Showing posts with label ब्रह्मदास. Show all posts
Showing posts with label ब्रह्मदास. Show all posts

चैत्रमास संवत्सर परिवा, नयो परव मान्यो हे आज

चैत्रमास संवत्सर परिवा, नयो परव मान्यो हे आज ।
नूतन लाड, लड़ावत सब विधि,  श्रीवल्लभ श्रीविठ्ठल महाराज ॥ १ ॥

नये बसन मनिगन आभूषण,  धरत असन नये रूचि उपजाय ।
अचमन  करि,  मुख पोंछि बसनतें, बीरी देत सुगंध मिलाय ॥ २ ॥

विविध फूलमंडली मनोहर, आँगन मोतिन चोक पुराय ।
आरती करत जु, मात यशोदा,  न्योछावर करि अति सचुपाय ॥ ३ ॥

नवदल निम्ब मधुर मिश्री ले, देत सबनकों मन हरखाय ।
ब्रह्मदासकों, माला बीडा देत, प्रभु अति निकट बुलाय ॥ ४ ॥