Showing posts with label महात्म्य. Show all posts
Showing posts with label महात्म्य. Show all posts

श्री वल्लभ प्रभु करुणा सागर, जगत उजागर गाइये

श्री वल्लभ प्रभु करुणा सागर, जगत उजागर गाइये।
श्री वल्लभ के चरण कमल की, बलि बलि बलि बलि जाइये॥१॥
वल्लभ सृष्टि समाज संग मिल, जीवन को फल पाइये ।
श्री वल्लभ गुण गाइये, जा हि ते रसिक कहाइये॥२॥

प्रगट व्है मारग रीत बताई

प्रगट व्है मारग रीत बताई।
परमानंद स्वरूप कृपानिधि श्री वल्लभ सुखदाई॥१॥
करि सिंगार गिरिधरनलाल कों जब कर बेनु गहाई।
लै दर्पन सन्मुख ठाडे है निरखि निरखि मुसिकाई॥२॥
विविध भांति सामग्री हरि कों करि मनुहार लिवाई।
जल अचवाय सुगंध सहित मुख बीरी पान खवाई॥३॥
करि आरती अनौसर पट दै बैठे निज गृह आई।
भोजन कर विश्राम छिनक ले निज मंडली बुलाई॥४॥
करत कृपा निज दैवी जीव पर श्री मुख बचन सुनाई।
बेनु गीत पुनि युगल गीत की रस बरखा बरखाई॥५॥
सेवा रीति प्रीति व्रजजन की जनहित जग प्रगटाई।
‘दास’ सरन ‘हरि’ वागधीस की चरन रेनु निधि पाई॥६॥

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे

श्री वल्लभ मधुराकृति मेरे।
सदा बसो मन यह जीवन धन सबहिन सों जु कहत हों टेरे॥१॥
मधुर बचन अरु नयन मधुर जुग मधुर भ्रोंह अलकन की पांत।
मधुर माल अरु तिलक मधुर अति मधुर नासिका कहीय न जात॥२॥
अधर मधुर रस रूप मधुर छबि मधुर मधुर दोऊ ललित कपोल।
श्रवन मधुर कुंडल की झलकन मधुर मकर दोऊ करत कलोल॥३॥
मधुर कटक्ष कृपा रस पूरन मधुर मनोहर बचन विलास।
मधुर उगार देत दासन कों मधुर बिराजत मुख मृदु हास॥४॥
मधुर कंठ आभूषन भूषित मधुर उरस्थल रूप समाज।
अति विलास जानु अवलंबित मधुर बाहु परिरंभन काज॥५॥
मधुर उदर कटि मधुर जानु जुग मधुर चरन गति सब सुख रास।
मधुर चरन की रेनु निरंतर जनम जनम मांगत ‘हरिदास’ ॥६॥

भरोसो वल्लभ ही को राखो

भरोसो वल्लभ ही को राखो।
सगरे काज सरेंगे छिन में, इन ही के गुन भाखो ॥१॥
निस दिन संग करो भक्तन को, असमर्पित नही चाखो।
वल्लभ श्री वल्लभ पद रज बिन और तत्व सब नाखो ॥२॥

आसरो एक दृढ श्री वल्लभाधीश को

आसरो एक दृढ श्री वल्लभाधीश को।
मानसी रीत की मुख्य सेवा व्यसन, लोक वैदिक त्याग शरन गोपीश को॥१॥
दीनता भाव उदबोध गुनगान सो घोष त्रिय भावना उभय जाने।
श्री कृष्ण नाम स्फुरे पल ना आज्ञा टरे कृति वचन विश्वास दृढ चित्त आने॥२॥
भगवदी जान सतसंग को अनुसरे, नादेखे दोष अरु सत्य भाखे।
पुष्टि पथ मर्म दश धर्म यह विधि कहे, सदा चित्त में द्वारकेश राखे॥३॥