सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खल धर्मिणि ।
पाष्ण्डप्रचुरेलोके कृष्ण एव गतिर्मम ॥१॥
म्लेच्छाक्रान्तेषुदेशेषु पापैकनिलयेषुचः।
सत्पीडा व्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥॥
गंगादितीर्थ वर्येषु दुष्टैरेवा वृतेस्विह ।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥३॥
अहंकार विमुढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु ।
लाभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥४॥
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु ।
तिरूहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥५॥
नानावाद विनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु ।
पाषण्डेकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥६॥
अजामिलादिदोषाणां नाशको नुभवे स्थितः ।
ज्ञापिताखिल माहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम ॥७॥
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत ।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मातकृष्ण एव गतिर्मम ॥८॥
विवेक धैर्य भक्त्यादि रहितस्य विशेषतः ।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम ॥९॥
सर्व सामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्हकृत ।
शरणस्थ्समुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम ॥१०॥
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत कृष्ण्सन्निधौ ।
तस्याश्रयो भवेत कृष्ण इति श्री वल्लभोब्रवीत ॥११॥
॥ इति श्री वल्लभाचार्यविरचितः कृष्णाश्रय सम्पूर्णः ॥
पाष्ण्डप्रचुरेलोके कृष्ण एव गतिर्मम ॥१॥
म्लेच्छाक्रान्तेषुदेशेषु पापैकनिलयेषुचः।
सत्पीडा व्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥॥
गंगादितीर्थ वर्येषु दुष्टैरेवा वृतेस्विह ।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥३॥
अहंकार विमुढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु ।
लाभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥४॥
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु ।
तिरूहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥५॥
नानावाद विनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु ।
पाषण्डेकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम ॥६॥
अजामिलादिदोषाणां नाशको नुभवे स्थितः ।
ज्ञापिताखिल माहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम ॥७॥
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत ।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मातकृष्ण एव गतिर्मम ॥८॥
विवेक धैर्य भक्त्यादि रहितस्य विशेषतः ।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम ॥९॥
सर्व सामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्हकृत ।
शरणस्थ्समुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम ॥१०॥
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत कृष्ण्सन्निधौ ।
तस्याश्रयो भवेत कृष्ण इति श्री वल्लभोब्रवीत ॥११॥
॥ इति श्री वल्लभाचार्यविरचितः कृष्णाश्रय सम्पूर्णः ॥
कलियुग में धर्म के सभी मार्ग नष्ट हो गए हैं, विश्व में अधर्म और पाखंड का बाहुल्य है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥१॥
In this age of Kali, all the paths
leading to God are destroyed; non-righteousness and hypocrisy is prevalent
everywhere. Lord Shri Krishna is my only refuge in these difficult times.॥1॥
दुर्जनों से आक्रांत (परेशान)
देशों में, पाप पूर्ण
स्थानों में, सज्जनों की पीड़ा से व्यग्र संसार
में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय
हैं॥२॥
Wicked people rule
and oppress others in all places. These places have become cursed.The suffering
of noble men has reached its limits. At such a time, the Lord Shri Krishna is
my only refuge.॥2॥
गंगा आदि प्रमुख तीर्थ
भी दुष्टों द्वारा घिरे हुए हैं, प्रत्यक्ष देवस्थान लुप्त हो गए हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय
हैं॥३॥
Principal holy places like the Ganga
etc. are surrounded by the wicked. The gods residing in such places have
abandoned them. At such a time, the Lord Shri Krishna is my only refuge.॥3॥
अहंकार से मोहित हुए सज्जन व्यक्ति भी पाप का अनुसरण
कर रहे हैं और लोभ वश ही पूजा करते हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय
हैं॥४॥
Even the righteous people have become
full of pride and are following sinful path. People pray to God for their
selfish benefits. At such a time, the Lord Krishna is my only refuge.॥4॥
मंत्र ज्ञान नष्ट हो गया है, योगी नियमों का पालन न करने वाले हो गए हैं, वेदों का वास्तविक अर्थ लुप्त हो गया है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥५॥
Secret knowledge of
Mantras has disappeared, yogis do not live disciplined life, real meaning of
Vedas is forgotten. At such a time, the Lord Krishna is my only refuge.॥5॥
भिन्न-भिन्न
प्रकार के मतों के कारण शुभ कर्म और व्रत आदि का नाश हो गया है, पाखंडपूर्ण कर्मों का ही आचरण हो रहा है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥६॥
Due to various
sects, fasts and other pious duties are not performed. Sacred acts are not done
with pure heart. At such a time, the Lord Krishna is my only refuge.॥6॥
आपका नाम अजामिल आदि के दोषों
का नाश करने वाला है, ऐसा सबने सुना है, आपके ऐसे संपूर्ण माहात्म्य को जानने के बाद, केवल आप श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥७॥
Everybody is aware that by taking your
holy name Ajamil and others have become free from their sins. Knowing your
infinite kindness, O! Lord Krishna, you are my only refuge.॥7॥
सभी देवता
प्रकृति के अंतर्गत हैं, विराट का आनंद भी सीमित है, केवल श्रीहरि पूर्ण आनंद स्वरुप हैं, अतः केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय
हैं॥८॥
All other deities
are under control of Nature(Maya). Even the pleasure of Virat(Brahm) is limited
in scope. Only Sri Hari bestows infinite bliss. Hence, Lord Krishna is my only
refuge.॥8॥
विवेक, धैर्य,
भक्ति आदि से रहित,
विशेष रूप से पाप में आसक्त
मुझ दीन के लिए केवल श्रीकृष्ण ही आश्रय
हैं॥९॥
Especially for
someone like me who is without discrimination, patience and devotion and
constantly attached to sins and incapable, Lord Shri Krishna is the only
refuge.॥9॥
अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण
करने वाले,
शरणागतों का उद्धार करने वाले श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ॥१०॥
I worship Lord Krishna, who is all
powerful, omnipresent and bestower of all benefits and saviour of all those who
seek his protection.॥10॥
श्रीकृष्ण के आश्रय में और उनकी मूर्ति के समीप जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य का कथन है॥११॥
Whosoever recites
this Krishnashraya considering Sri Krishna as his only refuge and in the
presence of his statue, he will be protected by Lord Sri Krishna himself. This
is the promise of Sri Vallabhacharya.॥11॥
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