सुमर मन गोपाललाल...

सुमर  मन  गोपाललाल, सुंदर अति रूपजाल, मिटे हैं जंजाल, निरखत सब गोपबाल  ।
मोर मुकुट सीस धरे, बनमाला सुभग गरे, सब को मन हरे देख, कुंडल की झलक गाल  ।। 1 ।।
आभूषण  अंग  सोहे,  मोतिन के  हार   पोहे,   कंठसरी   मोहे  द्रग,   गोपीन   निरखत   निहाल  ।
छीतस्वामी  गोवर्धनधारी,  कुंवर  नन्द सुवन, गायन के  पाछें  पाछें, धरत  हें  लटकीली  चाल  ।। 2 ।।

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