श्रावण स्यामले पक्षे एकादश्यं महानिशि ।
साक्षात भगवता प्रोक्तं तदक्षरश उच्यते ॥१॥
ब्रम सम्बंध करणात सर्वेषां देह जीवयोः ।
सर्वदोषनिवृत्तिर्हि दोषाः मंचविधां स्मृताः ॥२॥
सहजा देश कालोत्था लोकवेदनिरूपिताः ।
संयोगजाः सपर्शजाश्च न मन्तव्याः कथन्चन ॥३॥
अन्यथा सर्व दोषाणां न निवृत्तेः कथन्चन ।
असमर्पितवस्तुनां तस्माद्वर्जनमाचरेत ॥४॥
निवेदिभिः समर्प्यैव सर्व कुर्यादिति स्थितिः।
न मतं देवे देवस्य सामिभुक्तं समर्पणं ॥५॥
तस्मादादौ सर्वकार्ये सर्ववस्तु समर्पणम ।
दत्तापहारवचनं तथा च सकलं हरे ॥६॥
न ग्राह्ममिति वाक्यं हि भिन्न मार्गपरं मतम ।
सेवकानां यथालोके व्यवहारः प्रसिध्यति ॥७॥
तथा कार्य समर्प्यैव सर्वेषां ब्रह्मता ततः ।
गंगात्वं सर्वदोषाणां गुणदोषादि वर्णना
गंगात्वेन निरूप्या स्यात्त्द्वदत्रापि चैव हि ॥८॥
॥इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं सिद्धान्तरहस्यं सम्पूर्णम॥
साक्षात भगवता प्रोक्तं तदक्षरश उच्यते ॥१॥
ब्रम सम्बंध करणात सर्वेषां देह जीवयोः ।
सर्वदोषनिवृत्तिर्हि दोषाः मंचविधां स्मृताः ॥२॥
सहजा देश कालोत्था लोकवेदनिरूपिताः ।
संयोगजाः सपर्शजाश्च न मन्तव्याः कथन्चन ॥३॥
अन्यथा सर्व दोषाणां न निवृत्तेः कथन्चन ।
असमर्पितवस्तुनां तस्माद्वर्जनमाचरेत ॥४॥
निवेदिभिः समर्प्यैव सर्व कुर्यादिति स्थितिः।
न मतं देवे देवस्य सामिभुक्तं समर्पणं ॥५॥
तस्मादादौ सर्वकार्ये सर्ववस्तु समर्पणम ।
दत्तापहारवचनं तथा च सकलं हरे ॥६॥
न ग्राह्ममिति वाक्यं हि भिन्न मार्गपरं मतम ।
सेवकानां यथालोके व्यवहारः प्रसिध्यति ॥७॥
तथा कार्य समर्प्यैव सर्वेषां ब्रह्मता ततः ।
गंगात्वं सर्वदोषाणां गुणदोषादि वर्णना
गंगात्वेन निरूप्या स्यात्त्द्वदत्रापि चैव हि ॥८॥
॥इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं सिद्धान्तरहस्यं सम्पूर्णम॥
भावानुवाद- Translation
भावानुवाद- Translation
श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की महारात्रि को स्वयं भगवान द्वारा मुझसे कहे गए वचनों को अक्षरशः कहता हूँ॥१॥
On the midnight of the eleventh day of the dark half
of Shravana month, what Sri Krishna himself said to me is being told here
verbatim.॥1॥
रह्म सम्बन्ध रूपी साधन से सभी जीवधारियों के समस्त दोषों का नाश हो जाता है जो स्मृतियों में पाँच प्रकार के कहे गए हैं॥२॥
All impurities of all the living beings are
destroyed through association of Lord. The impurities are said to be of five
types in scriptures.॥2॥
सामान्य, स्थान और समय से सम्बंधित, समाज और वेदों में वर्णित, संयोग और स्पर्श से होने वाले, इनमें से किसी को अपने में न मानते हुए अपना साधन करते रहना चाहिए॥३॥
These are - natural(with birth), arising due to
ambiance, mentioned by society or scriptures, time and space, arising due to
association of bad company or objects. We should focus on our association with
Lord, ignoring all of these.॥3॥
किसी अन्य प्रकार से समस्त दोषों का नाश संभव नहीं है, अतः जो कुछ भी प्रभु को समर्पित नहीं किया गया है उसका बहिष्कार करना चाहिए॥४॥
There is no other way to destroy all the impurities.
Hence, discard all the things which are not offered to Lord.॥4॥
प्रार्थना करते हुए समस्त वस्तुओं को मुझे समर्पित करना चाहिए। किसी अन्य देवता को अर्पित की गयी वस्तु मुझे समर्पित नहीं करनी चाहिए॥५॥
One should offer all the things to me
with devotion. Never offer anything to Lord Krishna which is already offered to
other gods.॥5॥
अतः सभी कार्यों के प्रारंभ में ही समस्त वस्तुएं प्रभु को समर्पित करनी चाहिए। श्रीहरि को समर्पित सभी कुछ उनका ही है अतः उन दी हुई वस्तुओं को-॥६॥
Hence, in the very beginning of all
activities, we should offer all the things to Sri Hari. The things which are
given to Lord belong exclusively to him-॥6॥
अपने प्रयोग में नहीं लाना चाहिए यह वाक्य दूसरे मतावलंबियों के अनुसार ही सत्य है(पुष्टिमार्ग के अनुसार नहीं)। सेवकों का जो आचरण समाज में प्रसिद्ध है उसी का अनुसरण करते हुए ॥७॥
so one should not use them, is
accepted by other sects (and definitely not by Pushti Marg). One should follow
the famous path of servant towards his master-॥7॥
और सभी कार्यों को प्रभु को ही समर्पित करने से वे प्रभु जैसे ही पवित्र हो जाते हैं। जिस प्रकार गंगा में मिलने से सभी प्रकार का जल पवित्र होकर गंगात्व को प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार यहाँ भी समझना चाहिए॥८॥
and offer everything to Lord so that they attain the
sacredness of Lord. All attributes of water, dirty or pure, after merging in
Ganga are referred as belonging to Ganga which is pure by nature. Offerings to
Lord should be understood similarly.॥8॥
No comments:
Post a Comment