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प्रात: समय हरि नाम लीजिये...

प्रात: समय   हरि नाम  लीजिये,  आनंद मंगल में दिन जाय ।
चक्रपाणि   करुणामय   केशव,   विघ्न  विनाशन  यादवराय ।। १ ।। आनंद...
कलिमलहरण   तरणभवसागर,   भक्त चिंतामणि कामधेनु ।
ऐसो   समर्थ   नाम  हरि को    वन्दनिक    पावन    पद   रेणु ।। २ ।। आनंद...
शिव विरंचि इन्द्रादि देवता, मुनिजन करत है नाम की आस ।
भक्त वत्सल हरि  नाम  कल्पतरु,  वरदायक  परमानंददास ।। ३ ।। आनंद...

श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे

श्री जमुना जी दीन जानि मोहिं दीजे।
नंदकुमार सदा वर मांगों गोपिन की दासी मोहि कीजे ॥१॥
तुम तो परम उदार ख्रुपा निधे चरन सरन सुखकारी।
तिहारे बस सदा लाडिली वर तट क्रीडत गिरिधारी॥२॥
सब ब्रजजन विहरत संग मिलि अद्भुत रास विलासी ।
तुम्हारे पुलिन निकट कुंजने द्रुम कोमल ससी सुबासी ॥३॥
ज्यों मंडल में चंद बिराजत भरि भरि छिरकत नारी ।
हँसत न्हात अति रस भरि क्रीडत जल क्रीडा सुखकारी ॥४॥
रानी जू के मंदिर में नित उठि पाँय लागि भवन काज सब कीजे ।
परमानन्ददास दासी व्है नन्दनन्दन सुख दीजे ॥५॥

करत कलेऊ दोऊ भैया

मंगल भोग सरावे के पद

करत कलेऊ दोऊ भैया।
रोटी तोर सान माखन में मिश्री मेल खवावत मैया॥१॥
काचो दूध सद्य धौरी को तातोकर मथ पयावत घैया ।
कर अचवन बीरा ले ब्रजपति पाछे चले चरावन गैया ॥२॥

मंगल मंगलम्‌ ब्रज भुवि मंगलं

मंगल मंगलम्‌ ब्रज भुवि मंगलं।
मंगल मिह श्री नंद यशोदा नाम सुकीर्तन मेंतद्रुचिरोत्संगसुंलालित पालित रूपं॥१॥
श्री श्री कृष्ण इति श्रुतिसारं नाम स्वार्त जनाशय तापापहमिति मंगलरावं।
ब्रजसुंदरीवयस्य सुरभीवृंद मृगीगण निरूपम्‌ भावाः मंगल सिंधुचया य॥२॥
मंगलमीषत्स्मितयुमीक्षण भाषणमुन्नत नासापुट्गत मुक्ताफल चलनं ।
कोमल चलदंगुलिदल संगत वेणुनिनाद विमोहित वृंदावन भुवि जाताः॥३॥
मंगल मखिलं गोपीशितुरिति मंथरगति विभ्रम मोहित रासस्थितगानं ।
त्वं जय सततं श्रीगोवर्धनधर पालय निजदासान्‌॥४॥

प्रात समय नवकुंज महल में श्री राधा और नंदकिशोर

प्रात समय नवकुंज महल में श्री राधा और नंदकिशोर ॥
दक्षिणकर मुक्ता श्यामा के तजत हंस अरु चिगत चकोर ॥१॥
तापर एक अधिक छबि उपजत ऊपर भ्रमर करत घनघोर ॥
सूरदास प्रभु अति सकुचाने रविशशि प्रकटत एकहि ठोर ॥२॥

गोवर्धन गिरिसघनकंदरा रैन

गोवर्धन गिरिसघनकंदरा रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥
उठ चले भोर सुरत रस भीने नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥१॥
इत विगलित कच माल मरगजी अटपटे भूषण रागमणी सारी ॥
उतहि अधरमिस पाग रहिथस दुहूदिश छबि बाढी अति भारी ॥२॥
घूमत आवत रति रणजीते करिणिसंग गजवर गिरिवरधारी ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख तनमनधन कीनो बलिहारी ॥३॥

भोर भये जसोदा जू बोलैं जागो मेरे गिरिधर लाल


भोर भये जसोदा जू बोलैं जागो मेरे गिरिधर लाल।
रतन जटित सिंहासन बैठो, देखन कों आई ब्रजबाल॥१॥
नियरैं आय सुपेती खैंचत, बहुर्यो ढांपत हरि वदन रसाल।
दूध दही माखन बहु मेवा, भामिनी भरि भरि लाई थाल॥२॥
तब हरखित उठि गादी बैठे, करत कलेऊ, तिलक दे भाल।
दै बीरा आरती उतारत,’चत्रभुज’ गावें गीत रसाल॥३॥

जगावन आवेंगी ब्रजनारी अति रस रंग भरी

राग विभास
जगावन आवेंगी ब्रजनारी अति रस रंग भरी।
अति ही रूप उजागरि नागरि सहज सिंगार करी॥१॥
अति ही मधुर स्वर गावति मोहनलाल को चित्त हरें।
मुरारीदास प्रभु तुरत उठि बैठे लीनी लाय गरें॥२॥

मंगल करन हरन मन आरति

राग विभास
मंगल करन हरन मन आरति वारति मंगल आरति बाला।
रजनी रस जागे अनुरागे प्रात अलसात सिथिल बसन अरु मरगजी माला॥१॥
बैठे कुंज महल सिंहासन श्री वृषभान कुंवरी नंदलाला।
’ब्रजजन’ मुदित ओट व्है निरखत निमिष न लागत लता द्रुम जाला॥२॥

तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे गेंद खेलत

तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे गेंद खेलत देख्योरी आनंद को कंदवा।
काछिनी किंकणि कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरन के चंदवा॥१॥
पंकज नयन सलोल बोलत मधुरे बोल गोकुल की सुंदरी संग आनंद स्वछंदवा।
कृष्णदास प्रभु गिरिगोवर्धनधारी लाल चारु चितवन खोलत कंचुकी के बंदवा॥२॥

दोउ भैया मांगत मैया

दोउ भैया मांगत मैया पें देरी मैया दधि माखन रोटी ।
सुनरी भामते बोल सुतन के झुठेइ धाम के काम अंगोटी ॥१॥
बलजु गह्यो नासा को मोती कान्ह कुंवर गहि दृढ कर चोटी ।
मानो हंस मोर मखलीने उपमा कहा बरनु मति छोटी ॥२॥
यह छबि देख नंद आनंदित प्रेम मगन भये लोटापोटी ।
सूरदास यशुमति सुख विलसत भाग्य बडे करमन की मोटी ॥३॥

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी ।
जागो लाल चिरैया बोली कहि जसुमति महतारी ॥१॥
ओट्यो दूध पान करि मिहन वेगि करो स्नान गुपाल ।
करि सिंगार नवल बानिक बन फेंटन भरो गुलाल ॥२॥
बलदाऊ ले संग सखा सब खेलो अपने द्वार ।
कुमकुम चोवा चंदन छिरको घसि मृगमद घनसार ॥३॥
ले कनहेरि सुनो मनमोहन गावत आवे गारी ।
व्रजपति तबहिं चोंकि उठि बैठे कित मेरी पिचकारी ॥४॥

जागिये ब्रजराज कुँवर

जागिये ब्रजराज कुँवर, कमल कुसुम फूले ।
कुमुद वृन्द सकुचित भये,भृंग लता भूले ॥१॥
तमचर खग रोर सुनहु, बोलत बनराई ।
राँभति गो खरिकन में, बछरा हित धाई ॥
बिधु मालिनी रवि प्रकास, गावत नर नारी ।
सूर श्याम प्रात उठो, अम्बुज कर धारी ॥

प्रात समय श्री वल्ल्लभ सुत को

प्रात समय श्री वल्ल्लभ सुत को, पुण्य पवित्र विमल यश गाऊँ ।
सुन्दर सुभग वदन गिरिधर को, निरख निरख दोउ दृगन खिलाऊं ॥
मोहन मधुर वचन श्री मुख तें, श्रवनन सुन सुन हृदय बसाऊँ ।
तन मन धन और प्रान निवेदन, यह विध अपने को सुफ़ल कराऊँ ॥
रहों सदा चरनन के आगे, महाप्रसाद को झूठन पाऊँ ।
नंददास प्रभु यह माँगत हों वल्लभ कुल को दास कहाऊँ ॥