मोहन मुनि हे आये हो...

शिवरात्रि के दिन धमार के पद 

मोहन मुनि हे आये हो, हो मेरे ललना सबको मनहर लीनों ।। ध्रु. ।।
रसमसी    चाल   चले    अलबेली    अंग    चढाय   विभूत ।
कानन कुंडल मुकुट विराजत पीताम्बर  ओढ़े   कटि   पूत ।। १ ।। 
दंड   कमंडल    गहि    जपमाला    आसन   लीनों   बनाय ।
कोटि   जतन   राधा  पचिहारी  मुख न बोलत मुसिक्याय ।। २ ।।
जगजीवन  जोगी  हे   आये   अरस   परस   लिये   ग्वाल ।
मानों    कोटि   उडुगण   शशि   जैसे   ऐसे   बने नंदलाल ।। ३ ।।
दृग दृग  थेई  थेई  धुनि   बाजे   इत   गोपी   उत    ग्वाल ।
आनंद भई  हैं सकल व्रज   निता   बोलत   बचन   रसाल ।। ४ ।। 
ब्रह्मादिक   इंद्रादिक    मुनिवर    देखत   कोटि   तेतीस ।
श्री गोपीनाथ एक ख्याल बनायो सकल  रचना   को  ईस ।। ५ ।।
जान्यों भेद बलि मोहन को  मुख  माँड्यो सकल  सुवास ।
जय जय कार करत सुरनर मुनि वरखत कुसुम  अकास ।। ६ ।।
नवल किसोर कहाँ  लो   वरनो   शोभा    कही   न   जाय ।
सूरदास   वलि   लाल  छबीले   निगम    निरंतर    गाय ।। ७ ।।

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