Showing posts with label अन्नकूट के पद. Show all posts
Showing posts with label अन्नकूट के पद. Show all posts

આરોગત આપુન પર્વત રૂપ

આરોગત આપુન પર્વત રૂપ |
વે દેખો   જુ   માગી   લેત   હૈ   ચૌદ   ભુવન કો   ભૂપ || ૧ ||
બડભાગી   હૈ   નંદ   જશોદા   જીન   પાયો   હરિ  સુત |
લાલ   દેખી   આતુર  ધાઈ   લે   ઓદન પાયસ   પૂત || ૨ ||
મીટ્યો ભાગ જાન્યો જબ સુરપતિ બાઢ્યો હૈ અતિ કોપ |
'કૃષ્ણદાસ'  ગિરિવર  કર   ધાર્યો ઇન્દ્ર મહોચ્છવ લોપ || ૩ ||

यह लीला सब करत कन्हाई

यह लीला सब करत कन्हाई।
उत जेमत गोवर्धन के संग, इत राधा सों प्रीत लगाई॥१॥
इत गोपिन सों कहत जिमावो उत आपुन जेमत मनलाई।
आगे धरे छहों रस व्यंजन, चहूं दिश तें अति अरग बढाई॥२॥
अंबर चढे देवगण देखत जय ध्वनि करत सुमन बरखाई।
सूर श्याम सबके सुखकारी भक्त हेत अवतार सदाही॥३॥

देखोरि हरि भोजन खात

देखोरि हरि भोजन खात।
सहस्त्र भुजा धर इत जेमत हे दूत गोपन से करत हे बात॥१॥
ललिता कहत देख हो राधा जो तेरे मन बात समात।
धन्य सबे गोकुल के वासी संग रहत गोकुल के तात॥२॥
जेंमत देख मंद सुख दीनो अति आनंद गोकुल के नर नारी।
सूरदास स्वामी सुखसागर गुण आगर नागर दे तारी॥३॥

भली करी पूजा तुम मेरी

भली करी पूजा तुम मेरी।
बहुत भांत कर व्यंजन अरप्यो, सो सब मान लई मैं तेरी॥१॥
सहस्त्र भुजाधर भोजन कीनो, तुम देखत विद्यमान।
मोहि जानत यह कुंवर कन्हैया, नाहिन कोऊ आन॥२॥
पूजा सबकी मान लई में जाउ घरन व्रज लोग।
सूर श्याम अपने कर लीने बांटत जूठो भोग॥३॥

गोपन सों यह कन्हाई

गोपन सों यह कन्हाई।
जो हो कहत रह्यो भयो सोइ सपनांतर की प्रकट जनाई॥१॥
जो मांग्यो चाहो सो मांगो, पावोगे सोई मन भाई।
कहत नंद हम ऐसी मांगे चाहत हैं हरि की कुशलाई॥२॥
कर जोरे व्रजपति जू ठाडे गोवर्धन की करत बडाई।
ऐसो देव हम कबहु न देख्यो सहस्त्र भुजा धर खात मिठाई॥३॥
जय जय शब्द होत चहुंदिश तें अति आनंद उर में न समाई।
सूर श्याम कों नीके राखो कहत महेर हलधर दोउ भाई॥४॥