शिवरात्रि के दिन धमार के पद
मोहन मुनि हे आये हो, हो मेरे ललना सबको मनहर लीनों ।। ध्रु. ।।
रसमसी चाल चले अलबेली अंग चढाय विभूत ।
कानन कुंडल मुकुट विराजत पीताम्बर ओढ़े कटि पूत ।। १ ।।
दंड कमंडल गहि जपमाला आसन लीनों बनाय ।
कोटि जतन राधा पचिहारी मुख न बोलत मुसिक्याय ।। २ ।।
जगजीवन जोगी हे आये अरस परस लिये ग्वाल ।
मानों कोटि उडुगण शशि जैसे ऐसे बने नंदलाल ।। ३ ।।
दृग दृग थेई थेई धुनि बाजे इत गोपी उत ग्वाल ।
आनंद भई हैं सकल व्रज निता बोलत बचन रसाल ।। ४ ।।
ब्रह्मादिक इंद्रादिक मुनिवर देखत कोटि तेतीस ।
श्री गोपीनाथ एक ख्याल बनायो सकल रचना को ईस ।। ५ ।।
जान्यों भेद बलि मोहन को मुख माँड्यो सकल सुवास ।
जय जय कार करत सुरनर मुनि वरखत कुसुम अकास ।। ६ ।।
नवल किसोर कहाँ लो वरनो शोभा कही न जाय ।
सूरदास वलि लाल छबीले निगम निरंतर गाय ।। ७ ।।
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