तुमकों टेर टेर मैं हारी ।
कहांजो रहे, अबलो मनमोहन, लेहोन छाक तुम्हारी ।। 1 ।।
भूल परी मारग में, क्योंहूँ न पेंड़ो पायो ।
बूझत बूझत, यहाँ लो आई, तब तुम वेणु बजायो ।। 2 ।।
देखो मेरे अंग के पसीना, उर को अंचल भीनो ।
परमानंद प्रभु, प्रीति जान कें, धाय आलिंगन कीन्हों ।। 3 ।।
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