गोवर्धन गिरिसघनकंदरा रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥
उठ चले भोर सुरत रस भीने नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥१॥
इत विगलित कच माल मरगजी अटपटे भूषण रागमणी सारी ॥
उतहि अधरमिस पाग रहिथस दुहूदिश छबि बाढी अति भारी ॥२॥
घूमत आवत रति रणजीते करिणिसंग गजवर गिरिवरधारी ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख तनमनधन कीनो बलिहारी ॥३॥
उठ चले भोर सुरत रस भीने नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥१॥
इत विगलित कच माल मरगजी अटपटे भूषण रागमणी सारी ॥
उतहि अधरमिस पाग रहिथस दुहूदिश छबि बाढी अति भारी ॥२॥
घूमत आवत रति रणजीते करिणिसंग गजवर गिरिवरधारी ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख तनमनधन कीनो बलिहारी ॥३॥
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