भोर भयो गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो ।
चार पहर वंशीवट भटक्यो, सांझ परे घर आयो ॥
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ १ ॥
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको किहि विधि पायो .
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ..
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ २ ॥
तू जननी मन की अति भोली, इनके कहे पतियायो .
यह ले अपनी लकुटि कम्बलिया, तुने बहुतहि नाच नचायो .
जिय तेते कछु भेद उपजिहै , जानि परायो जायो ..
"सूरदास" तब हँसी यशोदा, लै उर-कंठ लगायो ..
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ ३॥
चार पहर वंशीवट भटक्यो, सांझ परे घर आयो ॥
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ १ ॥
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको किहि विधि पायो .
ग्वाल-बाल सब बैर परे हैं, बरबस मुख लपटायो ..
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ २ ॥
तू जननी मन की अति भोली, इनके कहे पतियायो .
यह ले अपनी लकुटि कम्बलिया, तुने बहुतहि नाच नचायो .
जिय तेते कछु भेद उपजिहै , जानि परायो जायो ..
"सूरदास" तब हँसी यशोदा, लै उर-कंठ लगायो ..
मैया मोरी, मैं नही माखन खायो ॥ ३॥
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