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आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई

आजू भोरही नन्दपौरी, व्रज़नारिन धूम मचाई।
पकरी पानि गही नचाई पौरीया जसुमति पकरी नचाई ।१।

हरी भागे, हलधरजू भागे, नंदमहरहू घेरे
तबही मोहन निकसी द्वारव्हे, सखा नाम ले टेरे ।२।
द्वार पुकार सुनत नही कोऊ, तब हरी चढ़े अटारी
आओ रे आओ सखा संग घेरे , घर घेर्यो व्रजनारी ।३।
सुनत टेरे संगी सब दौरे जब अपने धाम ।
अर्जुन तोक कृष्ण मधुमंगल सुबल सुबाहु श्रीदामा ।४।
ग्वालिनी घेर परी जब रोकी आनन पाए नेरे।
चंद्रावली ललितादी आदि श्याम मनोहर घेरे । ५ ।
कित जेहो वस् परे हमारे भजी न सको नन्दलाल ।
फगुवा में हम लेहे पीताम्बर वनमाल । ६।
केसरी डारी सिसते मुख पर शेरी मांड्त राधे ।
विष्णुदास प्रभु भुज गहि गाढे मनवांछित फल साधे ॥७॥

हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई

हरी होरी मचाई , व्रज में हरी होरी मचाई ।
एतते आयी सुधर राधिका उतते कुंवर कन्हाई॥

हिलमिल फाग परस्पर खेले, शोभा वरनी न जायी,
नन्द घर बजत बधाई ।

बाजत ताल मृदुंग बाँसुरी बीना डफ सहनाई ।
उड़त अबीर गुलाल कुमकुम । रह्यो सकल व्रज छायी ।
मानो मधवा जर लायी ॥

ले ले हाथ कनक पिचकारी सन्मुख चले चलाई।
छिरकत रंग अंग सब भीजे जुक जुक चाचर गाई,
परस्पर लोग लुगाई ॥

राधा सेन दई सखीयन को झुंड झुंड गहीर आई।
लपट जपट गई श्यामसुंदरसो, परवश पकर ले आई
लालाजी को नाच नचाई ॥

छीन लई मुरली पीताम्बर सीर ते चूनरी उढाई ।
वेनी भाल नयन विच काजर, नक्वेसर पहेराई
मानो नई नार बनाई ॥

हसत है मुख मोड़ मोड़ के कहा गई चतूराई ।
कहा गए तेरे तात नंदजी कहा जसोदा माई
तुम्हे अब ले छुड़ाई ॥

फगुवा दिए बीन जान न पाओ कोटी करो ऊपाय ।
लेहू काढ कसर सब दीन की तुम चीत्चोर चवाई
बहुत दधी माखन खाई ॥

आवो पियरवा सुरिजन मितवा...

आवो    पियरवा    सुरिजन    मितवा,    रंगभर   मोरे   घर   आवो ।
एक ले आई गुलाल साजन, सुरिजन होरी खेले, मोह रही ब्रजबाला ।। १  ।।
बाजत       ताल,    मृदंग   अधोटी,   बिना   बेन   रसाल ।
कृष्णजीवन    प्रभु    होरी   खेले,   होरी के   दिन   चार ।। २  ।।

बरसानै की नवल नारि मिली


बरसानै की   नवल   नारि  मिली   होरी  खेलनि   आंई   हो ।
बरबट धाई   जाई   जमुना   तट   घेरे   कुंवर   कन्हाई   हो ।। १  ।।
अति   झीनीं  केसरी   रंग   भीनीं    सारी  सुरँग  सुहाई  हो ।
कंचन  बरन  कंचुकी   ऊपर   झलकत   जोबन   झांई   हो ।। २  ।।
केसरी  कस्तूरी  मलयागिरि  भाजन  भरि  भरि   लाई  हो ।
अबीर गुलाल फेंटी भरि भामिनी करन कनक पिचकाई हो ।। ३  ।।
उत तैं गोप सखा सब  उमंगे   खेल   मच्यौं   उदमाई    हो ।
बाजत  ताल  मृदंग  झांझ  ढफ   मुरली  मधुर  सुनाई  हो ।। ४  ।।
खेलति खेलति रसिक सिरोमनि  राधा  निकट  बुलाई  हो ।
हृषिकेश  प्रभु  रिझि  स्याम  धन   बनमाला   पहिराई  हो ।। ५  ।।

आजु सखी री तेरैं आवैंगे

आजु  सखी  री  तेरैं  आवैंगे,   हरि  खेलन कौं  फाग री ।
सगुन  संदेस   सुन्यौ  हौ  तेरै,   आंगन   बोले  काग री ।। १  ।।
मनमोहन,  तेरे   बस   माई,   सुनि   राधे   बडभाग री ।
बाजत ताल, मृदंग, झांझ, डफ, को सोवै, उठि जाग री ।। २ ।।

चोवा चंदन लै  कुमकुम,   अरु  केसरि,   पैयाँ  लाग री ।
सूरदास प्रभु तिहारे दरस को,   आवत अचल सुहाग री ।। ३  ।।

श्री गोवर्धन राइ लाला

श्री गोवर्धन राई लाला, प्यारे लाल तिहारे चंचल नैन बिशाला, 
तिहारे   उर   सोहै   बनमाला,   देख   मोहि   रही    ब्रजबाला ।। ध्रु.।।
खेलति   खेलति     तहँ     गये    जहँ   पनिहारिन की   बाट ।
गागरि   ढ़ोरें    सिस  तै   कोऊ    भरनि   न    पावति   घाट ।। १ ।।
नंद राइ के     लाडिले      बलि        ऐसौ     खेली     निवारि ।
मनमें आनंद भरी रह्यौ  मुख   जोवत    सकल   ब्रज  नारि ।। २ ।।

अरगजा   कुमकुम   घोरी कें  प्यारी   लीनो   कर    लपटाई ।
अचका    अचका   आई कें   भाजी   गिरिधर   गाल   लगाई ।। ३ ।।
यह   बिधि    होरी   खेली    हीं   ब्रजबासिन    संग     लगाई ।
गोवर्धन   धर     रूप   पै    जन   गोविंद   बलि   बलि   जाई ।। ४ ।।

श्री गोवर्धन राइ लाला

श्री गोवर्धन राई लाला, प्यारे लाल तिहारे चंचल नैन बिशाला, 
तिहारे   उर   सोहै   बनमाला,   देख   मोहि   रही    ब्रजबाला ।। ध्रु.।।
खेलति   खेलति     तहँ     गये    जहँ   पनिहारिन की   बाट ।
गागरि   ढ़ोरें    सिस  तै   कोऊ    भरनि   न    पावति   घाट ।। १ ।।
नंद राइ के     लाडिले      बलि        ऐसौ     खेली     निवारि ।
मनमें आनंद भरी रह्यौ  मुख   जोवत    सकल   ब्रज  नारि ।। २ ।।

अरगजा   कुमकुम   घोरी कें  प्यारी   लीनो   कर    लपटाई ।
अचका    अचका   आई कें   भाजी   गिरिधर   गाल   लगाई ।। ३ ।।
यह   बिधि    होरी   खेली    हीं   ब्रजबासिन    संग     लगाई ।
गोवर्धन   धर     रूप   पै    जन   गोविंद   बलि   बलि   जाई ।। ४ ।।

मोहन मुनि हे आये हो...

शिवरात्रि के दिन धमार के पद 

मोहन मुनि हे आये हो, हो मेरे ललना सबको मनहर लीनों ।। ध्रु. ।।
रसमसी    चाल   चले    अलबेली    अंग    चढाय   विभूत ।
कानन कुंडल मुकुट विराजत पीताम्बर  ओढ़े   कटि   पूत ।। १ ।। 
दंड   कमंडल    गहि    जपमाला    आसन   लीनों   बनाय ।
कोटि   जतन   राधा  पचिहारी  मुख न बोलत मुसिक्याय ।। २ ।।
जगजीवन  जोगी  हे   आये   अरस   परस   लिये   ग्वाल ।
मानों    कोटि   उडुगण   शशि   जैसे   ऐसे   बने नंदलाल ।। ३ ।।
दृग दृग  थेई  थेई  धुनि   बाजे   इत   गोपी   उत    ग्वाल ।
आनंद भई  हैं सकल व्रज   निता   बोलत   बचन   रसाल ।। ४ ।। 
ब्रह्मादिक   इंद्रादिक    मुनिवर    देखत   कोटि   तेतीस ।
श्री गोपीनाथ एक ख्याल बनायो सकल  रचना   को  ईस ।। ५ ।।
जान्यों भेद बलि मोहन को  मुख  माँड्यो सकल  सुवास ।
जय जय कार करत सुरनर मुनि वरखत कुसुम  अकास ।। ६ ।।
नवल किसोर कहाँ  लो   वरनो   शोभा    कही   न   जाय ।
सूरदास   वलि   लाल  छबीले   निगम    निरंतर    गाय ।। ७ ।।

रंग हो हो होरियां

रंग   हो   हो   होरियां ।
इत बने नवल किशोर ललन पिय उत बनी नवल किशोरियां ।। १ ।।
ये  नव  नील  जलद  तन सुन्दर   वे   कंचन   तन   गोरियां । 
उनके  अरुण  वसन   तन   राजत    इनके   पीत   पटोरियां ।। २ ।।
फेंटन  सुरंग गुलाल विविध रंग   अरगजा  भरी हें कमोरियां ।
छलबल   करी  दुरि  मुख   लपटावत   चंदन  वंदन   रोरियां ।। ३ ।।
राखी हें  करन   दुराय  सबन मिल  केसर  कनक  कमोरियां ।
सन्मुख दृष्टि बचाय  धाय   जाय    स्याम   सीस तें ढोरियाँ ।। ४ ।।
बाजत ताल मृदंग मुरज डफ    मधुर  मुरली  ध्वनि थोरियां ।
नाचत गावत  करत   कुलाहल    परम चतुर  ओर   भोरियां ।। ५ ।।
एकन कर   गेंदुक   नवलासी  ओर   फूलन   भरि   झोरियां ।
भाजत   राजत   भरत   परस्पर     परिरंभन    झकझोरियाँ ।। ६ ।।
ये ही  रस   निवहो   निसवासर   बंधी  हें   प्रेम की   डोरियाँ ।
माधुरी  के   हित  सुख के  कारण   प्रगटी  हे भूतल जोरियाँ ।। ७ ।।

श्री गोवर्धनराय लाला

श्री गोवर्धनराय लाला। अहो प्यारे लाल तिहारे चंचल नयन विशाला॥
तिहारे उर सोहे वनमाला। याते मोही सकल ब्रजबाला॥ ध्रु.॥
खेलत खेलत तहां गये जहां पनिहारिन की बाट। गागर ढोरे सीस ते कोऊ भरन न पावत घाट ॥१॥
नंदराय के लाडिले बलि एसो खेल निवार। मन में आनन्द भरि रह्यो मुख जोवत सकल ब्रजनार॥२॥
अरगजा कुमकुम घोरि के प्यारी लीनो कर लपटाय। अचका अचका आय के भाजी गिरिधर गाल लगाय॥३॥
यह विधि होरी खेल ही ब्रजबासिन संग लाय। गोवर्धनधर रूप पै ’जन गोविन्द’ बलि-बलि जाय॥४॥

गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फा

गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फाग। मोहन मुरली बजावैं गावें गोरी राग ॥१॥
नर नारी एकत्र व्है आये नंद दरबार। साजे झालर किन्नरी आवज डफ कठतार ॥२॥
चोवा चन्दन अरगजा और कस्तूरी मिलाय। बाल गोविन्द को छिरकत सोभा बरनी न जाय॥३॥
बूका बंदन कुमकुमा ग्वालन लिये अनेक। युवती यूथ पर डारही अपने-अपने टेक॥४॥
सुर कौतुक जो थकित भये थकि रहे सूरज चंद। ’कृष्णदास’ प्रभु विहरत गिरिधर आनन्द कंद॥५॥

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे द्वै बाप द्वै महतारी

नवरंगी लाल बिहारी हो तेरे द्वै बाप द्वै महतारी।
नवरंगीले नवल बिहारी हम दैंहि कहा कहि गारी॥१॥
द्वै बाप सबै जग जाने। सो तो वेद पुरान बखाने॥
वसुदेव देवकी जाये। सो तो नंद महर घर आये॥२॥
हम बरसाने की नारी। तुम्हे दैं हैं हँसि-हँसि गारी।
तेरी भूआ कुंती रानी। सो तो सूरज देख लुभानी॥३॥
तेरी बहन सुभद्रा क्वारी। सो तो अर्जुन संग सिधारी॥
तेरी द्रुपदसुता सी भाभी। सो तो पांच पुरुष मिलि लाभी॥४॥
हम जाने जू हम जानै। तुम ऊखल हाथ बंधाने॥
हम जानी बात पहचानी। तुम कब ते भये दधि दानी॥५॥
तेरी माया ने सब जग ढूंढ्यो। कोई छोड्यो न बारो बूढ्यो॥
’जनकृष्ण’ गारी गावे। तब हाथ थार कों लावे॥६॥

खेलत फाग फिरत रस फूले

खेलत फाग फिरत रस फूले।
स्यामा स्याम प्रेम बस नाचत गावत सुरंग हिंडोरे झूले॥१॥
वृंदावन की जीवन दोऊ नटनागर बंसी बट कूले।
व्यास स्वामिनी की छबि निरखत नैन कुरंग फिरत रसमूले॥२॥

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले

औरन सों खेले धमार श्याम मोंसों मुख हू न बोले।
नंदमहर को लाडिलो मोसो ऐंठ्यो ही डोले॥१॥
राधा जू पनिया निकसी वाको घूंघट खोले।
’सूरदास’ प्रभु सांवरो हियरा बिच डोले॥२॥

लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू

लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू।
बदन चन्द्रमा नैन चकोरी इन अन्तर जिन पारो जू ॥१॥
गावो राग बसन्त परस्पर अटपटे खेल निवारो जू।
कुमकुम रंग सों भरी पिचकारी तकि नैनन जिन मारो जू॥२॥
बंक विलोचन दुखमोचन लोचन भरि दृष्टि निहारो जू।
नागरी नायक सब सुख गायक कृष्णदास को तारो जू॥३॥

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी

खिलावन आवेंगी ब्रजनारी ।
जागो लाल चिरैया बोली कहि जसुमति महतारी ॥१॥
ओट्यो दूध पान करि मिहन वेगि करो स्नान गुपाल ।
करि सिंगार नवल बानिक बन फेंटन भरो गुलाल ॥२॥
बलदाऊ ले संग सखा सब खेलो अपने द्वार ।
कुमकुम चोवा चंदन छिरको घसि मृगमद घनसार ॥३॥
ले कनहेरि सुनो मनमोहन गावत आवे गारी ।
व्रजपति तबहिं चोंकि उठि बैठे कित मेरी पिचकारी ॥४॥

व्रज में हरि होरी मचाई

व्रज में हरि होरी मचाई ।
इततें आई सुघर राधिका उततें कुंवर कन्हाई ।
खेलत फाग परसपर हिलमिल शोभा बरनी न जाई ॥१॥ नंद घर बजत बधाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
बाजत ताल मृदंग बांसुरी वीणा ढफ शहनाई ।
उडत अबीर गुलाल कुंकुमा रह्यो सकल ब्रज छाई ॥२॥ मानो मघवा झर लाई…..ब्रज में हरि होरी मचाई ।
लेले रंग कनक पिचकाई सनमुख सबे चलाई ।
छिरकत रंग अंग सब भीजे झुक झुक चाचर गाई ॥३॥ परस्पर लोग लुगाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।
राधा ने सेन दई सखियन को झुंड झुंड घिर आई ।
लपट झपट गई श्यामसुंदर सों बरबस पकर ले आई ॥४॥ लालजु को नाच नचाई…ब्रज में हरि होरी मचाई ।
छीन लई हैं मुरली पीतांबर सिरतें चुनर उढाई ।
बेंदी भाल नयन बिच काजर नकबेसर पहराई ॥५॥ मानो नई नार बनाई …..ब्रज में हरि होरी मचाई ।
मुस्कत है मुख मोड मोड कर कहां गई चतुराई ।
कहां गये तेरे तात नंद जी कहां जसोदा माई ॥६॥ तुम्ह अब ले ना छुडाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
फगुवा दिये बिन जान न पावो कोटिक करो उपाई ।
लेहूं कढ कसर सब दिन की तुम चित चोर सबाई ॥७॥ बहुत दधि माखन खाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।
रास विलास करत वृंदावन जहां तहां यदुराई ।
राधा श्याम की जुगल जोरि पर सूरदास बलि जाई ॥८॥ प्रीत उर रहि न समाई….ब्रज में हरि होरी मचाई ।