जय श्री जगन्नाथ हरि देवा

रथयात्रा के पद : व्रतोत्सव भावना

श्री गुसाईंजी वि. सं. 1616 को महासुद 13 के दिन जगदीश पधारें. वहां आप छ माह बिराजें. रथयात्रा का उत्सव उन्होंने वहीँ किया था. उसी समय भगवान जगदीश ने  पुष्टिमार्ग में रथयात्रा का उत्सव आरंभ करने की आज्ञा दी थी. उसी समय पीपली गाँव के माधवदास आपश्री के साथ थे. उन्होंने रथ की भावना के अनुसार पद गाया : "जय श्री जगन्नाथ हरि देवा ". इस पद को सून कर श्री गुंसाईजी प्रसन्न हुए और रथयात्रा के उत्सव में प्राथमिक पद के स्वरूपमें इस को अग्रस्थान दिया. और सूरदासजी के दो भावात्मक पदों 1. "वा पटपीत की फहेरान " 2. "सुंदर बदनरी सुख सदन श्याम को "भी स्थान दिया.

जब श्री गुंसाईजी अड़ेल पधारें तब रासा नामक सुथार के पास रथ सिद्ध कराके उसमें श्री नवनीतप्रिय प्रभु को  पधराके रथयात्रा का उत्सव आषाढ़ सूद बीजको पुष्य नक्षत्र के समय को आरम्भ किया है.

जय श्री जगन्नाथ हरि देवा ।
रथ बैठे प्रभु अधिक बिराजत, जगत करत सब सेवा  ।। 1 ।।
सनक सनंदन ओर ब्रह्मादिक,  इन्द्रादिक जुर आये  ।
अपनी अपनी  भेट सबे ले,   गगन  विमानन  छाये  ।। 2 ।।
रत्नजटित रथ नीको लागत,  चंचल  अश्व  लगाये ।
नरनारी  आनंद  भये  अति,  प्रमुदित  मंगल  गायें  ।। 3 ।।
गारी देत दिवावत अपनपे, यह विधि रथहिं चलाये  ।
रामराय  श्री  गोवर्धनवासी,    नगर  उड़ीसा   आये  ।। 4 ।।

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