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निजजन निरख निरख सब फूले...

श्री आचार्यजी के पलना के पद : 

निजजन निरख निरख सब फूले।
श्री लक्ष्मण गृह आज भलो दिन, श्री वल्लभ पलना झूले ।। १ ।।
जो सुख नन्द यशोदा आंगन, गोपीजन  मिल   निरख्यो ।
सो अब दैवी जन के आंखन,  निरख  कमल पद हरख्यो ।। २ ।।
देत दान   कंचन   पट   भूषन,   याचक   भये    अजाची ।
कृष्णदास  आशा   विधना,  सब  किनी   मन की  सांची ।। ३ ।।

श्री वल्लभलाल आंगन

श्री आचार्यजी की बाललीला के पद

श्री  वल्लभलाल  आंगन   मध्य  खेलन  ।
पहले   प्रगट   श्री    यशोदा नंदन   गोपीनकों   रस  देनन  ।। १ ।।
अब ही  प्रगट   श्री  लक्ष्मण नंदन   श्री भागवतरस एनन  ।
परमानन्द प्रभु की छबि निरखत सुख आवत नहीं बेनन  ।। २ ।।

इलम्मा श्री वल्लभ गोद खिलावत

श्री वल्लभाचार्यजी के बाल लीला के पद

इलम्मा श्री वल्लभ गोद खिलावत ।
गोद खिलावत  मन  हुलसावत   कर  गहि  चंद  दिखावत ।। १ ।।
रुनन झूनन  पग  पेंजनी  बाजत   लाल  घुटुरुवन  धावत ।
श्री लक्ष्मण भट निरख प्रफुल्लित सूर निरख जस गावत ।। २ ।।

जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे

जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे। निज जन पर कर कॄपा धरत हाथ माथे।
दोस सबै दूर करत भक्तिभाव हृदय धरत काज सबै सरत सदा गावत गुन गाथे॥१॥
काहे को देह दमत साधन कर मूरख जन विद्यमान आनन्द त्यज चलत क्यों अपाथे।
रसिक चरन सरन सदा रहत है बडभागी जन अपुनो कर गोकुल पति भरत ताहि बाथे॥२॥

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ गुन गाऊँ

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ गुन गाऊँ।
निरखत सुन्दर स्वरूप बरखत हरिरस अनूप द्विजवर कुल भूप सदा बल बल बल जाऊँ॥१॥
अगम निगन कहत जाहि सुरनर मुनि लहें न ताहि सकल कला गुन निधान पूरन उर लाऊँ।
गोविन्द प्रभु नन्दनन्दन श्री लछमन सुत जगत वंदन सुमिरत त्रयताप हरत चरन रेनु पाऊँ॥२॥

श्री वल्लभ चरण लग्यो चित मेरो

श्री वल्लभ चरण लग्यो चित मेरो ।
इन बिन और कछु नही भावे, इन चरनन को चेरो ॥१॥
इन छोड और जो ध्यावे सो मूरख घनेरो ।
गोविन्द दास यह निश्चय करि सोहि ज्ञान भलेरो ॥२॥