कुसुम कुंज मधि करत सिंगार ।
प्यारी पिय हीं फुलेल लगावत, कोमल कर सुरजावत वार ।। 1 ।।
चंदन घसि अंग मज्जन कीनो, यमुना जल झरी कर धार ।
न्हाय बहिरी अंग पोंछि स्वच्छ कर, सरस बसन पहरावत हार ।। 2 ।।
पीत पिछोरी बांधि फेंट कसि, तापर कटि किंकिनी झनकार ।
फेंटा पीत शीश बांध्यो कटि, दुहु दिश अलक लटकि घुघरार ।। 3 ।।
दोउ चरन नूपुर धुन बाजत, कंठ पदक सुज मुक्ताहार ।
बाजु बंध जटित हथ पोंची, पुष्पमाल पहरें करि प्यार ।। 4 ।।
पुष्पगुच्छ पर मोर चंद्रिका, ले दर्पन देखत रिझवार ।
चतुर्भुजदास श्याम मुख निरखत, तन मन धन कीनो बलिहार ।। 5 ।।
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