ये मन मान मेरो कह्यो

 महा सूद चोथ शयन सन्मुख

ये मन मान मेरो कह्यो,  काहेको ऋसानी  प्यारी  तूं |
प्रथम ही भैरो गुनिजन गाईए, याही तें, सुघराई होत || १  ||
मालकोष की    तानन   ले  ले   राजत   रूप   विहाग |
द्वारकेश प्रभु वसंत  खिलावत, चाहितें बढ़त सुहाग || २  ||

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