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सखीरी लोभी मेरे नयन
सखीरी लोभी मेरे नयन |
बिन देखें चटपटी लागत देखत उपजे चेन || १ ||
मोर मुकुट काछें पीताम्बर सुन्दरता के एन |
अंगअंग छबि कही न परत है निरख थकित भयोमेन || २ ||
मुरली ऐसी लागत श्रवणन चितवत खग मृग धेन |
परमानन्द प्रेमीके ठाकुर वे देखो ठाढ़े एन || ३ ||
बिन देखें चटपटी लागत देखत उपजे चेन || १ ||
मोर मुकुट काछें पीताम्बर सुन्दरता के एन |
अंगअंग छबि कही न परत है निरख थकित भयोमेन || २ ||
मुरली ऐसी लागत श्रवणन चितवत खग मृग धेन |
परमानन्द प्रेमीके ठाकुर वे देखो ठाढ़े एन || ३ ||
में तो प्रीति स्याम सों कीनी
में तो प्रीति स्याम सों कीनी |
कोऊ निंदो कोऊ वंदो अब तो यह घर दीनी || १ ||
जो पतिव्रत तो या ढोटा सों इने समर्प्यो देह |
जो व्हभिचार तो नंदनंदनसों बाढ्यो अधिक सनेह || २ ||
जो व्रत गह्यो सो औरन भायो मर्यादा को भंग |
परमानन्दलाल गिरिधर को पायो मोटो संग || ३ ||
कोऊ निंदो कोऊ वंदो अब तो यह घर दीनी || १ ||
जो पतिव्रत तो या ढोटा सों इने समर्प्यो देह |
जो व्हभिचार तो नंदनंदनसों बाढ्यो अधिक सनेह || २ ||
जो व्रत गह्यो सो औरन भायो मर्यादा को भंग |
परमानन्दलाल गिरिधर को पायो मोटो संग || ३ ||
बाबा आज भूख अति लागी
मंगल भोग सरावे के पद
बाबा आज भूख अति लागी |
भोजन भयो अघानो नीके-तृर्पत होय रूचि भारी || १ ||
अचवन कर यमुनोदक लीनो मुर ज्रभांत पल लागी |
भोज अंत शीत लागे परमानन्द, दीजे मेरी आंगी || २ ||
बाबा आज भूख अति लागी |
भोजन भयो अघानो नीके-तृर्पत होय रूचि भारी || १ ||
अचवन कर यमुनोदक लीनो मुर ज्रभांत पल लागी |
भोज अंत शीत लागे परमानन्द, दीजे मेरी आंगी || २ ||
लगन इन नयनन की वाकी
लगन इन नयनन की वाकी |
देखें हीं दु:ख बिने देखेहीं दु:ख पीरहोत दुहुधा की || १ ||
टारी न टर तजाय बिन देखे जिहिं फबत हेंसाकी |
रसिकराय प्रीतम मन अटक्यो कहूँ लगत नहीं टांकी || २ ||
देखें हीं दु:ख बिने देखेहीं दु:ख पीरहोत दुहुधा की || १ ||
टारी न टर तजाय बिन देखे जिहिं फबत हेंसाकी |
रसिकराय प्रीतम मन अटक्यो कहूँ लगत नहीं टांकी || २ ||
करन दे लोगन कों उपहास
करन दे लोगन कों उपहास |
मन क्रम वचन नंदनंदन कों निमिष न छांडो पास || १ ||
सब कुटुंब के लोक चिकनिया मेरे जाने घास |
अब तो जिय एसी बनी आई क्यों मानो लख त्रास || २ ||
अब क्यों रह्यों परें सुन सजनी एक गाम को वास |
ये बातें निकी जानत हें जन परमानंददास || ३ ||
मन क्रम वचन नंदनंदन कों निमिष न छांडो पास || १ ||
सब कुटुंब के लोक चिकनिया मेरे जाने घास |
अब तो जिय एसी बनी आई क्यों मानो लख त्रास || २ ||
अब क्यों रह्यों परें सुन सजनी एक गाम को वास |
ये बातें निकी जानत हें जन परमानंददास || ३ ||
मन हर ले गये नंदकुमार
मन हर ले गये नंदकुमार |
बारक द्रष्टि परी चरणन तन देखन न पायो बदन सुचार || १ ||
हों अपने घर सुचसो बैठी पोवत ही मोतिन के हार |
कांकर डार द्वार व्हे निकसे बिसर गयो तन करत शृंगार || २ ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद प्रभु ठगीरी अचानक मदनगोपाल भावतों नाउं || ३ ||
बारक द्रष्टि परी चरणन तन देखन न पायो बदन सुचार || १ ||
हों अपने घर सुचसो बैठी पोवत ही मोतिन के हार |
कांकर डार द्वार व्हे निकसे बिसर गयो तन करत शृंगार || २ ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद प्रभु ठगीरी अचानक मदनगोपाल भावतों नाउं || ३ ||
मेरे रामलला को सोहिलो सुन...
मेरे रामलला को सोहिलो सुन, नाच्यो सुर नर नारी हो ।
उमग उमग आनंद में डोलें, तन मन धन सब वारि हो ।। १ ।।
गृह गृह तें सब सजी चले हो, अपनें अपनें टोल हो ।
देत बधाई रहसि परस्पर, गावत मीठे बोल हो ।। २ ।।
मंगल साज संवार कें हों, हाथन कंचनथार हो ।
मानों कमलन शशि चढ़ चले हो, राजा दशरथ के दरबार हो ।। ३ ।।
अवधपुरी अति सोहिये हो, मंगलपुर हि निशान हो ।
मौतिनचौक पुराय कें हो, मंगल विविध विधान हो ।। ४ ।।
देव पितर गुरु पूजकें हो, जातकर्म सब कीने हो ।
द्विजवर कुल सनमान देकें, दान बहुविध दीने हो ।। ५ ।।
मागध सूत बिरदावली हो, सूरजवंश बखान हो ।
याचकजन पूरण किये हो, दानमान परिधान हो ।। ६ ।।
विधि महेश सुर शारदा हो, देख सिहात समोद हो ।
ध्यान धरे नहीं पाईयें हो, सो देखो कौशल्या की गोद हो ।। 7 ।।
विविध कुसुम बरखा भई हो, आनंद प्रेम प्रकाश हो ।
रामलला के रूपपें जन, बलबल गोविन्ददास हो ।। ८ ।।
उमग उमग आनंद में डोलें, तन मन धन सब वारि हो ।। १ ।।
गृह गृह तें सब सजी चले हो, अपनें अपनें टोल हो ।
देत बधाई रहसि परस्पर, गावत मीठे बोल हो ।। २ ।।
मंगल साज संवार कें हों, हाथन कंचनथार हो ।
मानों कमलन शशि चढ़ चले हो, राजा दशरथ के दरबार हो ।। ३ ।।
अवधपुरी अति सोहिये हो, मंगलपुर हि निशान हो ।
मौतिनचौक पुराय कें हो, मंगल विविध विधान हो ।। ४ ।।
देव पितर गुरु पूजकें हो, जातकर्म सब कीने हो ।
द्विजवर कुल सनमान देकें, दान बहुविध दीने हो ।। ५ ।।
मागध सूत बिरदावली हो, सूरजवंश बखान हो ।
याचकजन पूरण किये हो, दानमान परिधान हो ।। ६ ।।
विधि महेश सुर शारदा हो, देख सिहात समोद हो ।
ध्यान धरे नहीं पाईयें हो, सो देखो कौशल्या की गोद हो ।। 7 ।।
विविध कुसुम बरखा भई हो, आनंद प्रेम प्रकाश हो ।
रामलला के रूपपें जन, बलबल गोविन्ददास हो ।। ८ ।।
ग्वालिन मेरी गेंद चुराई
ग्वालिन मेरी गेंद चुराई।
खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई॥१॥
भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छंतिया पराई।
सूरदास मोही एही अचंबो एक गई द्वय पाई॥२॥
खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई॥१॥
भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छंतिया पराई।
सूरदास मोही एही अचंबो एक गई द्वय पाई॥२॥
पतंग की गुडी उडावन लागे व्रजबाल
पतंग की गुडी उडावन लागे व्रजबाल॥
सुंदर पताका बांधे मनमोहन बाजत मोरन के ताल॥१॥
कोउ पकरत कोउ खेंचत कोउ चंचल नयन विशाल।
कोउ नाचत कोउ करत कुलाहल कोउ बजावत बहोत करताल॥२॥
कोउ गुडीगुडीसो उरझावत आवत खेंचत दोरिरसाल।
परमानंद स्वामी मनमोहन रीझ रहेत एकही ताल॥३॥
सुंदर पताका बांधे मनमोहन बाजत मोरन के ताल॥१॥
कोउ पकरत कोउ खेंचत कोउ चंचल नयन विशाल।
कोउ नाचत कोउ करत कुलाहल कोउ बजावत बहोत करताल॥२॥
कोउ गुडीगुडीसो उरझावत आवत खेंचत दोरिरसाल।
परमानंद स्वामी मनमोहन रीझ रहेत एकही ताल॥३॥
लाल कछु कीजे भोजन तिल तिल कारी हों वारी हों
लाल कछु कीजे भोजन तिल तिल कारी हों वारी हों।
अब जाय बैठो दोउ भैया नंदबाबा की थारी हो॥१॥
कहियत हे आज सक्रांति भलो दिन करि के सब भोग संवारी हो।
तिल ही के मोदक कीने अति कोमल मुदित कहत यशुमति महतारी॥२॥
सप्तधान को मिल्यो लाडिले पापर ओर तिलवरी न्यारी।
सरस मीठो नवनीत सद्य आज को तिल प्रकार कीने रुचिकारी॥३॥
बैठे श्याम जब जेमन लागे सखन संग दे दे तारी।
परमानंद दास तिहि औसर भरराखे यमुनोदक झारी॥४॥
अब जाय बैठो दोउ भैया नंदबाबा की थारी हो॥१॥
कहियत हे आज सक्रांति भलो दिन करि के सब भोग संवारी हो।
तिल ही के मोदक कीने अति कोमल मुदित कहत यशुमति महतारी॥२॥
सप्तधान को मिल्यो लाडिले पापर ओर तिलवरी न्यारी।
सरस मीठो नवनीत सद्य आज को तिल प्रकार कीने रुचिकारी॥३॥
बैठे श्याम जब जेमन लागे सखन संग दे दे तारी।
परमानंद दास तिहि औसर भरराखे यमुनोदक झारी॥४॥
रानी तेरो चिरजीयो गोपाल
रानी तेरो चिरजीयो गोपाल ।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।
बेगिबडो बढि होय विरध लट, महरि मनोहर बाल॥१॥
उपजि पर्यो यह कूंखि भाग्य बल, समुद्र सीप जैसे लाल।
सब गोकुल के प्राण जीवन धन, बैरिन के उरसाल॥२॥
सूर कितो जिय सुख पावत हैं, निरखत श्याम तमाल।
रज आरज लागो मेरी अंखियन, रोग दोष जंजाल॥३।
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