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अम्बर देहो मुरारी

हमारो अम्बर देहो मुरारी |
लेकर चीर  कदम्ब  चढ़ बैठे हम जलमांझ   उधारी  || १ ||
सुन्दर श्याम कमलदल लोचन हम हैं दासी तिहारी |
जो कछु कहौ सोई हम करी है चरणकमल पर वारि || २ ||
अंग अंग   कांपत  मनमोहन  बिनती  सुनौ  हमारी |
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमणि तुम जीते  हम  हारी || ३ ||

अति तप देख कृपा हरि कीनो

व्रतचर्या के पद

अति तप देख कृपा हरि कीनो |
तनकी जरन  दूर  भई  सबकी  मिल तरुणी  सुख दीनो || १ ||
नवलकिशोर ध्यान  युवती  मन  मीडत  पीठ   जनायो |
विवश भई कछु सुधि न संभारत भयो सबन मन भायो || २ ||
मनमन  कहत  भयो  तप  पूरण  आनंद  उर  न समाई |
सूरदास प्रभु लाज  न  आवत  युवतीन   मांझ  कन्हाई  || ३ ||

आप कदम्ब चढ़ देखत श्याम

व्रतचर्या के पद
आप कदम्ब चढ़ देखत श्याम |
वसन  आभूषण  सब हरलीने  विना वसन जल भीतर वाम || १ ||
मुदित नयन  ध्यान  धर  हरिकों  अंतरयामी   लीनी  जान |
बारबार  सब  तासों  मांगत  हम  पावें  पति  श्याम सुजान || २ ||
जलतें निकस  आय  तट देख्यो भूषण चीर तहां कछु नाहीं |
इतउत हेर चकित भई सुंदरी सकुच गई फिर जल ही माहीं || ३ ||
नाभिपर्यंत   नीरमें   ठाढ़ी  थरथर  अंग  कम्पत  सुकुमारी |
को ले गयो बसन  आभूषण  सूरश्याम  उर  प्रीति  बिचारी  || ४ ||

हिलगन कठिन है या मनकी

हिलगन कठिन है या मनकी |
जाके लियें सुनों मेरी  सजनी लाज  गई  सब  तनकी || १ ||
लोक   हसो   परलोक  हिजाओ  और   देओ कुलगारी |
सो क्यों  रहे  ताहि  बिन  देखें  जो   जाको  हितकारी || २ ||
रसलुब्ध निमिष नहीं छान्डत ज्यों आधीन मृग गानें |
कुमनदास   स्नेह   मरमकी   श्री गोवर्ध्धनधर  जानें || ३ || 

किहीं मिस यशोमतिहिकें जाऊं

किहीं मिस यशोमतिहिकें  जाऊं |
सकल सुखनिधि मुख अवलोकूं नयनन तृषा  बुझाऊं || १  ||
द्वार    आरज    सभा   जुरीहे    निकसवे   नहीं   पाऊं |
बिना    गए    पतिव्रत    छूटे     हसे    गोकुल   गाऊं || २  ||
स्याम   गात   सरोजआनन    मुदित    ले   ले   नाऊं |     
सूर हिलगन   कठिन   मनकी   कही    काही   सुनाऊं || ३  ||

सखीरी मोहि हरि दर्शन की चाय

सखीरी  मोहि हरि दर्शन की चाय |
सांवरे सों   प्रीति  बाढ़ी लाख लोग रिसाय || १  ||
श्यामसुंदर लोल लोचन देख मन ललचाय |
सूर हरि के रंग  राची  सीस   रहा   केंजाय || २  ||

सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज

सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज में उलटी आप बिकाई  री |
विन  ग्रथ  मोल  लई  नंदनंदन  सर्वस्व  लिख  दे आई री || १  ||
श्यामल  वरण  कमलदल  लोचन  पीताम्बर कटि फेंट री |
जब ते  आवत  सांकरी   खोरी   भई  हे  अचानक   भेट री || २  ||
कोनकी  हें   कोन    कुलबधू    मधुर   मधुर   हस   बोलेरी |
सकुच रही मोहि उत्तर नहीं आवत वल कर घूंघट खोले री || ३  ||
सास   नणद  उपचार  पचिहारी  काहू  मरम   न   पायो री |
कर गहि  वैद   ढन्ढोर  रहे  मोहि  चिंता    रोग   बतायो री || ४  ||
जा दिन  ते  में   सुरत  संभारी  गृह   अंगना  विष लागे री |
चितवत चलत सोवत और जागत यह  ध्यान मेरे आगें री || ५  ||
नीलमणि  मुक्ताफल  देहूं  जो   मोहि  श्याम   मिलायें री |
कहे   माधो  चिंता  क्यों  विसरे  बिन   चिंतामणि  पायें री || ६  ||

चलो सखी मिल, देखन जैये

चलो   सखी  मिल,   देखन   जैये,   नंद के   लाल   मचाई   होरी ।
अबीर गुलाल, कुमकुमा केसर, पिचकारिन भरि, भरि ली दौ..री ।। १ ।।
एकजु   पिय को,   चोरा   चोरी,   हमें   लखैं   नहीं   कोरी ।
कृष्ण जीवन लछीराम के प्रभु कौं, भरि हौं राधा  गौ..री ।। २ ।।

सुनोंरी आज नवल बधायो हे...

श्री महाप्रभुजी की बधाई

सुनोंरी आज नवल बधायो हे ।
श्री लक्ष्मण गृह प्रकट भये  हें ,   श्री वल्लभ   मन  भायो हे ।। १ ।।
बाजत  आवज   ढोलक   महुवर,   घन ज्यों  ढोल बजायो हे ।
कोकिल  कंठ   नवल   वनिता    मिल,    मंगल   गायो   हे ।। २ ।।
हरदी तेल   सुगंध   सुवासित,   लालन   उबट   न्हावायो हे ।
नखशिखलों   आभूषण    भूषित,    पीताम्बर    पहरायो हे ।। ३ ।।
अशन वसन कंचन मणि  माणिक,  घरघर याचक पायो हे ।
श्री विठ्ठल गिरिधरन  कृपानिधि,   पलनामांझ   झुलायो  हे ।। ४ ।।

अधम उद्धारनी मैं जानी, श्री जमुना जी

अधम उद्धारनी मैं जानी, श्री जमुना जी।
गोधन संग स्यामघन सुन्दर तीर त्रिभंगी दानी॥१॥
गंगा चरन परस तें पावन हर सिर चिकुर समानी।
सात समुद्र भेद जम-भगिनी हरि नखसिख लपटानी॥२॥
रास रसिकमनि नृत्य परायन प्रेम पुंज ठकुरानी ।
आलिंगन चुंबन रस बिलसत कृष्ण पुलिन रजधानी ॥३॥
ग्रीष्म ऋतु सुख देति नाथ कों संग राधिका रानी।
गोविन्द प्रभु रवि तनया प्यारी भक्ति मुक्ति की खानी ॥४॥

यह प्रसाद हों पाऊं श्री यमुना जी

यह प्रसाद हों पाऊं श्री यमुना जी।
तिहारे निकट रहों निसिबासर राम कृष्ण गुण गाऊँ॥१॥
मज्जन करों विमल जल पावन चिंता कलह बहाऊं।
तिहारी कृपा तें भानु की तनया हरि पद प्रीत बढाऊं॥२॥
बिनती करों यही वर मांगो, अधमन संग बिसराऊं।
परमानंद प्रभु सब सुख दाता मदन गोपाल लडाऊं॥३॥

सुनो री आज नवल बधायो हे

सुनो री आज नवल बधायो हे ।
श्री लक्ष्मण गृह प्रकट भये हैं श्री वल्लभ मन भायो हे ॥१॥
बाजत आवज ढोलक महुवर घनज्यो ढोल बजायो हे।
कोकिल कंठ नवल वनिता मिल मंगल गायो हे ॥२॥
हरदी तेल सुगंध सुवासित लालन उबट न्हवायो हे ।
नखशिखलों आभूषण भूषित पीतांबर पहरायो हे ॥३॥
अशन वसन कंचन मणि माणिक घर घर याचक पायो हे ।
श्री विट्ठल गिरिधरन कृपानिधि  पलना मांझ झुलायो हे ॥४॥

१ - पिय संग रंग भरि करि किलोलें

पिय संग रंग भरि करि किलोलें ।
सबन कों सुख देन पिय संग करत सेन,चित्त में परत चेन जब हीं बोलें ॥१॥
अति हि विख्यात सब बात इनके हाथ, नाम लेत कृपा करें अतोलें ।
दरस करि परस करि ध्यान हिय में धरें,सदा ब्रजनाथ इन संग डोलें ॥२॥
अतिहि सुख करन दुख सबके हरन,एही लीनो परन दे झकोले ।
ऐसी यमुने जान तुम करो गुनगान,रसिक प्रियतम पाये नग अमोले ॥३॥

Priyasang rangbari kari kalole, 
Sabanko sukhden, piyasadakkarat sen, chit me tub parat chain, jab hi bole, 
Atihi vikhiyaat, sab baat inke haat, naam lat krupakare atole, 
Daraskari paraskari dhyaan hiya mein darey, sada brijnath in sadak dole.
Atihi sukhkaran, dukh saban ke haran, ahee lino paran de jhakole 
Aisi yamune jaan tum karo gungaan, rasik priyatam paye nag amole.

२ - श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके

श्याम सुखधाम जहाँ नाम इनके ।
निशदिना प्राणपति आय हिय में बसे, जोई गावे सुजश भाग्य तिनके ॥१॥
येही जग में सार कहत बारंबार, सबन के आधार धन निर्धन के ।
लेत श्री यमुने नाम देत अभय पद दान, रसिक प्रीतम प्रिया बसजु इनके ॥२॥

Shyam sukhdham jahan naam inke, 
Nishdhin pranpati aye hiya mein base, johi gaawhe sujus bhagya tinke.
Yehi jag mein saar, kahat barambaar, saban ke aadhar dhan nirdhan ke lat shriyamune naam, det abhay pad dhan, rasik pritam priya basju inke.

३ - कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें

कहत श्रुतिसार निर्धार करिकें ।
इन बिना कौन ऐसी करे हे सखी, हरत दुख द्वन्द सुखकंद बरखें ॥१॥
ब्रह्मसंबंध जब होत या जीव को, तबहि इनकी भुजा वाम फरकें ।
दौरिकरि सौरकर जाय पियसों कहे, अतिहि आनंद मन में जु हरखें ॥२॥
नाम निर्मोल नगले कोउ ना सके, भक्त राखत हिये हार करिकें ।
रसिक प्रीतम जु की होत जा पर कृपा, सोइ श्री यमुना जी को रूप परखें ॥३॥

Kahat shrutisaar nirdhar karike, 
In bina kaun aisi kare he sakhi, harat dukh dundh sukhkand barkhe.
Brahmasambandh jab hot ya jeev ko, tabhi inki buja baam farke, dorikari shorkar jaaye piyaso kahe, atihi anand manmeinju harke.
Naam nirmol nag le koho na sake, bhakt rakhat hiya haar karike,
Rasik Pritamjuki jot japar kripa, sohi ShriYamunaji ko rup parkhe.

४ - नैन भरि देखि अब भानु तनया

नैन भरि देखि अब भानु तनया ।
केलि पिय सों करें भ्रमर तबहि परें, श्रम जल भरत आनंद मनया ॥१॥
चलत टेढी होय लेत पिय को मोहि, इन बिना रहत नहिं एक छिनया ।
रसिक प्रीतम रास करत श्री यमुना पास, मानो निर्धनन की है जु धनया ॥२॥


Neinbar dekh aab banu tanya 
Keli Piyaso kare bramar tabhi pare, shramjal bharat anand manya.
Chalat tedi hoy let Piyako mohi, in bina rahat nahin ek chinya, 
Rasik Pritam raas karat ShriYamuna paas, mano nirdhan ki he ju dhanya.