श्री यमुने रस खान को शीश नांऊ।
ऐसी महिमा जानि भक्त को सुख दान, जोइ मांगो सोइ जु पाऊं ॥१॥
पतित पावन करन नामलीने तरन, दृढ कर गहि चरन कहूं न जाऊं ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत यहि चाहत नहिं पलक लाऊं ॥२॥
ऐसी महिमा जानि भक्त को सुख दान, जोइ मांगो सोइ जु पाऊं ॥१॥
पतित पावन करन नामलीने तरन, दृढ कर गहि चरन कहूं न जाऊं ।
कुम्भन दास लाल गिरिधरन मुख निरखत यहि चाहत नहिं पलक लाऊं ॥२॥
ShriYamune raskhaan ko shish
naao,
Aisi mahima jaan bhakhtko sukhdaan, joi maango soi ju paao.
Patit paavan karan naam lino taran dhad kar gahi charan kahu a jaao,
Kumbhandas LalGiridharan mukh nirkhat, yehi chaahat nahi palak laao.
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