प्रीतम प्रीत ही सों पाइये

प्रीतम प्रीत ही सों पाइये।
यद्यपि रूप गुण शील सुघरता इन बातन न रिझैये॥१॥
सतकुल जन्म कर्म गुण लक्षण वेद पुराण पढैये।
गोविन्द प्रभु बिन स्नेह सो वालो रसना कहा न चैये॥२॥

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