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श्री वल्लभ तजि अपुनो ठाकुर

श्री   वल्लभ   तजि अपुनो ठाकुर,   कहो   कौनपें  जैये  हो ।
सब   गुन  पूरन  करुना  सागर,   जहाँ  महारस   पैये   हो ।। १ ।।
सुरत ही देख  अनंग विमोहित, तन मन  प्रान  बिकैये  हो ।
परम उदार चतुर सुख सागर,   अपार  सदा  गुन  गैये   हो ।। २ ।।
सबहिनतें अति उत्तम जानियें,  चरनन   प्रीति   बढेये हो ।
कान न काहू की मन धरिये,   व्रत   अनन्य एक ग्रहिये हो ।। ३ ।।  
सुमिर सुमिर गुन रूप अनुपम, भाव दु:ख सबें बिसरैये हो ।
मुख बिधु लावन्य अमृत इक टक, पीवत नाहिं अघइये हो ।। ४ ।।
चरन कमल की निसदिन  सेवा,   अपने  ह्रदय   बसैये  हो ।
'रसिक' कहै संगीन सों भवो-भव,   इनके   दास  कहैये हो ।। ५ ।।

भूतल महा महोत्सव आज...

भूतल  महा  महोत्सव  आज  ।
श्री लक्ष्मण गृह प्रकट भये हैं,  श्री   वल्लभ   महाराज  ।। १ ।।
आज्ञा  दई  दया  कर  श्री हरी,   पुष्टि   प्रकटवे   काज  ।
कलिमें   जन्म  उबार्यो  ततछिन,   बूडत  वेद  जहाज  ।। २ ।।
आनंद  मूरति निरखत  नयनन,  फूले  भक्त  समाज  ।
नाचत गावत विवश भये सब, छांड लोक  कूल  लाज  ।। ३ ।।
घर घर मंगल बजत बधाई,   सजत   नये   नये साज  ।
मगन भये तन गिनत न  काहू,  तिन  लोक पर गाज  ।। ४ ।। 
लीलासिंधु    महारस    अबतें,   बंधी    प्रेमकी   पाज  ।
रसिक शिरोमणि सदा विराजो, श्री वल्लभ शिरताज  ।। ५ ।।

लीला होती जूनी नातर...

नातर लीला होती जूनी ।
जोपें श्री वल्लभ प्रभु प्रकट न होते, वसुधा रहती सूनी ।। १ ।।
दिन प्रति नई  नई छबि लागत, ज्यों कंचन नग चुनी ।
सगुणदास यह घर को सेवक, यश गावत जाको मुनि ।। २ ।।

सुनोंरी आज नवल बधायो हे...

श्री महाप्रभुजी की बधाई

सुनोंरी आज नवल बधायो हे ।
श्री लक्ष्मण गृह प्रकट भये  हें ,   श्री वल्लभ   मन  भायो हे ।। १ ।।
बाजत  आवज   ढोलक   महुवर,   घन ज्यों  ढोल बजायो हे ।
कोकिल  कंठ   नवल   वनिता    मिल,    मंगल   गायो   हे ।। २ ।।
हरदी तेल   सुगंध   सुवासित,   लालन   उबट   न्हावायो हे ।
नखशिखलों   आभूषण    भूषित,    पीताम्बर    पहरायो हे ।। ३ ।।
अशन वसन कंचन मणि  माणिक,  घरघर याचक पायो हे ।
श्री विठ्ठल गिरिधरन  कृपानिधि,   पलनामांझ   झुलायो  हे ।। ४ ।।

केसर की धोती पहिरें, केसरी उपरना ओढें

केसर की धोती पहिरें, केसरी उपरना ओढें, तिलक मुद्रा धरि बैठें श्री लछमन भट धाम।
जन्म द्यौस जानि जानि, अद्भुत रुचि मानि मानि, नख सिख की सोभा ऊपर वारों कोटि काम॥१॥
सुंदरताई निकाई तेज प्रताप अतुलताई आस पास युवतीजन करत हैं गुनगान।
पद्मनाभ प्रभु विलोकि गिरिवरधर वागधीस यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान॥२॥

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ कृपा निधान अति उदार करुनामय दीन द्वार आयो।
कृपा भरि नैन कोर देखिये जु मेरी ओर जनम जनम सोधि सोधि चरन कमल पायो॥१॥
कीरति चहुँ दिसि प्रकास दूर करत विरह ताप संगम गुन गान करत आनंद भरि गाऊँ।
विनती यह यह मान लीजे अपनो हरिदास कीजे चरन कमल बास दीजे बलि बलि बलि जाऊँ॥२॥

प्रगट भये श्री वल्लभ पुरुषोत्तम बदन अग्नि अवतार

आज जगती पर जयजय जार।
प्रगट भये श्री वल्लभ पुरुषोत्तम बदन अग्नि अवतार॥१॥
धन्य दिन माधव मास एकादसी कृष्ण पच्छ रविवार।
श्री मुख वाक्य कलेवर सुन्दर धर्यो जगमोहन मार॥२॥
श्री भगवत आत्म-अंग जिनके प्रगट करन विस्तार।
दुंदुभी देव बजावत गावत सुर-वधू मंगल चार॥३॥
पुष्टि प्रकास करेंगे भू पर जनहित जग अवतार।
आनंद उमग्यो लोक तिहूंपुर जन ’गिरिधर’ बलिहार॥२॥

वल्लभ भूतल प्रगट भये

वल्लभ भूतल प्रगट भये।
माधव मास कृष्ण एकादशी पूरन विधु उदये॥१॥
पुत्र जन्म सुन श्री लछमन भट बहु विधि दान दिये।
मागध सूत बंदीजन बोलत सब दुःख दूर गये॥२॥
पुष्टि प्रकास करन को आये द्विज स्वरूप धरये।
विष्णुदास के सिर बिराजत प्रभु आनंदमये॥३॥

प्रगट भये प्रभु श्रीमद वल्लभ ब्रज वल्लभ द्विज देह

प्रगट भये प्रभु श्रीमद वल्लभ ब्रज वल्लभ द्विज देह।
निजजन सब आनंदित गावत बजत बधाई सबहिन के गेह॥१॥
भूतल प्रगट्यो भाव श्रुतिन को उपज्यो नंदनंदन पद नेह।
मिटे ताप निजजन के मन के बरखे प्रेम भक्ति रस मेह॥२॥
निरखत श्री मुखचंद सबन के दूर भये सब निगम संदेह।
मिटि गये सब कपट कुटिल खल मारग भस्म भये सब आसुर जेह॥३॥
करत केलि कुंजन नित गिरिधर सुधि करिवो जो पूरव नेह।
कहत दास जोरी चिरजीयो क्यों गुन बरनें नाहिन छेह॥४॥

जब तें वल्लभ भूतल प्रगट भये

जब तें वल्लभ भूतल प्रगट भये।
वदन सुधानिधि निरखत प्रभु कौ सब दूर गये॥१॥
श्री लछमन वंस उजागर सागर भक्ति वेद सब फिर जुटये।
मायावाद सब खंड खंडन करि अति आनंद भये॥२॥
गिरिधर लीला विस्तारन कारन दिन दिन केलि रये।
सगुनदास सिर हस्तकमल धरि श्री चरनांबुज गहे॥३॥

तत्व गुन बान भुवि माधवासित तरनि

तत्व गुन बान भुवि माधवासित तरनि प्रथम भगवद दिवस प्रगट लछमन सुवन।
धन्य चम्पारण्य मन त्रैलोकजन अन्य अवतार होय है न ऐसो भुवन॥१॥
लग्न वसु कुंभ गति केतु कवि इंदु सुख मीन बुध उच्च रवि वैर नासे।
मंद वृष कर्क गुरु भौम युत तम सिंघ योग ध्रुवकरन बव यस प्रकासे॥२॥
ऋच्छ धनिष्ठा प्रतिष्ठा अधिष्ठान स्थित विरह वदना-नलाकार हरिको।
येहि निस्चै द्वरकेस इनकी सरन और वल्भाधीस सर को ॥३॥

सुखद माधव मास कृष्ण एकादशी

सुखद माधव मास कृष्ण एकादशी भट्ट लछमन गेह प्रगट बैठे आइ।
ब्रज जुवती गूढ मन इंद्रियाधीस आनंद गृह जानि विधु निगमगति घट पाइ॥१॥
अज्ञ जन ग्रहन सुत भवन तैसो जानि बिमल मति पाइ विधु जात हेरी आइ।
दनुज मायिक मत नम्र कंधर किये लिये ध्वज जानि ध्वज सुक्र है सुखदाई॥२॥
अवनितल मलिनता दूर करिवे काज गेह सुख दैन जामित्र गति सन जाइ।
धर्म पथ भूप गुरु चरन वल्लभ जानि देव गुरु भौम अनुचर भए री आइ॥३॥
प्रखर मायावाद सत्रु संघात कारन सूररिपु सदन को छाइ।
गिरिधरन कर्म अर्पन विधुतुंद दसम गेह गहि रहत अनुकूल कृतिकों पाइ॥४॥

कांकरवारे तैलंग तिलक द्विज वंदो श्रीमद लछमननंद

कांकरवारे तैलंग तिलक द्विज वंदो श्रीमद लछमननंद ।
द्वैपथ राज सिरोमनि सुंदर भूतल प्रगटे वल्लभ चंद॥१॥
अबजु गहे विष्णुस्वामी पथ नवधा भक्ति रतन रस कंद ।
दरसन ही प्रसन्न होत मन प्रगटे पूरन परमानंद॥२॥
कीरत विसद कहां लों बरनों गावत लीला श्रुति सुर छंद।
सगुनदास प्रभु षट्गुन संपन्न कलिजन उद्धरन आनंद कंद॥३॥

श्री वल्लभ लाल पालने झूलें मात एलम्मा झुलावे हों

श्री वल्लभ लाल पालने झूलें मात एलम्मा झुलावे हों।
रतन जटित कंचन पलना पर झूमक मोती सुहावे हो॥१॥
झालर गज मोतिन की राजत दच्छिन चीर उढावे हो।
तोरन घुंघरु घमक रहे हैं झुंझना झमकि मिलावे हो॥२॥
चुचकारत चुटकी दै नचावत चुंबन दै हुलरावे हो।
किलकि किलकि हँसत मुख प्रमुदित बाललीला जाहि भावे हो॥३॥
कबहुँ उरज पय पान करावत फिर पलना पोढावे हो।
पीठ उठाय मैया सन्मुख व्है आपुन रीझि रिझावे हो॥४॥
महाभाग्य हैं तात मात दोऊ आपुन यों बिसरावै हो।
वल्लभदास आस सब पूजी श्री वल्लभ दरस दिखावे हो॥५॥

जप तप तीरथ नेम धरम व्रत मेरे श्री वल्लभ प्रभु जी

जप तप तीरथ नेम धरम व्रत मेरे श्री वल्लभ प्रभु जी कौ नाम।
सुमिरों मन सदा सुखकारी दुरित कटै सुधरे सब काम॥१॥
हृदै बसैं जसोदा सुत के पद लीला सहित सकल सुख धाम।
रसिकन यह निर्धार कियो है साधन त्यज भज आठौ जाम॥२॥

प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये

प्रभु श्रीलछमन गृह प्रगट भये।
हरि लीला रस सिंधु कला निधि बचन किरन सब ताप गये॥१॥
मायावाद तिमिर जीवन को प्रगटत नास भयो उर अंतर ।
फूले भक्त कुमोदिनी चहुँ दिस सोभित भये भक्ति मन सारस॥२॥
मुदित भये कमल मुख तिनके वृथा वाद आये गनत बल।
गिरिधर अन्य भजन तारागन मंद भये भजि गावत चंचल॥३॥

आनंद आज भयो हो भयो जगती पर जय जय कार

आनंद आज भयो हो भयो जगती पर जय जय कार।
श्री लछमन गृह प्रगट भये हैं श्री वल्लभ सुकुमार॥१॥
धन्य धन्य माधव मास एकादसी कृष्णपक्ष रविवार।
गुननिधान श्री गिरिधर प्रगटे लीला द्विज तनु धार॥२॥

श्री लछमन कुल चंद उदित जग उद्योतकारी

श्री लछमन कुल चंद उदित जग उद्योतकारी।
मात इलम्मा विमलराका उडुगन निजजन समाज पोषत पीयूष वचन हरियस उजियारी॥१॥
करुनामय निष्कलंक मायावाद तिमिर हरन सकल कला पूरन मन द्विजवपुधारी।
बलि बलि बलि माधोदास चरन कमल किये निवास भयो चकोर लोचन छबि निरखत गिरिधारी॥२॥

प्रगट व्है मारग रीत बताई

प्रगट व्है मारग रीत बताई।
परमानंद स्वरूप कृपानिधि श्री वल्लभ सुखदाई॥१॥
करि सिंगार गिरिधरनलाल कों जब कर बेनु गहाई।
लै दर्पन सन्मुख ठाडे है निरखि निरखि मुसिकाई॥२॥
विविध भांति सामग्री हरि कों करि मनुहार लिवाई।
जल अचवाय सुगंध सहित मुख बीरी पान खवाई॥३॥
करि आरती अनौसर पट दै बैठे निज गृह आई।
भोजन कर विश्राम छिनक ले निज मंडली बुलाई॥४॥
करत कृपा निज दैवी जीव पर श्री मुख बचन सुनाई।
बेनु गीत पुनि युगल गीत की रस बरखा बरखाई॥५॥
सेवा रीति प्रीति व्रजजन की जनहित जग प्रगटाई।
‘दास’ सरन ‘हरि’ वागधीस की चरन रेनु निधि पाई॥६॥

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे।
सदा बसो मन यह जीवन धन सबहिन सों जु कहत हों टेरे॥१॥
मधुर बचन अरु नयन मधुर जुग मधुर भ्रोंह अलकन की पांत।
मधुर माल अरु तिलक मधुर अति मधुर नासिका कहीय न जात॥२॥
अधर मधुर रस रूप मधुर छबि मधुर मधुर दोऊ ललित कपोल।
श्रवन मधुर कुंडल की झलकन मधुर मकर दोऊ करत कलोल॥३॥
मधुर कटक्ष कृपा रस पूरन मधुर मनोहर बचन विलास।
मधुर उगार देत दासन कों मधुर बिराजत मुख मृदु हास॥४॥
मधुर कंठ आभूषन भूषित मधुर उरस्थल रूप समाज।
अति विलास जानु अवलंबित मधुर बाहु परिरंभन काज॥५॥
मधुर उदर कटि मधुर जानु जुग मधुर चरन गति सब सुख रास।
मधुर चरन की रेनु निरंतर जनम जनम मांगत ‘हरिदास’ ॥६॥