प्रीति बँधी श्री वल्लभ पद सों, और न मन में आवै हो ।
पढि पुरान खट-दर्शन नीके, जो कछु कोऊ बतावै हो ।। १ ।।
जब तें अंगीकार कियौ मेरो, तब तें अन्य न सुहावै हो ।
पाई महारस कौन मूढ़ मति, जित तित चित भटकावै हो ।। २ ।।
जाके भाग फलें या कलि में, सरन सोई जन पावै हो ।
नंदनंदन को निज सेवक करि, दृढ़ करि बांह गहावै हो ।। ३ ।।
जिन कोऊ करो भूल मन संशय, निश्चें करि श्रुति गावै हो ।
'रसिक' सदा फलरूप मानिकें, लै उछंग हुलरावै हो ।। ४ ।।
पढि पुरान खट-दर्शन नीके, जो कछु कोऊ बतावै हो ।। १ ।।
जब तें अंगीकार कियौ मेरो, तब तें अन्य न सुहावै हो ।
पाई महारस कौन मूढ़ मति, जित तित चित भटकावै हो ।। २ ।।
जाके भाग फलें या कलि में, सरन सोई जन पावै हो ।
नंदनंदन को निज सेवक करि, दृढ़ करि बांह गहावै हो ।। ३ ।।
जिन कोऊ करो भूल मन संशय, निश्चें करि श्रुति गावै हो ।
'रसिक' सदा फलरूप मानिकें, लै उछंग हुलरावै हो ।। ४ ।।
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