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बन ठन आई रंगीली गनगोर

बन  ठन  आई  रंगीली  गनगोर ।
सजि   सिंगार    चंचल   मृगनैनी    पहेरें  पीत   पटोर ।। १ ।।
सखी   सहेली   लै   संग  राधा    गावत   नंद की   पोर ।
निरखत हरखत अतिरस  बरखत   मोहे  नंद  किसोर ।। २ ।।
उपजी   प्रीति   परस्पर   अन्तर   मानो   चंद   चकोर ।
'कृष्णदास' पिय प्यारी की छबि पर डारत हैं तृन तोर ।। ३ ।।

चलो सखी कुंज गोपाल जहां

चलो सखी कुंज गोपाल जहां ।
तेरी सों मदनमोहनपें, चल ले जाऊं तहां ।। 1 ।।
आछें कुसुम मंद मलयानिल, तरु कदम्ब की छांह ।
तहां निवास कियो नंदनंदन, चित तेरे मन मांह ।। 2 ।।
ऐसीरी बात सुनत व्रज सुंदर, तोहि रह्यो क्यों भावें ।
परमानंद स्वामी मनमोहन, भाग्य बड़े ते पावे ।। 3 ।।

तीज गनगौर त्यौहार को जानि दिन करत

तीज गनगौर त्यौहार को जानि दिन करत भोजन लाल लाडिली पिय साथ।
चतुर चंद्रावलि बैठि गिरिधरन संग देति नई नई सोंज ले ले अपने हाथ॥१॥
छबि बरनी न जात दोऊ रुचि सों खात करत हसि हसि बात उमग भरि भरि बाथ।
उपजी अंतर प्रीति मदनमोहन कुंज जीत पीवत पय सद्य प्रभु कृष्णदासानि नाथ॥२॥

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२