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द्रौपदी औ गनिका, गज, गीध...

द्रौपदी औ गनिका, गज, गीध, अजामिलसों कियो सो न निहारो ।
गौतम-गेहिनी   कैसे  तरी,   प्रहलाद कौ  कैसे  हर्यौ  दुःख   भारो ।। १ ।।
काहे को सोच करै रसखानि,  कहा  करि  है   रवि-नन्द   विचारो ।
कौन की   संक   परी   है  जू   माखन-चाखनहारो  है   राखनहारो ।। २ ।।