तुम देखो माई आज नैन भर हरि जू के रथ की सोभा

तुम देखो माई आज नैन भर हरि जू के रथ की सोभा।
प्रात समय मनो उदित भयो रवि निरखि नयन अति लोभा ॥१॥
मनिमय जटित साज सरस सब ध्वजा चमर चित चोबा।
मदनमोहन पिय मध्य बिराजत मनसिज मन के छोभा ॥२॥
चलत तुरंग चंचल भू उपर कहा कहूं यह ओभा ।
आनंद सिंधु मानों मकर क्रीडत मगन मुदित चित चोभा ॥३॥
यह बिध बनी बनी ब्रज बीथन महियां देत सकल आनंद ।
गोविन्द प्रभु पिय सदा बसो जिय वृंदावन के चद ॥४॥

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