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वर्षा की अगवानी , आये माई वर्षा की अगवानी
वर्षा की अगवानी , आये माई वर्षा की अगवानी।
दादुर मोर पपैया बोले, कुंजन बग्पांत उडानी ॥१॥
घनकी गरज सुन, सुधी ना रही कछु,
बदरन देख डरानी ।
कुम्भनदास प्रभु गोवर्धनधर,
लाल भये सुखदानी ॥२॥
दादुर मोर पपैया बोले, कुंजन बग्पांत उडानी ॥१॥
घनकी गरज सुन, सुधी ना रही कछु,
बदरन देख डरानी ।
कुम्भनदास प्रभु गोवर्धनधर,
लाल भये सुखदानी ॥२॥
શ્રી ગોવર્ધ્ધન દીપમાલિકા સબ દેખનકો આયે
શ્રી ગોવર્ધ્ધન દીપમાલિકા સબ દેખનકો આયે |
અરસપરસ વ્યંજન કરકે સબ બ્રજવાસી પૂજનકો ધાયે || ૧ ||
તબ નંદ ઉપનંદ બુલાયે બ્રજવાસી સબહી પહરાયે |
કુંભનદાસ લાલ ગીરીધરને સબ વ્રજ્જનકે હિયે સિરાયે || ૨ ||
हिलगन कठिन है या मनकी
हिलगन कठिन है या मनकी |
जाके लियें सुनों मेरी सजनी लाज गई सब तनकी || १ ||
लोक हसो परलोक हिजाओ और देओ कुलगारी |
सो क्यों रहे ताहि बिन देखें जो जाको हितकारी || २ ||
रसलुब्ध निमिष नहीं छान्डत ज्यों आधीन मृग गानें |
कुमनदास स्नेह मरमकी श्री गोवर्ध्धनधर जानें || ३ ||
जाके लियें सुनों मेरी सजनी लाज गई सब तनकी || १ ||
लोक हसो परलोक हिजाओ और देओ कुलगारी |
सो क्यों रहे ताहि बिन देखें जो जाको हितकारी || २ ||
रसलुब्ध निमिष नहीं छान्डत ज्यों आधीन मृग गानें |
कुमनदास स्नेह मरमकी श्री गोवर्ध्धनधर जानें || ३ ||
मात जशोदा परव मनावे
मात जशोदा परव मनावे |
भोगी के दिन तिल लडुवा ले लालनकोंजू जिमावे || १ ||
गोद बेठाय निहारत सुत मुख नानाविध के दान दिवावे |
कुंभनदास प्रभु गोवरधनधर निरख निरख सब ही सुख पावे || २ ||
भोगी के दिन तिल लडुवा ले लालनकोंजू जिमावे || १ ||
गोद बेठाय निहारत सुत मुख नानाविध के दान दिवावे |
कुंभनदास प्रभु गोवरधनधर निरख निरख सब ही सुख पावे || २ ||
मात जशोदा परव मनावे
मात जशोदा परव मनावे |
भोगी के दिन तिल लडुवा ले लालनकोंजू जिमावे || १ ||
गोद बेठाय निहारत सुत मुख नानाविध के दान दिवावे |
कुंभनदास प्रभु गोवरधनधर निरख निरख सब ही सुख पावे || २ ||
भोगी के दिन तिल लडुवा ले लालनकोंजू जिमावे || १ ||
गोद बेठाय निहारत सुत मुख नानाविध के दान दिवावे |
कुंभनदास प्रभु गोवरधनधर निरख निरख सब ही सुख पावे || २ ||
बसंत राजभोग खेल के पद
बसंत राजभोग खेल के पद
और राग सब भये बाराती दूल्हे राग बसंत ।
मदन महोच्छव आज सखी री बिदा भयौ हेमंत ।। १ ।।
मधुरे सूर कोकिल कल कूजत बोलति मोर हंसत ।
गावति नारि पंचम सूर ऊँचे जैसें पिक गुनवंत ।। २ ।।
हाथन लई कनक पिचकाई मोहन चाल चलन्ति ।
कुंभनदास स्यामा प्यारी कों मिल्यो हे भांमतो कंत ।। ३ ।।
मदन महोच्छव आज सखी री बिदा भयौ हेमंत ।। १ ।।
मधुरे सूर कोकिल कल कूजत बोलति मोर हंसत ।
गावति नारि पंचम सूर ऊँचे जैसें पिक गुनवंत ।। २ ।।
हाथन लई कनक पिचकाई मोहन चाल चलन्ति ।
कुंभनदास स्यामा प्यारी कों मिल्यो हे भांमतो कंत ।। ३ ।।
आज मोहि आगम अगम जनायो...
आज मोही आगम अगम जनायो ।
सोंधों छानी अरगजा चंदन, आंगन भवन लीपायों ।। १ ।।
आगम आवन जान प्रीतम कों, गोपीजन मंगल गायो ।
आनंद उर न समाय सखी, नव साजि सिंगार बनायों ।। २ ।।
तन सुख पाग पिछोरा झीनो, केसर रंग रंगायो ।
मुक्ता के आभूषण गुही मनी, पहिरावत हुलसायो ।। ३ ।।
पंखा बहु सिर प्रीतम कों, नित राखुंगी छिरकायों ।
ग्रीष्म ऋतु सुख देती नायक, यह औसर चली आयों ।। ४ ।।
आवेंगे महेमान आज हरि, भाग्य बड़े दिन पायों ।
'कुंभनदास' नव नेह नई ऋतु, आगम सुजस सुनायों ।। ५ ।।
आज मोही आगम अगम जनायो
आज मोही आगम अगम जनायो ।
सोंधों छानी अरगजा चंदन, आंगन भवन लीपायों ।। 1 ।।
आगम आवन जान प्रीतम कों , गोपीजन मंगल गायो ।
आनंद उर न समाय सखी, नव साजि सिंगार बनायो ।। 2 ।।
तन सुख पाग पिछोरा झीनो, केसर रंग रंगायो ।
मुक्ता के आभूषन गुही मनी, पहिरावत हुलसायो ।। 3 ।।
पंखा बहु सिर प्रीतम कों, नित राखुंगी छिरकायों ।
ग्रीषम ऋतू सुख देती नाईक, यह औसर चली आयों ।। 4 ।।
आवेंगे महेमान आज हरि, भाग्य बड़े दिन पायों ।
'कुंभनदास' नव नेह नई ऋतू, आगम सुजस सुनायों ।। 5 ।।
मदन गुपाल हमारे आवत
मदन गुपाल हमारे आवत, आनंद मंगल गाऊंगी |
जल गुलाब के, ढोरी अरगजा, पायन चंदन लगाउंगी || १ ||
सीतल चंदन सुखद के साजति, कुच भुज बीच बसाउंगी |
'कुंभनदास', लाल गिरिधर को, जो एकांत कर पाउंगी || २ ||
तेरे मनकी बात कौन जानेरी...
तेरे मन की बात कौन जानेरी |
जोपें डर होई तो नंदसून बोले, ऐसी कौन युवती जो न मानेरी || १ ||
तेरी अरु हरि की मिलिये चलती है माई, यह बूझ परत है जिय अपनेरी |
कुंभनदास प्रभु गिरिधरन मोहन, यह व्रज युवती औरन गिनेरी || २ ||
भोजन करत नंदलाल, संग लिये व्रजबाल
भोजन करत नंदलाल, संग लिये व्रजबाल,
बैठे हैं कालिंदी कुल, चंचल नैन बिसाल ।
छाक भरि लाई थाल, परसपर करत ख्याल,
हंसी हंसी चुंबत गाल, बोलत बचन रसाल ।। 1 ।।
आसपास बैठे, वाम मधि मोहे, घनश्याम जैंवत,
सुख के धाम, रस भरे रसिक लाल ।
विमल चरित करत गान, आज्ञा भई कुंवर कान्ह,
दास कुंभन गावत राग मलार, निरखि भये निहाल ।। 2 ।।
बैठे हैं कालिंदी कुल, चंचल नैन बिसाल ।
छाक भरि लाई थाल, परसपर करत ख्याल,
हंसी हंसी चुंबत गाल, बोलत बचन रसाल ।। 1 ।।
आसपास बैठे, वाम मधि मोहे, घनश्याम जैंवत,
सुख के धाम, रस भरे रसिक लाल ।
विमल चरित करत गान, आज्ञा भई कुंवर कान्ह,
दास कुंभन गावत राग मलार, निरखि भये निहाल ।। 2 ।।
साँझ के साँचे बोल तिहारे
साँझ के साँचे बोल तिहारे।
रजनी अनत जागे नंदनंदन आये निपट सवारे॥१॥
अति आतुर जु नीलपट ओढे पीरे बसन बिसारे।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर भले वचन प्रतिपारे॥२॥
रजनी अनत जागे नंदनंदन आये निपट सवारे॥१॥
अति आतुर जु नीलपट ओढे पीरे बसन बिसारे।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनधर भले वचन प्रतिपारे॥२॥
आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन
भोग सरने के समय
आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंत हि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥१॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥२॥
आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंत हि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥१॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥२॥
हमारो दान देहो गुजरेटी
हमारो दान देहो गुजरेटी।
बहुत दिनन चोरी दधि बेच्यो आज अचानक भेटी॥१॥
अति सतरात कहा धों करेगी बडे गोप की बेटी।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनध्र भुज ओढनी लपेटी॥२॥
बहुत दिनन चोरी दधि बेच्यो आज अचानक भेटी॥१॥
अति सतरात कहा धों करेगी बडे गोप की बेटी।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धनध्र भुज ओढनी लपेटी॥२॥
गाय सब गोवर्धन तें आईं
गाय सब गोवर्धन तें आईं।
बछरा चरावत श्री नंदनंदन, वेणु बजाय बुलाई॥१॥
घेरि न घिरत गोप बालक पें, अति आतुर व्हे धाई।
बाढी प्रीत मदन मोहन सों, दूध की नदी बहाई ॥२॥
निरख स्वरूप ब्रजराज कुंवर को, नयनन निरख निकाई ।
कुंभनदास प्रभु के सन्मुख, ठाडी भईं मानो चित्र लिखाई॥३॥
बछरा चरावत श्री नंदनंदन, वेणु बजाय बुलाई॥१॥
घेरि न घिरत गोप बालक पें, अति आतुर व्हे धाई।
बाढी प्रीत मदन मोहन सों, दूध की नदी बहाई ॥२॥
निरख स्वरूप ब्रजराज कुंवर को, नयनन निरख निकाई ।
कुंभनदास प्रभु के सन्मुख, ठाडी भईं मानो चित्र लिखाई॥३॥
२५ - श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ
श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ।
ऐसी महिमा जानि भक्त को सुख दान, जोइ मांगो सोइ जु पाऊं ॥१॥
पतित पावन करन नामलीने तरन, दृढ कर गहि चरन कहूं न जाऊं ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत यहि चाहत नहिं पलक लाऊं ॥२॥
ऐसी महिमा जानि भक्त को सुख दान, जोइ मांगो सोइ जु पाऊं ॥१॥
पतित पावन करन नामलीने तरन, दृढ कर गहि चरन कहूं न जाऊं ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत यहि चाहत नहिं पलक लाऊं ॥२॥
ShriYamune raskhaan ko shish
naao,
Aisi mahima jaan bhakhtko sukhdaan, joi maango soi ju paao.
Patit paavan karan naam lino taran dhad kar gahi charan kahu a jaao,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhat, yehi chaahat nahi palak laao.
२६ - श्री यमुने अगनित गुन गिने न जाई
श्री यमुने अगनित गुन गिने न जाई ।
श्री यमुने तट रेणु ते होत है नवीन तनु, इनके सुख देन की कहा करो बडाई ॥१॥
भक्त मांगत जोई देत तिहीं छिनु सो ऐसी को करे प्रण निभाई ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत, कहो कैसे करि मन अघाई ॥२॥
ShriYamune agnit guun ginay a jaai.
ShriYamune that renu te hot he navin tanu, inke sukh dhen ki kahan karo badai.
Bhakt maangat joi dhet tihi chinu, so aisi ko kare prad nibhai,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhit, kaho kaise kari man agai.
श्री यमुने तट रेणु ते होत है नवीन तनु, इनके सुख देन की कहा करो बडाई ॥१॥
भक्त मांगत जोई देत तिहीं छिनु सो ऐसी को करे प्रण निभाई ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत, कहो कैसे करि मन अघाई ॥२॥
ShriYamune agnit guun ginay a jaai.
ShriYamune that renu te hot he navin tanu, inke sukh dhen ki kahan karo badai.
Bhakt maangat joi dhet tihi chinu, so aisi ko kare prad nibhai,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhit, kaho kaise kari man agai.
२७ - श्री यमुने पर तन मन धन प्राण वारो
श्री यमुने पर तन मन धन प्राण वारो ।
जाकी कीर्ति विशद कौन अब कहि सकै, ताहि नैनन तें न नेक टारों ॥१॥
चरण कमल इनके जु चिन्तत रहों, निशदिनां नाम मुख तें उचारो ।
कुम्भनदास कहे लाल गिरिधरन मुख इनकी कृपा भई तब निहारो ॥२॥
ShriYamune par tan man dhan pran vaaro.
Jaaki kirti vishad kaun aab kahi sake, taahi neinte na nekh taaro.
Charan kamal inke ju chintat raho, nishdhin naam mukhte uchaaro.
Kumbhandas kahe LalGirisharan mukh, inki kripa bhaiy taab niharo.
जाकी कीर्ति विशद कौन अब कहि सकै, ताहि नैनन तें न नेक टारों ॥१॥
चरण कमल इनके जु चिन्तत रहों, निशदिनां नाम मुख तें उचारो ।
कुम्भनदास कहे लाल गिरिधरन मुख इनकी कृपा भई तब निहारो ॥२॥
ShriYamune par tan man dhan pran vaaro.
Jaaki kirti vishad kaun aab kahi sake, taahi neinte na nekh taaro.
Charan kamal inke ju chintat raho, nishdhin naam mukhte uchaaro.
Kumbhandas kahe LalGirisharan mukh, inki kripa bhaiy taab niharo.
२८ - भक्त इच्छा पूरन श्री यमुने जु करता
भक्त इच्छा पूरन श्री यमुने जु करता ।
बिना मांगे हु देत कहां लौ कहों हेत, जैसे काहु को कोऊ होय धरता ॥१॥
श्री यमुना पुलिन रास, ब्रज बधू लिये पास, मन्द मन्द हास कर मन जू हरता ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत,यही जिय लेखत श्री यमुने जु भरता ॥२॥
Bhakt ki icha puran ShriYamune ju karta.
Bhina maange hu dhet kahan lo kaho het, jaise kahu ko kohu hoy dharta.
ShriYamuna puleen raas Brij badu liye paas, mandh mandh haaskar manju harta,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhit, yehi jiye lekhat ShriYamune ju bharta.
बिना मांगे हु देत कहां लौ कहों हेत, जैसे काहु को कोऊ होय धरता ॥१॥
श्री यमुना पुलिन रास, ब्रज बधू लिये पास, मन्द मन्द हास कर मन जू हरता ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत,यही जिय लेखत श्री यमुने जु भरता ॥२॥
Bhakt ki icha puran ShriYamune ju karta.
Bhina maange hu dhet kahan lo kaho het, jaise kahu ko kohu hoy dharta.
ShriYamuna puleen raas Brij badu liye paas, mandh mandh haaskar manju harta,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhit, yehi jiye lekhat ShriYamune ju bharta.
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