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जाको मन लाग्यो गोपालसों...

राजभोग हिलग के पद

जाको  मन   लाग्यौ  गोपालसों  ताहि   और  कैसे भावैरी |
लै कर  मीन  दूधमें  राखौ,  जल  बिनु  सचु  नहीं  पावैरी || १ ||
ज्यों   सूरा   रन  घूमि  चलत  हैं,  पीर  न काहू  जनावैरी |
ज्यों   गूंगौ गुर  खाय  रहेत  है,  मुख  न  स्वाद  बतावैरी || २ ||
जैसें  सरिता मिली  सिन्धुमें,  उलटि  प्रवाह   न   आवैरी |
तैसेइ  सूर कमल मुख निरखत चित ईत उत न डुलावैरी || ३ || 

कृष्ण नाम जबतें श्रवन...

राजभोग हिलग के पद

कृष्ण नाम जबतें श्रवन सुन्यौरी आली, भूलीरी भवन हों तो बावरी भाई री |
भरी भरी  आवे  नैन  चितहू   न  परे  चैन,  तन की  दसा कछु और भई री || १ ||
जेतेक नेंम धरम किनेरी में बहु विधि, अंग अंग  भई हों  तो  श्रवन  मई री |
नंददास जाको नाम श्रवन सुनत यह गति, माधुरी मूरत केधों कैसी दई री || २ ||

कृष्ण नाम जबतें श्रवण सुन्यौरी आली

कृष्ण नाम जबतें श्रवण सुन्यौरी आली, भूलीरी  भवन हों तो बावरी भई री |
भरि भरि आवे   नैन  चितहू  न  परे  चैन,   तनकी   दसा कछु  और भई री || १ ||
जेतेक नेंम धरम  किनेरी में बहु विधि, अंग अंग  भई हों  तो  श्रवन  मई री |
नंददास जाको नाम  श्रवन सुनत यह गति, माधुरी  मूरत केंधो कैसी दई री ||२||

हिलगन कठिन है या मनकी

हिलगन कठिन है या मनकी |
जाके लियें सुनों मेरी  सजनी लाज  गई  सब  तनकी || १ ||
लोक   हसो   परलोक  हिजाओ  और   देओ कुलगारी |
सो क्यों  रहे  ताहि  बिन  देखें  जो   जाको  हितकारी || २ ||
रसलुब्ध निमिष नहीं छान्डत ज्यों आधीन मृग गानें |
कुमनदास   स्नेह   मरमकी   श्री गोवर्ध्धनधर  जानें || ३ || 

मेरी अखियन के भूषन गिरिधारी

मेरी अखियन के भूषन गिरिधारी |
बलि बलि जाऊ  छबीली छबि पर, अति  आनंद सुखकारी || १  ||
परम    उदार चतुर चिंतामनि, दरस परस दुखहारी |
अतुल प्रताप तनिक तुलसीदल, मानत सेवा  भारी || २  ||
कहा बरनों गुनगाथ  नाथके,  श्री  विठ्ठल   ह्रदय   बिहारी |
छीतस्वामी गिरिधरन  बिसद  जस,   गावत  गोकुल नारी || ३ ||

किहीं मिस यशोमतिहिकें जाऊं

किहीं मिस यशोमतिहिकें  जाऊं |
सकल सुखनिधि मुख अवलोकूं नयनन तृषा  बुझाऊं || १  ||
द्वार    आरज    सभा   जुरीहे    निकसवे   नहीं   पाऊं |
बिना    गए    पतिव्रत    छूटे     हसे    गोकुल   गाऊं || २  ||
स्याम   गात   सरोजआनन    मुदित    ले   ले   नाऊं |     
सूर हिलगन   कठिन   मनकी   कही    काही   सुनाऊं || ३  ||

सखीरी लोभी मेरे नयन

सखीरी  लोभी  मेरे  नयन |
बिन देखें चटपटी लागत देखत उपजे चेन || १  ||
मोर मुकुट काछें पीताम्बर सुन्दरता के एन |
अंगअंग छबि कही न परत है  निरख  थकित  भयोमेन || २  ||
मुरली ऐसी लागत श्रवणन चितवत खग मृग धेन |
परमानन्द प्रेमीके ठाकुर वे देखो ठाढ़े एन || ३  ||

मेरो माई हरि नागर सों नेह

मेरो माई हरि नागर सों नेह |
जबते   द्रष्टि  परे  मनमोहन  तबते विसरयो गेह || १  ||
कोऊ   नींदों  कोऊ   वंदो   मो   मन   गयो   संदेह |
सरिता सिन्धु मिली परमानन्द भयो एकरस तेह || २  ||

सखीरी मोहि हरि दर्शन की चाय

सखीरी  मोहि हरि दर्शन की चाय |
सांवरे सों   प्रीति  बाढ़ी लाख लोग रिसाय || १  ||
श्यामसुंदर लोल लोचन देख मन ललचाय |
सूर हरि के रंग  राची  सीस   रहा   केंजाय || २  ||

चलरी सखी नंदगाम जाय वसिये

चलरी सखी नंदगाम जाय वसिये |
खिरक  खेलत  व्रजचंदसों हसिये || १  ||
वसें   बेठन   सबे सुख माई |
एक  कठिन   दू:ख  दूर कन्हाई || २  ||
माखन चोरे दूर दूर देखूं |
जीवन  जन्म  सुफल  कर   लेखुं || ३  ||
जलचर लोचन छिन छिन प्यासा |
 कठिन प्रीति परमानंददासा || ४  ||

लगन इन नयनन की वाकी

लगन इन नयनन की वाकी |
देखें हीं  दु:ख  बिने  देखेहीं  दु:ख   पीरहोत  दुहुधा की || १  ||
टारी न  टर  तजाय  बिन  देखे  जिहिं  फबत  हेंसाकी |
रसिकराय प्रीतम मन अटक्यो कहूँ लगत नहीं टांकी || २  ||

करन दे लोगन कों उपहास

करन दे लोगन कों उपहास |
मन क्रम वचन नंदनंदन कों निमिष  न छांडो  पास || १  ||
सब  कुटुंब के  लोक  चिकनिया    मेरे   जाने   घास |
अब  तो  जिय एसी बनी आई  क्यों मानो लख त्रास || २  ||
अब क्यों  रह्यों  परें सुन सजनी एक गाम को वास |
ये   बातें   निकी   जानत   हें    जन   परमानंददास || ३  ||

सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज

सखी हों जो गई दधि बेचन व्रज में उलटी आप बिकाई  री |
विन  ग्रथ  मोल  लई  नंदनंदन  सर्वस्व  लिख  दे आई री || १  ||
श्यामल  वरण  कमलदल  लोचन  पीताम्बर कटि फेंट री |
जब ते  आवत  सांकरी   खोरी   भई  हे  अचानक   भेट री || २  ||
कोनकी  हें   कोन    कुलबधू    मधुर   मधुर   हस   बोलेरी |
सकुच रही मोहि उत्तर नहीं आवत वल कर घूंघट खोले री || ३  ||
सास   नणद  उपचार  पचिहारी  काहू  मरम   न   पायो री |
कर गहि  वैद   ढन्ढोर  रहे  मोहि  चिंता    रोग   बतायो री || ४  ||
जा दिन  ते  में   सुरत  संभारी  गृह   अंगना  विष लागे री |
चितवत चलत सोवत और जागत यह  ध्यान मेरे आगें री || ५  ||
नीलमणि  मुक्ताफल  देहूं  जो   मोहि  श्याम   मिलायें री |
कहे   माधो  चिंता  क्यों  विसरे  बिन   चिंतामणि  पायें री || ६  ||

बात हिलग की कासों कहिये...

बात हिलग की कासों कहिये |
सुनरी सखी व्यथा यातनकी समझ समझ मन चुप कर रहिये || १  ||
मरमी  विना  मरम को  जानें  यह  उपहास  जान  जग सहिये |
चतुर्भुज  प्रभु   गिरिधरन  मिलें  जब  तब  ही  सब  सुख  पैये || २  ||

श्यामसों नेह कबहू न कीजे

श्यामसों नेह कबहू न कीजे |
मन श्याम तन श्याम श्याम ही सलोने टेढ़ी प्रीत करे तन छीजे || १  ||
श्याम पाग सिर छबि सों  सांवरेकी आली सर्वस अपनों दीजे |
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर सों हिलमिल अधर सुधारस पीजे || २  ||

कैसे करि कीजै वेद कह्यो

कैसे करि कीजै वेद कह्यो |
हरिमुख निरखत विधि-निषध कौ नाहिन  ठोर रह्यो || १  ||
दु:ख को  मूल  सनेह   सखी  री  सो  उर  पैठी   रह्यो |
परमानन्द  प्रभु  केलि  समुद्र में  पर्योसु  लै निबह्यो || २  ||

मन हर ले गये नंदकुमार

मन हर ले गये नंदकुमार |
बारक द्रष्टि  परी  चरणन  तन   देखन  न   पायो  बदन   सुचार || १  ||
हों   अपने     घर    सुचसो    बैठी    पोवत ही    मोतिन के   हार |
कांकर   डार  द्वार  व्हे  निकसे   बिसर  गयो  तन  करत शृंगार || २  ||
कहारी करों क्यों मिल है गिरिधर किहिमिस हों यशोदा घर जाऊं |
परमानंद   प्रभु   ठगीरी  अचानक   मदनगोपाल   भावतों   नाउं || ३  ||