील  जलद  तन सुन्दर   वे   कंचन   तन   गोरियां । 
उनके  अरुण  वसन   तन   राजत    इनके   पीत   पटोरियां ।। २ ।।
फेंटन  सुरंग गुलाल विविध रंग   अरगजा  भरी हें कमोरियां ।
छलबल   करी  दुरि  मुख   लपटावत   चंदन  वंदन   रोरियां ।। ३ ।।
राखी हें  करन   दुराय  सबन मिल  केसर  कनक  कमोरियां ।
सन्मुख दृष्टि बचाय  धाय   जाय    स्याम   सीस तें ढोरियाँ ।। ४ ।।
बाजत ताल मृदंग मुरज डफ    मधुर  मुरली  ध्वनि थोरियां ।
नाचत गावत  करत   कुलाहल    परम चतुर  ओर   भोरियां ।। ५ ।।
एकन कर   गेंदुक   नवलासी  ओर   फूलन   भरि   झोरियां ।
भाजत   राजत   भरत   परस्पर     परिरंभन    झकझोरियाँ ।। ६ ।।
ये ही  रस   निवहो   निसवासर   बंधी  हें   प्रेम की   डोरियाँ ।
माधुरी  के   हित  सुख के  कारण   प्रगटी  हे भूतल जोरियाँ ।। ७ ।।

तुम छके छेल से डोलो

तुम छके छेल से डोलो ।
मन   मोहन   तुम   रात्या   मात्या    जी   चाहे   सोई   बोलो ।। १ ।।

अनत जाय तुम धूम मचावो हमरे बगर,  तुम कबहु न आवो ।
रहे   कहां    ब्रज    मोहन   प्यारे,    गढ़    गढ़   बतिया बोलो ।। २ ।।

जानी    मोहन    रीत    तिहारी,    कपट   गांठ   नहीं   खोलो ।
आनंद   घन     होरी के     ओसर   को   करी    राखों    ओलो ।। ३ ।।

अरी वह नंद महर कौ छोहरा

अरी वह,नंद महर कौ छोहरा, बरज्यौं नहीं मानैं ।
प्रेम लपेटौ अटपटौ औरु मोहि  सुनावै दोहरा ।। १ ।।
                                                   बरज्यौं नहीं मानैं नंद महर कौ छोहरा,
कैसे कै जाऊं दुहावन गैया, आये अगोरे गोंहरा ।
नख-सिख रंग बोरै औ तोरै, मोरे गरे को डोहरा ।। २ ।। बरज्यौ...

गारी दै दै भाव जनावै, और उपजावै मोहरा ।
गोविन्द प्रभु बलवीर बिहारी प्यारी, राधा कौ मीत मनोहरा ।। ३ ।। बरज्यौ...

गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फा

गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फाग। मोहन मुरली बजावैं गावें गोरी राग ॥१॥
नर नारी एकत्र व्है आये नंद दरबार। साजे झालर किन्नरी आवज डफ कठतार ॥२॥
चोवा चन्दन अरगजा और कस्तूरी मिलाय। बाल गोविन्द को छिरकत सोभा बरनी न जाय॥३॥
बूका बंदन कुमकुमा ग्वालन लिये अनेक। युवती यूथ पर डारही अपने-अपने टेक॥४॥
सुर कौतुक जो थकित भये थकि रहे सूरज चंद। ’कृष्णदास’ प्रभु विहरत गिरिधर आनन्द कंद॥५॥

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे द्वै बाप द्वै महतारी

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे द्वै बाप द्वै महतारी।
नवरंगीले नवल बिहारी हम दैंहि कहा कहि गारी॥१॥
द्वै बाप सबै जग जाने। सो तो वेद पुरान बखाने॥
वसुदेव देवकी जाये। सो तो नंद महर घर आये॥२॥
हम बरसाने की नारी। तुम्हे दैं हैं हँसि-हँसि गारी।
तेरी भूआ कुंती रानी। सो तो सूरज देख लुभानी॥३॥
तेरी बहन सुभद्रा क्वारी। सो तो अर्जुन संग सिधारी॥
तेरी द्रुपदसुता सी भाभी। सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी॥४॥
हम जाने जू हम जानै। तुम ऊखल हाथ बंधाने॥
हम जानी बात पहचानी। तुम कब ते भये दधि दानी॥५॥
तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो। कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो॥
’जनकृष्ण’ गारी गावे। तब हाथ थार कों लावे॥६॥

खेलत फाग फिरत रस फूले

खेलत फाग फिरत रस फूले।
स्यामा स्याम प्रेम बस नाचत गावत सुरंग हिंडोरे झूले॥१॥
वृंदावन की जीवन दोऊ नटनागर बंसी बट कूले।
व्यास स्वामिनी की छबि निरखत नैन कुरंग फिरत रसमूले॥२॥

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले।
नंदमहर को लाडिलो मोसो ऐंठ्यो ही डोले॥१॥
राधा जू पनिया निकसी वाको घूंघट खोले।
’सूरदास’ प्रभु सांवरो हियरा बिच डोले॥२॥

लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू

लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू।
बदन चन्द्रमा नैन चकोरी इन अन्तर जिन पारो जू ॥१॥
गावो राग बसन्त परस्पर अटपटे खेल निवारो जू।
कुमकुम रंग सों भरी पिचकारी तकि नैनन जिन मारो जू॥२॥
बंक विलोचन दुखमोचन लोचन भरि दृष्टि निहारो जू।
नागरी नायक सब सुख गायक कृष्णदास को तारो जू॥३॥