वदत नाहिन ग्वालिनी जोबन के गारैं

वदत   नाहिन    ग्वालिनी     जोबन   के   गारैं ।
या  ब्रज   में   ऐंडी     फिरै    मन्मथ    उपचारें ।। १ ।।
पहिरै   रातो   पौंमचा    लहिंगा   हरि   किनारैं ।
अति रस तैं निकरी फिरैं   आचार   ढिंग   डारैं ।। २ ।।
नकवेसर    गजरा      बने     चौकी    खगवारे।
अंगियां खमकी   खयें  बनी  कुछ सुं   भरबारैं ।। ३ ।।
फुंफुंदी   डोरी के   झवा  सोहैं   फौंद    फुंदा  रैं ।
सोने  की    बाँकी   बिंदुली  ललित   लीला  रैं ।। ४ ।।
दीरघ  लोचन  छबि  छटा   कजरा   अनियारे ।
जगन्नाथ कविराई के प्रभु मोहि कान्हर कारे ।। ५ ।।

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