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ठाडे कुंज द्वार, पीय प्यारी,

ठाडे कुंज द्वार,  पीय प्यारी, करत परस्पर,  ह्सहस बतियां ।

रंगीली तीज गनगोर, भोर सज आंई, घरघर तें, सब सखियां ॥ १ ॥

करत आरती अति रसमाती, गावत गीत, निरख मुख अखियां ।

कृष्णदास प्रभु चतुर  नागरी,   कहा बरनों नांहीं,  मेरी गतियां ॥ २ ॥

कहत जसोदा सब सखियन सों

कहत   जसोदा   सब  सखियन  सों,   आवो   बैठो   मंगल गावो ।
हे  गनगोरकी    तीज   रंगीली,   मदनमोहन  कों  लाड   लडावो ।। १ ।।
ललिता   चन्द्रभगा   चन्द्रावली,   बेग   जाय   राधा   ले    आवो ।
स्यामा चतुरा  रसिका   भामा,   तुम   पीयकों  सिंगार   बनावो ।। २ ।।
कमला   चंपा   कुमुदा सुमना,    पहोपमाल   ले    उर   पहेरावो ।
ध्याया   दुर्गा   हरखा   बहुला,    ले   दर्पण   कर   बेनु    गहावो ।। ३ ।।
नबला    अबला    नीला     सीला,    गूंजापुवाले   भोग    धरावो ।
हीरा   रत्ना   मेना    मोहोला,    ले   बिना  तुम   तान   सुनाओ ।। ४ ।।
घूमर   खेलो   मन   रस   झेलो,     नेह   मेह   बरखा   बरखावो ।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर को सुख,निरख निरख दोउ नेन सिरावो ।। ५ ।।

अरवीलो गरवीलो रंगीलो छबीलो कान्ह

अरवीलो गरवीलो  रंगीलो छबीलो कान्ह करि के सिंगार ठाढौ  देखो सखी कुँजद्वार ।
वाम भाग राधा प्यारी ओढ़े चुनरी की सारी  कंचुकी  उतंग गाढ़ी ठाडी बहियाँ गरे डार ।। १ ।।
चूनरी  चटकदार  पाग  सीस  नंदलाल   सूथन   चूनरी   बागौ   बन्यो   अंग   घेरदार ।। २ ।।
फूल-छरी  बेनु  धरी  बजत  है  रस भरी   सुनत  स्रवन  धाय   आये  सब  नर नगरा ।
निरखि मुखारविंद फूले   मानो   अरविंद   करत   गुंजार   तहाँ   'कृष्णदास'   भमरा ।। ३ ।।

बन ठन आई रंगीली गनगोर

बन  ठन  आई  रंगीली  गनगोर ।
सजि   सिंगार    चंचल   मृगनैनी    पहेरें  पीत   पटोर ।। १ ।।
सखी   सहेली   लै   संग  राधा    गावत   नंद की   पोर ।
निरखत हरखत अतिरस  बरखत   मोहे  नंद  किसोर ।। २ ।।
उपजी   प्रीति   परस्पर   अन्तर   मानो   चंद   चकोर ।
'कृष्णदास' पिय प्यारी की छबि पर डारत हैं तृन तोर ।। ३ ।।

धन्य वृन्दा विपिन धन्य गोकुल गाम...

धन्य वृन्दा विपिन धन्य गोकुल गाम धन्य राधा  कोन  गौर  तैं  पूजी ।
धन्य बडभाग्य  सौभाग्य तेरो   सुजस  रसिक  नंदनंदन की तू बहूजी ।। १ ।।
चक्र चूड़ामनी रूप  गुन   आगरी   नाहि   त्रिभुवन   वाम   तोसी   दूजी ।
'कृष्णदास निनाथ' साथ बिलसन सदा तोही सम नाहि नवनारी सूझी ।। २ ।।

तीज गनगौर त्यौहार को जानि दिन करत

तीज गनगौर त्यौहार को जानि दिन करत भोजन लाल लाडिली पिय साथ।
चतुर चंद्रावलि बैठि गिरिधरन संग देति नई नई सोंज ले ले अपने हाथ॥१॥
छबि बरनी न जात दोऊ रुचि सों खात करत हसि हसि बात उमग भरि भरि बाथ।
उपजी अंतर प्रीति मदनमोहन कुंज जीत पीवत पय सद्य प्रभु कृष्णदासानि नाथ॥२॥

कहत जसोदा सब सखियन सों आवो बैठो मंगल गावो

कहत जसोदा सब सखियन सों आवो बैठो मंगल गावो।
है गनगौर की तीज रंगीली कान्ह कुंवर को लाड लडावो॥१॥
ललिता चन्द्रभगा चन्द्रावली बेगि जाय राधा लै आवो।
स्यामा चतुरा रसिका भामा तुम पिय को सिंगार बनावो॥२॥
कमला चंपा कुमुदा सुमना पहोंपमाल लै उर पहिरावो।
ध्याया दुर्गा हरखा बहूला लै दरपन कर बैनु गहावो॥३॥
कृष्णा यमुना वृंदा नैनां चरन परसि करि नैन लगावो।
तारा रंगा हंसा विमला जमुनाजल झारी पधरावो॥४॥
नवला अबला नीला सीला गूँजा पूवा ले भोग धरावो।
हीरा रत्ना मैना मोहा लै बीना तुम तान सुनावो॥५॥
घूमर खेलो मन रस झेलो नेह मेह बरखा बरखावो।
कृष्णदास प्रभु गिरिधर को सुख निरखि निरखि दोऊ दृगन सिरावो॥६॥

नवल निकुंज महेल मंदिर में जेंवन बैठे कुंवर कन्हाई

नवल निकुंज महेल मंदिर में जेंवन बैठे कुंवर कन्हाई।
भरि भरि डला सीस धरि अपने व्रजबधू तहाँ छाक लै आई॥१॥
हरखित बदन निरखि दंपति को सुंदरि मंद मंद मुसकाई।
गूँजा पूआ धरि भोग प्रभु को कृष्णदास गनगौर मनाई॥२॥

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी

रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी कुंज छाक लै जैये।
विविध भांति नई सोंज अरपि सब अपने जिय की तृपत बुझैये॥१॥
लै कर बीन बजाय गाय पिय प्यारी जेंमत रुचि उपजैये।
कृष्णदास वृषभानु सुता संग घूमर दै दै नंदनंद रिझैये॥२

नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि कहति सबन

नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि कहति सबन गनगौर मनाओ।
नये बसन आभूषन पहरो मंगल गीत मनोहर गाओ॥१॥
करि टीकौ नीकौ कुमकुम कौ आंगन मोतिन चौक पुराओ।
चित्र विचित्र वसन पल्लव के तोरन बंदरवार बँधाओ॥२॥
घूमर खेलो नवरस झेलो राधा गिरिधर लाड लडावो।
विविध भांति पकवान मिठाई गूँजा पूआ बहु भोग धराओ॥३॥
जल अचवाय पोंछि मुख वस्तर माला धरि दोऊ पान खवाओ।
कृष्णदास पिय प्यारी को आनन निरखि नैन मन मोद बढावो॥४॥

सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली

सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि ता मधि लै संग राधा बैठे गिरिधरनलाल।
चूनरी की बांधि पाग अंग बागो चूनरी को उपरेना कंठ हीरा हार मोती माल॥१॥
स्याम चूरी हरित लहँगा पहरि चूनरि झूमक सारी मानो गनगौर बनी ऐन मेन कीरति बाल ।
कृष्णदास पिय प्यारी अपने कर दरपन लै मुख देखत बार बार हँसि हँसि भरि अंक जाल॥२॥