ग्रीष्म ऋतु माधो जू के महल में, आवन कों अति तरसत हैं ।
जेठ मास में, तन जुडात ज्यों, माघ मास सरसत हैं ।। 1 ।।
भवन बूंद यों छूटत फुहारे, मानौं पावस ऋतु बरसत है ।
घोरि अरगजा, अंग लगावति, बैठें अति हुलसत हैं ।। 2 ।।
ना वैभव वैकुंठ जो ब्रज में, श्री वल्लभ गृह दरसत हैं ।
'नंददास' तहां, ताप रहे क्यों, रमा आदि पग परसत हैं ।। 3 ।।
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