नवरत्नं

चिन्ताकापि न कार्या निवेदितात्मभिः कदापीति।
भगवानपि पुष्टिस्थो न करिष्यति लौकिकीं च गतिम ॥१॥
निवेदनण तु स्मर्त्तव्यं सर्वथा ताह्शैर्जनैः।
सर्वेश्चर्श्च सर्वात्मा निजेच्छातः करिष्यति ॥२॥
सर्वेषां प्रभु संबंधो न प्रत्येकमिति स्थितिः ।
अतोsय विनियोगेSपि चिन्ता का स्वस्य सोsपिचेत ॥३॥
अज्ञानादथवा ज्ञानात कृतमात्म निवेदनम ।
यैः कृष्णसात्कृतप्राणैस्तेषां का परिदेवना ॥४॥
तथा निवेदने चिन्ता त्याज्या श्री पुरुषोत्तमे ।
विनियोगेsपि सा त्याज्या समर्थो हि हरिः स्वतः ॥५॥
लोके स्वास्थ्यं तथा वेदे हरिस्तु न करिष्यति ।
पुष्टिमार्गस्थितो यस्मात साक्षिणो भवता खिलाः ॥६॥
सेवाकृतिर्गुरोराज्ञाsबाधनं वा हरोच्छया ।
अतः सेवा परं चित्तं विधाय स्थीयतां सुखम ॥७॥
चित्तोद्वेगं विधायापि हरिर्यद्यत करिष्यति ।
तथैव तस्य लीलेति मत्वा चिन्तां द्रुतं त्यजेत ॥८॥
तस्मात्सर्वातमना नित्यं श्री कृष्णः शरणं मम ।
वदद्भिरेव सततं स्थेयमित्येव मे मति ॥९॥
॥इति श्री वल्लभाचार्य विरचितं नवरत्नं समाप्तं॥

भावानुवाद- Translation

भावानुवाद- Translation



स्वयं को श्रीकृष्ण को समर्पण करते समय कभी भी किसी प्रकार की भी चिंता करें, भगवान प्रेम और लोक व्यवहार दोनों का संरक्षण करेंगे ॥१॥

Once surrendered to Shri Krishna, one should never ever get worried at all in any situation. Lord will definitely take care of spiritual and worldly life. 1

इस प्रकार के भक्त केवल अपने समर्पण को स्मरण रखें, शेष सब कुछ सबके ईश्वर और सबके आत्मा अपनी इच्छा के अनुसार  करेंगे ॥२॥

Such devotees should only remember their surrender to Lord and nothing else. Rest will be taken care of by the soul of all and the God of all. 2

ईश्वर के साथ सबका सम्बन्ध है पर सबकी उनमें निरंतर स्थिति नहीं है, अतः दूसरों की उनमें स्थिति होने पर चिंता करें, वे स्वयं ही जानेंगे॥३॥

Everyone is connected to Lord, but not everyone continuously remembers Him.  So don't worry about others, they will know it by themselves. 3

जिन्होंने अज्ञान या ज्ञान पूर्वक श्रीकृष्ण को आत्म समर्पण कर दिया है, अपने प्राणों को उनके अधीन कर दिया है, उनको क्या दुःख हो सकता है ॥४॥

He, who has knowingly or unknowingly offered himself to Lord and engrossed his life in love for Shri Krishna, how can he be ever sad.4

अतःचिंता को त्याग कर श्रीकृष्ण को समर्पण करें, पूर्ण समर्पण होने पर भी चिंता को त्याग देंश्रीहरि निश्चित रूप से सर्व समर्थ हैं ॥५॥ 

So, leave aside all the worries, surrender to Lord Krishna. Even if, surrender is incomplete, do not bother as  Shri Hari is definitely all powerful in all ways.5

पुष्टि मार्ग में स्थित भक्त के लोक, स्वास्थ्य और वेद का पालन निश्चित रूप से सबके साक्षी श्रीहरि ही करेंगे ॥६॥

 in this path of grace, all witnessing Lord Krishna will definitely take care of his devotee's health, worldly and spiritual matters. 6

गुरु की आज्ञा के अनुरूप अथवा श्रीहरि की इच्छा के अनुसार प्रभु-सेवा ही कर्तव्य है, अतः परमात्मा की सेवा में चित्त को स्थिर करके सुख से रहें ॥७॥

As per the directions of Guru or by the wish of Lord Krishna, service of the Lord is the only duty. So keep your mind fixed in service of God and stay peacefully.7

चिंता और उद्वेग में संयम रख कर और ऐसा मान कर कि श्रीहरि जो जो भी करेंगे वह उनकी लीला मात्र है, चिंता को शीघ्र त्याग दें॥८॥

Have patience in worries and distress and assuming all the acts of God as his play, promptly stop worrying. 8

अतः मैं सदैव सबके आत्मा श्रीकृष्ण की शरण में हूँ। इस प्रकार बोलते हुए ही निरंतर रहें, ऐसा मेरा निश्चित मत है॥९॥ 

So keep reciting and remembering that the soul of all, Lord Krishna is my only refuge at all times. This is my definite opinion. 9

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