सुमर मन गोपाललाल, सुंदर अति रूपजाल, मिटे हैं जंजाल, निरखत सब गोपबाल ।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे, सब को मन हरे देख, कुंडल की झलक गाल ।। 1 ।।
आभूषण अंग सोहे, मोतिन के हार पोहे, कंठसरी मोहे द्रग, गोपीन निरखत निहाल ।
छीतस्वामी गोवर्धनधारी, कुंवर नन्द सुवन, गायन के पाछें पाछें, धरत हें लटकीली चाल ।। 2 ।।
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