चतुःश्लोकी

सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो व्रजाधिपः ।
स्वस्यायमेव धर्मो हि नान्यः क्वापि कदाचन ॥१॥
एवं सदा स्वकर्त्तव्यं स्वयमेव करिष्यति ।
प्रभुः सर्व समर्थो हि ततो निश्चिन्ततां व्रजेत ॥२॥
यदि श्री गोकुलाधीशो धृतः सर्वात्मना हृदि ।
ततः किमपरं बूहि लोकिकैर्वैदिकैरपि ॥३॥
अतः सर्वात्मना शश्ववतगोकुलेश्वर पादयोः ।
स्मरणं भजनं चापि न त्याज्यमिति मे मतिः ॥४॥
॥इति श्री वल्लभाचार्यविरचितं चतुःश्लोकी सम्पूर्णम॥

भावानुवाद- Translation

 

भावानुवाद- Translation


सभी समय, सब प्रकार से व्रज के राजा श्रीकृष्ण का ही स्मरण करना चाहिए। केवल यह ही धर्म है, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं॥१॥

At all times, in all ways, we must worship the Lord of Vraj Shri Krishna only. This is the only religion and nothing else besides it.1

इस प्रकार अपने कर्तव्यों का हमेशा पालन करते रहना चाहिए, प्रभु सर्व समर्थ हैं इसको ध्यान रखते हुए निश्चिन्ततापूर्वक रहें॥२॥

This way we should always do our duty. Remembering that Lord Shri Krishna is omnipotent, live without worries. (He will take care of everything.)2

यदि तुमने सबके आत्मस्वरुप गोकुल के राजा श्रीकृष्ण को अपने ह्रदय में धारण किया हुआ है, फिर क्या उससे बढ़कर कोई और सांसारिक और वैदिक कार्य है॥३॥

If the soul of everyone, king of Gokul Shri Krishna lives in your heart, what else remains to be done whether worldly or spiritual.3

अतः सबके आत्मस्वरुप गोकुल के शाश्वत ईश्वर श्रीकृष्ण के चरणों का स्मरण और भजन कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए, ऐसा मेरा (श्री वल्लभाचार्य का) विचार है॥४॥

So one should never stop worship and meditation on the feet of Lord Shri Krishna, the eternal soul of all and the God of Gokul. This is the opinion of Shri Vallabhacharya.4

No comments:

Post a Comment