Showing posts with label राग भैरव. Show all posts
Showing posts with label राग भैरव. Show all posts

શૃંગારનું પદ Shrungar pad

શૃંગારનું પદ

શ્રીઠાકોરજીને સ્નાન કરાવ્યા પછી જ્યારે શૃંગાર કરવામાં આવતા હોય ત્યારે આ પદ ગવાય. આ પદને શૃંગાર ઓસરાનું પદ પણ કહેવાય. ઓસરો એટલે અવસર-શૃંગાર કરવાનો સમય. આ પદમાં પ્રભુને કેવા પ્રેમથી શૃંગાર ધરવામાં આવે છે, તેનું નિરૂપણ છે.
(રચનાઃ વિષ્ણુદાસ)
(રાગઃ બિલાવલ)
આઓ ગોપાલ સિંગાર બનાઉં,
વિવિધ સુગંધન કરૌ ઉબટનો પાછે ઉષ્ણ જલ લે જુ ન્હવાઉં. (‍૧)
અંગ અંગોછ ગુહૂં તેરી બેની, ફૂલન રુચિ-રુચિ માલ બનાઉં,
સુરંગ પાગ જરતારી તોરા રત્નખચિત સિરપેચ બંધાઉં. (૨)
વાગો લાલ સુનેરી છાપો હરી ઈજાર ચરનન વિચરાઉં,
પટુકા સરસ બેંજની રંગકોં હંસુલી હાર હમેલ બનાઉં. (૩)
ગજમોતિનકે હાર મનોહર વનમાલા લે ઉર પહિરાઉં,
લે દરપન દેખો મેરે પ્યારે નિરખ-નિરખ ઉર નૈન સિરાઉં. (૪)
મધુમેવા પકવાન મિઠાઈ અપને કર લે તુમ્હેં જિમાઉં,
‘વિષ્ણુદાસ’કો યહી કૃપાફલ બાલલીલા હોં નિસદિન ગાઉં. (૫)

શબ્દાર્થઃ

ઉબટનો = સુગંધી પદાર્થોથી દેહને ઘસીને સ્વચ્છ કરવો.
જરતારી = જરીના તારવાળા.
તોરા, શિરપેચ = પાગ ઉપર ધરાતાં આભુષણો.
બેંજની = જાંબલી
હંસુલી, હમેલ = શ્રીકંઠના આભુષણ.

ભાવાર્થઃ

હે ગોપાલ! તમે પાસે, આવો. હું તમારા શૃંગાર કરું. સૌપ્રથમ વિવિધ સુગંધી પદાર્થો આપના શ્રીઅંગે લગાવી, આપને અભ્યંગ કરાવીશ અને પછી ગરમ જલથી સ્નાન કરાવીશ. (૧)
તમારું શ્રીઅંગ લૂછી, તમારા કેશ ગૂંથીશ અને તેમાં ફૂલોની રચના કરીને, તમારા કેશની વેણી બનાવીશ. તે કેશથી શોભતા મસ્તક ઉપર લાલ રંગનો પાગ બાંધીશ. પાગ ઉપર સોનેરી જરીના તોરા અને રત્નજડિત શિરપેચ ધરાવીશ. (૨)
        આપનાં ચરણોમાં લીલા રંગનું સૂથન અને શ્રીઅંગે લાલ રંગનો સોનેરી છાપાનો વાગો ધરાવીશ, વાગા ઉપર જાંબલી રંગનો સુંદર પટકો બાંધીશ. આપના શ્રીકંઠમાં હાંસ, હમેલ, હાર વગેરે આભુષણો ધરાવીશ. (૩)
        તે ઉપરાંત ગજમોતીના હાર અને સુંદર વનમાળા પણ ધરાવીશ. હે પ્રિય ! આપ આપના સુંદર મુખને દર્પણમાં જોશો ત્યારે તે મુખનાં દર્શન કરી, હું મારા હૃદય અને નેત્રોને શીતલ કરીશ. (૪)
        ત્યારપછી સુંદર મેવા, પકવાન અને મીઠાઈ મારા હાથમાં લઈ તમને આરોગાવીશ. વિષ્ણુદાસજી કહે છે કે, આપની આ સેવા એ આપની કૃપાનું જ ફળ છે. તે સેવા કરતાં હું હંમેશાં રાતદિવસ તમારી બાળલીલા ગાઈશ. (૫)

मंगल मंगलम ब्रज भुवि मंगलम

मंगल मंगलम ब्रज भुवि मंगलम |
मंगलमिंहश्री नंद यसोदा, नाम सुकीर्तनमेत तद रूचिरोत्संग, सुलालित पालित रूपम ||१ ||
श्री श्री कृष्ण इति श्रुति सारम,  नाम   स्वार्त   जनाशय   तापपह  मिति  मंगल  रावम |
ब्रज  सुंदरी   वयस्य  सुरभि  वृन्द  मृगीगण     निरुपमभावा   मंगल   सिन्धु   चयाय || २ ||
मंगलमिषतस्मितयुतमीक्षण   भाषणमुन्नत   नासापुटगत     मुक्ताफल     चलनम |
कोमल  चलदम   गुलिदल   संयुत  वेणु   निनाद     विमोहित   वृन्दावनभुवि   जाता || ३ ||
मंगलमखिलम   गोपी   शितुरति   मंथरगति   विभ्रममोहित   रासस्थित        गानम |
त्वं   जय    सततं   श्री गोवर्धनधरपालय     निज       दासानम || ४ ||

आवो पियरवा सुरिजन मितवा...

आवो    पियरवा    सुरिजन    मितवा,    रंगभर   मोरे   घर   आवो ।
एक ले आई गुलाल साजन, सुरिजन होरी खेले, मोह रही ब्रजबाला ।। १  ।।
बाजत       ताल,    मृदंग   अधोटी,   बिना   बेन   रसाल ।
कृष्णजीवन    प्रभु    होरी   खेले,   होरी के   दिन   चार ।। २  ।।

रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी...

प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी ।
उर सोहे मरगजी माल डगमगी सुदेश चाल, चरण कंज मदनजीत करत गामिनी ।। १ ।।
प्रियाप्रेम अंगराग सगमगी सुरंग पाग, गलित वरुहा तुलसीचूर अलकन सनी ।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर सूरत कंठपत्र लिख्यो करजलेखनी पुनपुन राधिका गुनी ।। २ ।।

भोर ही डगमगत जीत मन्मथ चले

भोर ही डगमगत जीत मन्मथ चले ।
सकल रजनी जगे नेक नहीं पल लगे अरुण आलस वलित नयन लागत भले ।। १ ।।
कितव नागर नट चिन्ह प्रकटित करत वसन आभूषण सूरत रण दलमले ।
चतुर्भुज दास प्रभु गिरिधरन छबि बाढ़ी अधर काजर कुमकुम अंगअंग  रले ।। २ ।।

अरुझ रहे मुक्ताहल निरवारत सोहत घूघरवारे वार

अरुझ रहे मुक्ताहल निरवारत  सोहत   घूघरवारे  वार ।
रति मानी संग नंदनंदन के   छूटे बंद कंचुकी  टूटे हार ।। १ ।।
निशि के जागे दोउ नयना ढरकर हे चलत जोबन भार ।
सूरस्याम   संग     सुख     देखत     रीझे      वारंवार ।। २ ।।

गावैं गुनी, गनिका, गन्धर्व औ सारद...

गावैं गुनी, गनिका, गन्धर्व  औ  सारद,   सेष  सबै गुन  गावैं ।
नाम अनन्त गनन्त गनेस-ज्यों, ब्रह्मा त्रिलोचन पार न पावैं ।। १ ।।
जोगी, जती, तपसी अरु सिध्ध, निरंतर जाहि समाधि लगावैं ।
ताहि अहीरकी छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ  पै  नाच  नचावैं ।। २ ।।

उठत प्रात उर आनंद भरकें...

उठत  प्रात   उर   आनंद   भरकें,   पीजे  शुध्ध   जमुना जल निर्मल  ।
पान परसत अंग अंग मिटे आरत, सनमुख होत रसना रस निश्चल  ।। १ ।।
गोपीजन    व्रजवास    धर्मकुल,    दैवीजन    सब   आवत   हैं   चल  ।
रहत नहीं दोष सुमरें लक्ष्मण सूत सब,   सुख वास चरण दृढ़ के बल  ।। २ ।।
त्रिविध   ताप   मेटन के   साधन  ए,   लपटनों   चंदन  कर   सीतल  ।
परमानंद   तमाल   वल्लभ की,   हम  पर  रहो  छाया अति सीतल  ।। ३ ।।

मंगल माधो नाम उच्चार...

मंगला आरती के पद (उष्णकाल)

मंगल  माधो  नाम  उच्चार  ।
मंगल  वदन  कमल   कर  मंगल,   मंगल    जन की   सदा  संभार ।। 1 ।।
देखत  मंगल  पूजत    मंगल,    गावत    मंगल    चरित    उदार  ।
मंगल  श्रवण  कथा रस  मंगल,    मंगल    तनु   वसुदेव    कुमार ।। 2 ।।
गोकुल  मंगल    मधुवन    मंगल,     मंगल    रूचि    वृंदावनचंद  ।
मंगल     करत    गोवर्धनधारी,      मंगल     वेश       यशोदानंद  ।। 3 ।।
मंगल   धेनु    रेणुभू    मंगल,    मंगल    मधुर    बजावत    बेन  ।
मंगल    गोपवधू     परिरंभण,     मंगल     कालिंदी      पय फेन  ।। 4 ।।
मंगल  चरणकमल  मुनि  वंदित,  मंगल  कीरति  जगत  निवास  ।
अनुदिन  मंगल  ध्यान  धरत  मुनि,   मंगलमति  परमानंददास  ।। 5 ।।

जागिये गोपाललाल जननी बल जाई

जागिये गोपाललाल जननी बल जाई |
उठो तात प्रात भयो, रजनी को तिमिर गयो, टेरत सब ग्वाल बाल, मोहना कन्हाई || १ ||
उठो मेरे आनंदकंद, गगन चंद मंद भयो, प्रकट्यो अंशुमान भानु-कमलने सुखदाई |
सखा सब पूरत वेणु, तुम विना न छूटे धेनु, उठो लाल तजो सेज, सुंदर वरराई || २ ||

 मुखते पट दूर कियो, यशोदाको दरस दियो, ओर दधि मांग लियो, विविध रस मिठाई |
जेवत दोउ राम श्याम, सकल मंगल गुणनिधान, थारमें कछु जूठ रही, मानदास पाई || ३ ||

जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे

जय जय श्री वल्लभ प्रभु श्री विट्ठलेश साथे। निज जन पर कर कॄपा धरत हाथ माथे।
दोस सबै दूर करत भक्तिभाव हृदय धरत काज सबै सरत सदा गावत गुन गाथे॥१॥
काहे को देह दमत साधन कर मूरख जन विद्यमान आनन्द त्यज चलत क्यों अपाथे।
रसिक चरन सरन सदा रहत है बडभागी जन अपुनो कर गोकुल पति भरत ताहि बाथे॥२॥

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ गुन गाऊँ

श्री वल्लभ श्री वल्लभ श्री वल्लभ गुन गाऊँ।
निरखत सुन्दर स्वरूप बरखत हरिरस अनूप द्विजवर कुल भूप सदा बल बल बल जाऊँ॥१॥
अगम निगन कहत जाहि सुरनर मुनि लहें न ताहि सकल कला गुन निधान पूरन उर लाऊँ।
गोविन्द प्रभु नन्दनन्दन श्री लछमन सुत जगत वंदन सुमिरत त्रयताप हरत चरन रेनु पाऊँ॥२॥

हों बलि जाऊं कलेऊ कीजे

हों बलि जाऊं कलेऊ कीजे।
खीर खांड घृत अति मीठो है अब को कोर बछ लीजे ॥१॥
बेनी बढे सुनो मनमोहन मेरो कह्यो जो पतीजे।
ओट्यो दूध सद्य धौरी की सात घूंट भरि पीजे ॥२॥
वारने जाऊं कमल मुख ऊपर अचरा प्रेम जल भीजे।
बहुर्यो जाइ खेलो जमुना तट गोविन्द संग करि लीजे ॥३॥

जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी

जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी।
गुल्मलता तरु सुवास कुंद कुसुम मोद मत्त, गुंजत अलि सुभग पुलिन वायु मंदिनी॥१॥
हरि समान धर्मसील कान्ति सजम जलद नील, कटिअ नितंब भेदत नित गति उत्तंगिनी।
सिक्ता जनु मुक्ता फल कंकन युत भुज तरंग कमलन उपहार लेत पिय चरन वंदिनी॥२॥
श्री गोपेन्द्र गोपी संग श्रम जल कन सिक्त अंग अति तरंगिनी रसिक सुर सुफंदिनी।
छीतस्वामी गिरिवरधर नन्द नन्दन आनन्द कन्द यमुने जन दुरित हरन दुःख निकंदिनी ॥३॥

मंगल माधो नाम उचार

मंगल माधो नाम उचार।
मंगल वदन कमल कर मंगल मंगल जन की सदा संभार ॥१॥
देखत मंगल पूजत मंगल गावत मंगल चरित उदार ।
मंगल श्रवण कथा रस मंगल मंगल तनु वसुदेव कुमार ॥२॥
गोकुल मंगल मधुवन मंगल मंगल रुचि वृंदावन चंद ।
मंगल करत गोवर्धनधारी मंगल वेष यशोदा नंद॥३॥
मंगल धेनु रेणु भू मंगल मंगल मधुर बजावत बेन।
मंगल गोप वधू परिरंभण मंगल कालिंदी पय फेन ॥४॥
मंगल चरण कमल मुनि वंदित मंगल की रति जगत निवास ।
अनुदिन मंगल ध्यान धरत मुनि मंगल मति परमानंद दास ॥५॥

मंगल रूप यशोदानंद

मंगल रूप यशोदानंद ॥
मंगल मुकुट कानन में कुंडल मंगल तिलक बिराजत चंद ॥१॥
मंगल भूषण सब अंग सोहत मंगल मूरति आनंद कंद ॥
मंगल लकुट कांख में चांपे मंगल मुरली बजावत मंद ॥२॥
मंगल चाल मनोअहर मंगल दरशन होत मिटत दुःख द्वंद ॥
मंगल ब्रजपति नाम सबन को मंगल यश गावत श्रुति छंद ॥३॥

रत्न जटित कनक थाल मध्य सोहे दीप माल

रत्न जटित कनक थाल मध्य सोहे दीप माल अगर आदि चंदन सों अति सुगंध मिलाई ॥
घनन घनन घंटा घोर झनन झनन झालर झकोर ततथेई ततथेई बोले सब ब्रज की नारी सुहाई ॥१॥
तनन तनन तान मान राग रंग स्वर बंधान गोपी सब गावत हैं मंगल बधाई॥
चतुर्भुज गिरिधरन लाल आरती बनी रसाल तनमनधन वारत हैं जसोमति नंदराई ॥२॥

नागरी नंदलाल संग रंग भरी राजें

नागरी नंदलाल संग रंग भरी राजें ॥
श्याम अंस बाहु दिये कुंवरि पुलक पुलक हिये मंद मंद हसन प्रियें कोटि काम लाजें॥१॥
तरुतमाल श्यामलाल लपटी अंग अंग वेलि निरख सखी छबि सुकेलि नूपुर कल बाजें ॥
दामोदर हित सुदेश शोभित सुंदर सुवेश नवल कुंज भ्रमर पुंज कोकिल कल गाजें ॥२॥

श्रीनाथ जी को ध्यान मेरे निशदिनारी माई

श्रीनाथ जी को ध्यान मेरे निशदिनारी माई । मेरे मन के मेहेल प्रीतिकुंज जामे जादोराई ।
शामरे बरन कोमल चरन नख देखे चकचोंधी होत, पायन उपर पेंजनी सो विविध जो बनाई ॥१॥
दाहिने पद पद्‌म आली ताते पग टेढो धरत ऐसे चरण सुख करण है सदा दुखदाई ॥
वनमाल मुक्तामाल, कंठ बनी कौस्तुभमणि, पीतांबर की चटक तामे दामिनी छबी छाई ॥२॥
बाजूबंद मुद्रिका बनी नगकी अति चमत्कार अरुण अधर मुरली मधुरेसुर वजाई ॥
कमल नयन कुंडल कांति ग्रीवा प्रतिबिंब होत, आनंद भर्यो मुखारविंद रह्यो मुसकाई ॥३॥
मोरमुकुट लटकचटक घूंघरवारे अलकझलक , किये चंदनखोर डगमगी चाल सुंदरताई ।
कहि भगवान हित रामरायप्रभु निरख भयो बिहाल श्रीगुपाल रसना रटलाई ॥४॥

प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी

प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी॥
उर सोहे मरगजी सुमाल डगमगी सुदेशचाल चरणकंज मगनजीति करत गामिनी ॥१॥
प्रिया प्रेम अंगराग सगमगी सुरंग पाग, गलित बरूहातुलचूड अलकनसनी ॥
कृष्णदास प्रभु गिरिधर सुरत कंठ पत्र लिख्यो करज लेखनी पुन-पुन राधिका गुनी ॥२॥